त्योहार के बाद के अफसाने, नए-पुराने

रिश्तों में नहीं नमी, बातों में नहीं गर्मी 
कभी तीखे तीर, कभी साथ की कमी 
ये अफसाने ये चलन बड़े पुराने हैं 
आंखें बंद करो और बढ़ चलो 
आगे और भी नए जमाने हैं... 
 
5 दिन के शुभ पर्व अपनी पूरी चमक, रौनक और महक के साथ आए, हम सभी मुस्कुराए, सबको दी शुभकामनाएं और बाद में रह जाती है फेस्टिवल की मीठी महकती यादें... सिर्फ सेल्फी और ग्रुप फोटो में मु्स्कुराते चेहरे ही यादे नहीं होते हैं यादें होती हैं कि दिल हमने किसी का न दुखाया हो, किसी को आहत न किया हो जाने अनजाने में किसी को नीचा दिखाने की चेष्टा न की हो.. ऊपरी तौर पर तो सब मुस्कुराते, खिलखिलाते ही नजर आ रहे हैं लेकिन त्योहार की खुशी में एक बात जो अधिकांश लोगों के साथ घटित होती है पर उसका जिक्र कहीं नहीं होता... मसलन .... 
 
बात करते हैं सारे कुटुंब के मेलमिलाप के दौरान जाने अनजाने में किए गए हंसी मजाक कटाक्ष व्यंग्य बाण का असर.... हमने अक्सर देखा है कि जब बहुत दिनों के बाद परिजन आपस में मिलते हैं तो हंसी मजाक अक्सर सीमा और मर्यादा पार कर जाती है। सभी के परिवार में कुछ एक ऐसे लोग होते हैं जो ज्यादा बोलते हैं, ज्यादा उत्साही और ऊर्जावान दिखने के चक्कर में या सेंटर ऑफ अट्रेक्शन बनने के चक्कर में कुछ भी अनाप शनाप बोल जाते हैं। 
 
कई बार जलन और इर्ष्या का भाव रखने वाले मजाक की आड़ लेकर अपने मन की कुंठा को निकालते हैं। कई बार परिवार के ही किसी एक व्यक्ति को टारगेट कर के पूरा परिवार उसके मजे लेता है। कहने सुनने को यह बहुत सामान्य सी बात है लेकिन थोड़ा गंभीरता से सोचेंगे तो इसके दूरगामी परिणाम होते हैं जो आगे चलकर रिश्तों में दूरियों का कारण बनते हैं।
 
जैसे एक उदाहरण से समझें कि मनीषा भाई दूज पर अपने पति अभिनव के साथ मायके गई वहां बहुत दिनों बाद बहन को आए देख सभी प्रसन्नचित्त तो थे लेकिन छोटी होने के कारण उससे मजाक भी ज्यादा ही हुआ। मनीषा के लिए उसका परिवार उसका अपना है इसलिए कोई भी बात उसने दिल पर ली ही नहीं.. वह मस्ती में शामिल रही लेकिन अभिनव के लिए कुछ बातें बर्दाश्त के बाहर थी क्योंकि मनीषा अब उसकी पत्नी भी थी....
 
मजाक मजाक में मनीषा के दोस्तों के किस्से भी चले और मनीषा के अतीत के हिस्से भी निकले...अभिनव चुपचाप रहा सुनता रहा लेकिन मन में उसके शक के बीज गहराते गए, कुछ क्रोध के बिंदु इकट्ठा होते गए... नतीजा ...वापसी में लौटते हुए वह फट ही पड़ा... मनीषा अवाक थी कि जिसे वह परस्पर मस्ती मजाक और आनंद के पल समझ रही थी वह जहरीले सिद्ध हुए.... गलती किसी की भी नहीं है लेकिन बात यहां मर्यादा की है कि कब कहां कितनी और कैसी मजाक करनी है अगर नए रिश्ते शामिल हो रहे हैं सावधानी ज्यादा जरूरी है.... मनीषा के लिए कुछ भी ऐसा नहीं था जिसका बुरा माना जाए क्योंकि भाई भाभी बहन जीजा सब उसके अपने थे पर अभिनव के लिए सब नए थे.... बहुत दिनों बाद यह डैमेज कंट्रोल हुआ... 
 
ऐसे ही रीमा की शादी के बाद उसके पति जिग्नेश को घेर कर सबने खूब मजाक बनाया, रीमा के लिए पहले तो सब सामान्य लगा लेकिन जब कुछ ज्यादा ही चीजें बढ़ने लगी तो वह खिन्न हो गई कि सिर्फ जिग्नेश का मजाक ही क्यों बनाया जा रहा है और भी तो लोग हैं परिवार में....दरअसल वह अभी रिश्तों को समझने की पायदान पर थी और जिग्नेश के लिए परिवार का मस्ती मजाक रोज की बात...जिग्नेश जिन बातों को हल्के फुल्के अंदाज में ले रहा था रीमा के लिए वही बातें कचोटने वाली थी... नतीजा.. जब उसने जिग्नेश से बात करना चाही तो टका सा जवाब मिला कि मेरा परिवार मुझे कुछ भी कहे तुम्हें इससे क्या??  उन लोगों का मुझ पर पहले अधिकार है तुम तो बाद में आई और वैसे भी हम लोग मस्त मौला है तुम्हारी तरह हर छोटी बड़ी बात का बुरा मानने वालों में से नहीं... 
 
रीमा दुखी होकर कट कर रह गई कि जिस जिग्नेश के स्वाभिमान के लिए वह परेशान है उसे तो कोई फर्क पड़ ही नहीं रहा। 
 
यही होता है जब भी परिवार मिलते मिलाते हैं.... परिवार में कोई न कोई ऐसा जरूर होता है जो मखौल उड़ाकर खुश होता है। आप अगर लंबे समय तक साथ रहें तो उसे इग्नोर करना सीख जाते हैं लेकिन जो पहली बार मिल रहा है, जान रहा है उसके लिए थोड़ा मु्श्किल होता है। नतीजा रिश्तों में कड़वाहट के रूप में सामने आता है। 
 
तो करें क्या? 
 
*रिश्ते कितने ही सगे हो एक जगह एक लेवल पर आकर मर्यादा मांगते ही हैं। उस मर्यादा का ध्यान रखें, पालन करें लेकिन अगर कोई नहीं कर रहा है पालन तो आप अपना फोकस बदल लें। 
 
*यानी मन को दुखी करने के बजाय जहां आपके मन के खिलाफ बातें चल रही हैं वहां से हट जाएं या अपना दिमाग कहीं और लगा लें। 
 
*जैसे आप घर की बुजुर्ग महिलाओं के पास दो घड़ी बैठ जाएं, या युवा रिश्तों में समय बिताएं या फिर बच्चे तो हैं ही सबसे अच्छे... बड़ा परिवार हो तो आप ग्रुप बदल लें। अगर आपको किचन पसंद है तो फालतु की बकवास से बचकर वहां अपनी मदद दीजिए। अगर किताबें या फिल्में या अन्य कोई शौक है, कुछ पसंद है तो समान रूचि वाले व्यक्ति के साथ उसी क्षेत्र के ज्ञान की बातें कीजिए... अनावश्यक लोग अपने आप छंट जाएंगे। 
 
*आप पर असर होगा तो नकारात्मक लोगों के हौसलें बुलंद होंगे। इसलिए खुद पर असर लेना बंद करें। 
 
*यह मान लीजिए कि हर कोई एक जैसी सोच, मानसिकता और समझ का नहीं होता...और अपने व्यक्तित्व के साथ आगे बढ़ जाएं। 
 
*मान अपमान सम्मान उपेक्षा जैसी बातें तो परिवार हैं, हर तरह के लोग हैं तो होगी ही आपको खुद को ही मजबूत रहना है। 
 
ये सब बरसों से चला आ रहा है, चलता ही रहेगा.... समाधान यह है कि ऐसे लोगों को मानसिक रूप से कचरे के डिब्बे में डालते चलो...आपकी जिंदगी में किसकी कितनी अहमियत होना चाहिए यह सिर्फ आप तय करेंगे...  
 
साथ बैठो तो मन का ख्याल रखना दोस्तों 
हर मनुष्य, मन का मजबूत नहीं होता 
जब बिदा लो तो शब्दों का जहर नहीं शहद घोलना 
कि हर शख्स इंसान ही होता है, देवदूत नहीं होता... 

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