मुझे भी लगा.....जब किसी संस्था से हम जुड़े होते हैं तब दी गयी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहें होते हैं। हमारे इस बेहतर काम को या जिम्मेदारी का प्रदर्शन हमें बोनस दिलाता है। पूरे वर्ष के उपरांत या ऐसे दिवाली पर. उस दिवाली के बोनस को ये कहकर रोका जाए कि आपने एक ही डिपार्टमेंट में अपनी सेवाएं दी है। कैसा लगेगा आपको ? फिर आप दलीलें देंगे मैंने कितनी कम छुट्टियां ली फिर फलाना फलाना नहीं आया था पर मैंने काम किया। फिर बीमारी में आधा दिन काम किया। फिर तीन लोग बीमार थे पर मैंने छुट्टी नहीं ली......और न जाने क्या क्या ऐसा जो आपको सही सिद्ध कर दे और बोनस का अधिकारी बना दे। बस ऐसा ही कुछ हमारे घर पर सेवाएं देने वाले लोगों का होता होगा।
आज कुछ संभ्रांत महिलाओं का सम्भाषण सुना जिसमें काम वाली बाइयों का उल्लेख था। किसी ने कहा क्या दो तनख्वाह देनी होंगी? मैंने तो फलां फलां को इतना दिया फिर भी उसने नाखुश होकर मेरा काम छोड़ दिया। ये जब सफाई करेंगी तभी इन्हें बोनस देना चाहिए। हां पर सफाई के अलग से देने कि कोई आवश्यकता नहीं। अभी तो 6 महीने ही हुए है उसे काम पर रखकर तो काहे कि दिवाली...?
केवल हमारी आर्थिक परिस्थिति क्या हमारे आनंद को तय करेगी या आतंरिक परिस्थिति।
चाणक्य का एक वाक्य कहीं पढ़ा था अगर कोई भूखा चोरी करता है तो लाज देश के नागरिकों को आनी चाहिए। बिल्कुल वैसे ही कोई यदि आपकी मदद से त्यौहार मनाए वो भी हर्षोलास से न की भरे हुए श्वास से तो बात बनती है। दिवाली की सफाई परिवार की जिम्मेदारी है। और हमारे आसपास का हर कोई त्यौहार मनाये वो भी हमारी जिम्मेदारी है। तो कितना दिया से अधिक कैसे दिया, कब दिया से अधिक किस सोच से दिया उस पर विचार हो। सफाई का क्या है आज नहीं तो कल हो जाएगी दिवाली एक साल बाद आएगी। सारी सफाई की मशक्कत लक्ष्मी मां को रोकने की है न......वो किसी के रोके नहीं रूकती वरन उसे फैलना अच्छा लगता है। आपसे होकर यदि वो विस्तृत होने लगे तो वो अधिकाधिक आपके निकट आएगी। वो सबकी मां है उसे हर एक से मिलने का मौका दीजिएगा। घर में धूल यहां वहां रह भी जाये मन को चकाचक बना के रखियेगा। उसकी चमक दिवाली को चमकदार बनाएगी.....सबकी दिवाली को... . तो याद रखें, 'उनकी' दिवाली को भी चमकदार बनाइए.... जो हमारे लिए जरूरी हैं... हमारी सेवाओं के लिए जरूरी हैं, हमारे घर के लिए जरूरी हैं।