ईश्वर हो या अल्लाह, दोनों एक ही हैं। दोनों को याद करने से सुकून मिलता है और मन-मस्तिष्क में नेकी के विचार आते हैं। चाहे सुबह-शाम भजन करें या नमाज अदा, दोनों अपने-अपने अराध्य को याद करने के तरीके हैं।
यह कहना है जगदलपुर सेंट्रल जेल के उन बंदियों का, जो इन दिनों गणेश स्तुति के साथ पाँच वक्त नमाज अदा करते हैं।
ईश्वर हो या अल्लाह, दोनों एक ही हैं। दोनों को याद करने से सुकून मिलता है और मन-मस्तिष्क में नेकी के विचार आते हैं। चाहे सुबह-शाम भजन करें या नमाज अदा, दोनों अपने-अपने अराध्य को याद करने के तरीके हैं।
सेंट्रल जेल में सुबह-शाम गणेश स्तुति के साथ तरावीह भी जारी है। इसमें हिन्दू-मुस्लिम दोनों बंदी शामिल होते हैं। गणेश स्थापना के दिन जहाँ 167 बंदियों ने उपवास रखा वहीं तीन हिन्दुओं के साथ 19 बंदी रोजा रख रहे हैं।
जेल परिसर में गणेश स्थापना कर संगीतमयभजन-पूजन में जुटे हैं। 30 दिनों का रोजा रखने वाले तीन हिन्दू प्रतिदिन पाँच वक्त अदा कर शाम को रोजा खोलते हैं।
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विभिन्न अपराधों में सजा पाए कांकेर के राजू गोसाई, जगदलपुर के नंदु यादव व रामप्रवेश बताते हैं कि जेल आने से पूर्व उन्होंने कभी रोजा नहीं रखा था।
यहाँ आने के बाद साथी मुस्लिम बंदियों को देख रोजा रखने की इच्छा हुई और दो सालों से वे पूरे 30 दिनों का रोजा रखते हैं। इससे उनके मन को शांति मिलती है। उनका मानना है कि खुदा उनके गुनाहों को माफ करेंगे और नेकी की राह पर साथ होंगे।
उल्लेखनीय है कि 15 सितंबर को गणेश चतुर्थी पर उपवास रखने वाले 167 बंदियों में छः मुस्लिम बंदी भी थे। जिन्होंने उस दिन गणेश स्तुति के साथ नमाज भी अदा की।
जेलर चौहान बताते हैं विभिन्न पर्व पर उपवास, रोजा रखने वाले बंदियों से काम नहीं लिया जाता है। इनके फलाहार आदि की व्यवस्था जेल नियमों के तहत की जाती है। श्री चौहान के मुताबिक अंतिम रोजा के बाद ईद के दिन बाहर से काजी बुलाया जाएगा।