खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे। समिच्च लोयं समया महेसी आयाणुरक्खी चरमप्पमत्ते॥ प्रमाद के बारे में महावीर स्वामी का कहना है कि विवेक जल्दी ही नहीं मिलता। उसके लिए भारी साधना करनी पड़ेगी। साधक को कामभोग छोड़कर समभाव से संसार की असलियत को समझकर आत्मा को पापों से बचाना चाहिए और बिना प्रमाद के सदा विचरना चाहिए।
इह इत्तरियम्मि आउए जीवियए बहु पच्चवायए। विहुणाहि रयं पुरेकडं समयं गोयम! मा पमायए॥ महावीर स्वामी कहते हैं आयु थोड़ी है। बाधा-विघ्न बहुत हैं। पिछले संचित कर्मों की धूल को तू झटक दे। हे गौतम! पलभर का भी प्रमाद मत कर।
अबले जह भारवाहए ना मग्गे विसमेऽवगाहिया। पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम! मा पमायए॥ घुमावदार विषम मार्ग को छोड़। सीधे सरल मार्ग पर चल। जो कमजोर भारवाहक विषम मार्ग पर चलता है, उसे पछताना पड़ता है। वैसा पछतावा तुझे न करना पड़े, इसका ध्यान रख। हे गौतम! प्रमाद मत कर।