वाद-विवाद में विजय, शत्रु का पराभव हेतु

हेतु- वाद-विवाद में विजय मिलती है, शत्रु का पराभव होता है।

नात्यद्भुतं भुवनभूषण भूतनाथ! भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः ।
तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥ (10)

ओ जगन्नाथ! आपके स्तुतिगान में डूबने वाले आप में समा जाएँ... आपको पा लें... आप से हो जाएँ... इसमें आश्चर्य क्या? दुन्यवी संपत्तिवाले भी अपने इर्दगिर्द घूमनेवालों को अपने से श्रीमान बना देते हैं न?

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो सयंबुद्धीणं ।

मंत्र- ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रौं ह्रः श्राँ श्रीं श्रूँ श्रः सिद्धबुद्धकृतार्थो भव भव वषट् संपूर्णं स्वाहा ।

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