अष्टकूट मिलान में 1.वर्ण, 2.वश्य, 3.तारा, 4.योनि, 5.राशीश (ग्रह मैत्री), 6.गण, 7.भटूक और 8.नाड़ी का मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। कुंडली में मंगल दोष भी देखा जाता है, फिर सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है।
नाड़ी तीन होती है : आद्या नाड़ी, मध्य नाड़ी और अंत्य नाड़ी। अश्वनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पू. फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पू. भाद्र की आद्य नाड़ी। भरणी, मृगशिरा, पुष्य, उ. फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पू.षा. घनिष्ठा, उ. भाद्र की मध्य नाड़ी। कृतिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उ.षा., श्रवण, रेवती की अंत्य नाड़ी होती है।
नाड़ी मिलान क्यों करते हैं : नाड़ी का संबंध संतान से है। दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। शरीर में रक्त प्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है। सुखी और पूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए पति और पत्नी की नाड़ी अलग होनी चाहिए।
नाड़ी दोष क्या होता है : जो लोग नाड़ी मिलाए बगैर विवाह कर लेते हैं जो नाड़ी दोष उत्पन्न होता है। इससे अनेक तरह की आकस्मिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दांपत्य जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं। इसके कारण तलाक तक की नौबत आ जाती है। नाड़ी दोष से वर या वधु में से किसी एक की मृत्यु भी होने की संभावना रहती है। यदि कुंडली में नाड़ी दोष हो तो आने वाली पीढ़ी कमजोर होगी और इस बात की ज्यादा संभावना रहेगी कि कोई संतान पैदा ही नहीं हो।