चातुर्मास के 10 नियम, 10 फायदे

आषाड़ी एकादशी अर्थात देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो चुका है और अब यह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात देवउठनी एकादशी तक रहेगा। यदि चातुर्मास में आने 10 नियम अपना लिए तो होंगे आपको 10 फायदे।

 
 
चातुर्मास के 10 नियम:
1. व्रत करें : चातुर्मास के चार माह में व्रतों का पालन करना जरूरी है।
 
2. भूमि पर सोएं : इस दौरान फर्श या भूमि पर सोना लाभदायक होता है।
 
3. सूर्योदय से पूर्व उठें : सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है।
 
4. अच्छे से स्नान करें : इस माह में अच्छे से प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।
 
 
5. मौन रहें : इन चार माह में अधिकतर समय मौन रहना चाहिए।
 
6. एकाशना : इन चार माह में दिन में केवल एक ही बार ही उत्तम भोजन ग्रहण करना चाहिए। रात्रि में फलाहार कर सकते हैं।
 
7. ब्रह्मचर्य का पालन : इन चार माह में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
 
8. ध्यान योग या संत्संग : प्रतिदिन सुबह और शाम को 20-20 मिनट का ध्यान करें और सूर्य नम:स्कार करें। यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो सत्संग का लाभ लें।
 
 
9. भगवान विष्णु और शिव की करें उपासना : प्रतिदिन सुबह और शाम को विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें या ॐ नमोः नारायणाय, ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र की रोज एक माला सुबह और शाम को जपें। इसी तरह शिवजी की उपासना भी करें। पितरों को तर्पण करें।
 
10. दान करें : इन चार माह में 5 तरह का दान करें। 1.अन्नदान : किसी गरीब को, पशु या पक्षी को भोजन कराएं, 2.दीपदान : नदी के जल में दीप छोड़े या मंदिर में दीप जलाएं। 3. वस्त्रदान : किसी गरीब को वस्त्र का दान करें। 4. छायादान : कटोरी में सरसों के तेल में अपनी चेहरा देखकर उसे शनिमंदिर में दान कर दें। 5.श्रमदान : किसी मंदिर या आश्रम में सेवा करके श्रमदान दे सकते हैं।
 
 
चातुर्मास नियमों के 10 फायदे : 
1. आपकी सेहत में जबरदस्त सुधार होगा। ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होगी। 
 
2. मानसिक संताप मिट जाएंगे।
 
3. सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
 
4. सभी तरह के पापों का नाश हो जाता है।
 
5. सभी तरह के मानसिक विकार मिट जाते हैं और मानसिक दृढ़ता प्राप्त होती है।
 
6. पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
 
 
7. भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा प्राप्त होती है।
 
8. सुख-समृद्धि बढ़ती है। घर में धन धान्य बना रहता है।
 
9. भाई-बंधुओं का सुख प्राप्त होता है। 
 
10. आत्म विश्‍वास, त्याग, समर्पण और संयम की भावना का विकास होता है।

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