उन्होंने पूछा था, कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं ,जैसे चींटी मर गई, हम लोग सांस लेते हैं तो कितने जीव सांस के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं। ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं तो उस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है?
शुकदेव बोले, सुने राजन, यह ऐसे बड़े यज्ञ नहीं हैं। पहला यज्ञ है, जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए।
दूसरा यज्ञ है - चींटी को 10 ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ों के पास डालना चाहिए।
तीसरा यज्ञ है -पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए।
चौथा यज्ञ है -आटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए।
पांचवां यज्ञ है भोजन बनाकर अग्नि भोजन, यानी रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमें घी-चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाएं।