जैन धर्म के अनुसार जानिए 'आत्महत्या' और 'संथारा' में अंतर, पढ़ें 20 खास बातें...

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जैन शास्त्र/पुराणों के अनुसार संथारा शरीर को त्यागने की एक पवित्र विधि है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है जबकि आत्महत्या कायरता एवं क्रोध की निशानी है। आत्महत्या यानी राग-द्वेष और क्रोध में आकर किया गया वह कार्य है जिससे आदमी की जीवनलीला समाप्त हो जाती है। 
 
* आत्महत्या में प्राण क्षणिक समय में निकल जाते हैं जबकि संथारा में कई दिन, सप्ताह और महीने लग जाते हैं।
 
* आत्महत्या सदैव कायर ही करते हैं, जबकि संथारा वीरों का आभूषण है।
 
* आत्महत्या से समाज में हिंसा, उत्पात फैलता है और शांति भंग होती है, जबकि संथारा से एक धार्मिक वातावरण बनता है।
 
* हीनभावना से ग्रसित व्यक्ति ही आत्महत्या करता है, जबकि संथारा को व्यक्ति धर्म से प्रेरित होकर धारण करता है।
 
* आत्महत्या में दूसरे की जबरदस्ती हो सकती है, जबकि संथारा व्यक्ति स्वयं की इच्छा से धारण करता है।
 
* आत्महत्या किसी तपस्या का फल नहीं होता, जबकि संथारा जीवनभर की तपस्या का फल होता है।
 
* आत्महत्या से व्यक्ति नियम से नरक ही जाता है, जबकि संथारा धारण करने वाला व्यक्ति स्वर्ग और मोक्ष जाता है।
 
* आत्महत्या जीवन रूपी मंदिर को जमीन के अंदर दफन करने जैसा है, जबकि संथारा जीवनरूपी मंदिर पर कलश रखने जैसा है।
 
* आत्महत्या निंदनीय है एवं अपराध हैं, जबकि संथारा सराहनीय एवं वन्दनीय है।
 
* आत्महत्या की विधि का वर्णन किसी भी पुराण-ग्रंथ में नहीं मिलता, जबकि संथारा का वर्णन अनेक पुराण-ग्रंथों में मिलता है।
 
* जैन धर्म के किसी भी तीर्थंकर या संत ने कभी आत्महत्या नहीं की जबकि सभी ने समाधी मरण किया है।
 
* सबकुछ खो देने का नाम आत्महत्या है, जबकि सबकुछ पा लेने का नाम संथारा है।
 
* आत्महत्या जीवन को किसी भी समय नष्ट कर देने की एक बला है, जबकि संथारा पूर्ण जीवन जी चुकने के बाद देह त्याग की एक कला है।
 
* आत्महत्या से बड़ा दूसरा कोई पाप नहीं, जबकि संथारा से बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं।
 
* आत्महत्या का धर्म से कोई लेना देना नहीं होता, जबकि संथारा धर्म एवं अध्यात्म का ही विषय है।
 
* आत्महत्या में क्षोभ और असंतोष होता है, जबकि संथारा में खुशी और संतोष होता है।
 
* आत्महत्या करने वाला कभी अमर नहीं हो सकता, जबकि संथारा धारण करने वाला अमर होता है।
 
* आत्महत्या से नरक के अलावा कुछ नहीं मिलता, जबकि संथारा से स्वर्ग और मोक्ष का द्वार खुलता है।
 
* आत्महत्या मातम है जबकि संथारा महोत्सव है।
 
* आत्महत्या यानी राग-द्वेष और क्रोध में आकर किया गया वह कार्य है जिससे आदमी की जीवनलीला समाप्त हो जाती है, जबकि संथारा जीवन की अंतिम साधना है। 
 
(साभार- फेसबुक)  
प्रस्तुति- आरके. 

 

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