इस किले पर श्री कानिफनाथ महाराज ने 1710 में फाल्गुन मास की वैद्य पंचमी पर समाधि ली थी, जहां लाखों श्रद्धालुओं की आस्था बसी हुई है। इस किले के तीन प्रवेश द्वार हैं। कहा जाता है कि यहां की रानी येसूबाई ने कानिफनाथ महाराज से अपने पुत्र छत्रपति शाहू महाराज की औरंगजेब बादशाह की कैद से रिहाई के लिए मन्नत मांगी थी। मन्नत पूरी होने पर उन्होंने मंदिर व किले का निर्माण कराया।
इस मंदिर के निर्माण कार्य में यादव, कैकाडी, बेलदार, वैद्य, गारुड़ी, लमाण, भिल्ल, जोशी, कुंभार और वडारी सहित कई जाति-वर्ग के लोगों ने अपना तन-मन और धन से सहयोग दिया। इसलिए इस तीर्थस्थल को दलितों के पंढरी नाम से भी जाना जाता है। यहां के कई समुदाय श्री कानिफनाथ महाराज को कुल देवता के रूप में पूजते हैं। इस जिले के गर्भगिरि पर्वत पर श्री कानिफनाथ महाराज के साथ ही गोरक्षनाथ, मच्छिंद्रनाथ, गहिनीनाथ और जालिंदरनाथ महाराज की भी समाधियाँ स्थापित हैं।
रेल मार्ग:- अहमदनगर पहुंचने के लिए पुणे से रेल सेवा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग:- मढ़ी गांव अहमदनगर से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने हेतु सरकारी बस या निजी वाहन उपलब्ध हैं।