51 Shaktipeeth : करतोयातट- अपर्णा बांग्लादेश शक्तिपीठ-13

अनिरुद्ध जोशी
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार करतोयातट- अपर्णा बांग्लादेश शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
 
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।
 
करतोयातट- अपर्णा : बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया की सदानीरा नदी के तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति है अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं। यहां पहले भैरवरूप शिव के दर्शन कर तब देवी का दर्शन करना चाहिए। यह स्थान बोंगड़ा जनपद के भवानीपुर नामक ग्राम में स्थित है। 
 
करतोयानदी को 'सदानीरा' कहा जाता है। वायुपुराण के अनुसार यह नदी ऋक्षपर्वत से निकली है और इसका जल मणिसदृश उज्जवल है। इसको 'ब्रह्मरूपा करोदभवा' भी कहा गया है। कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति शिव-पार्वती के पाणिग्रहण के समय शिवजी के हाथ पर डाले गए जल से हुई है, इसीलिए इसकी शिवनिर्माल्यसदृश महत्ता है, इसका लंघन नहीं करना चाहिए। 
 
महाभारत के वनपर्व (85-3) के अन्तर्गत तीर्थयात्राविषयक प्रसंग में यहां के महात्म्य का वर्णन प्राप्त होता है-
करतोयां समासाद्य त्रिरात्रोपोषितो नर:।
अश्वमेधवाप्नोति प्रजापतिकृतो विधि:।।
अर्थात प्रजापति ब्रह्माजी ने यह विधान बनाया है कि जो मनुष्य करतोया में जाकर वहां तट पर स्नान कर तीन रात्रि उपवास करेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होगा। पुराणों में इस पावन शक्तिपीठ की महिमा का वर्णन मिलता है कि  यहां सौ योजन क्षे‍त्र में मृत्यु की कामना तो मनुष्य तो क्या देवता भी करते हैं।
 
बंगलादेश जो वस्तुत: भारत के बंगाल प्रांत का ही पूर्वीभाग है, प्राचीन काल से ही शक्त्युपासना का बृहत्केन्द्र रहा है। इतना ही नहीं, यहां के चट्टल शक्तिपीठ के शिव मंदिर की तो तेरहवें ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में मान्यता है। तंत्रग्रन्थों में इस प्रदेश का विशिष्ट महत्व वर्णित है। 
 
शक्तिसंगमतंत्र के अनुसार यह क्षेत्र सर्वसिद्घिप्रदायक है-
रत्नाकरं समारभ्य ब्रह्मपुत्रान्तंग शिवे।
बङ्गदेशों मया प्रोक्त: सर्वसिद्घिप्रदर्शक:।।
बंगलादेश में चार शक्तिपीठों की मान्यता है-चट्टलपीठ, करतोयातटपीठ, विभाषपीठ तथा सुगन्धापीठ। करतोयातट शक्तिपीठ प्राचीन बंगदेश और कामरूप के सम्मिलनस्थलपर 100 योजन विस्तृत शक्तित्रिकोण के अन्तर्गत आता है।
 
तंत्रचूड़ामणि के पीठनिर्णय-प्रकरण में करतोयातट वर्णन इस प्रकार प्राप्त होता है-
करतोयातटे तल्पं वामे वामनभैरव:।
अपर्णा देवता तत्र ब्रह्मस्वरूपा कराद्भवा।।
 
सरतोयां समासाद्य यावच्छिखरवासिनीम।
शतयोजनविस्तीर्णं त्रिकोणं सर्वसिद्घिदम।।
देवा मरणमिच्छन्ति किं पुनर्मानवादय:।।
पौराणिक कथानुसार- 'सर्वत्र विरला चाहं कामरूपे गृहे गृहे।।' अर्थात इस क्षेत्र के घर-घर में देवी का निवास माना जाता है।
 
जिस प्रकार काशी में श्रीमणिकर्तिका तीर्थ है, उसी प्रकार करतोयातट पर भी श्रीमणिकर्णिका मंदिर था, जहां भगवान श्रीराम ने शिव-पार्वती के दर्शन किए थे। आनन्दरामायण के यात्राकाण्ड (9-2) में श्रीराम की तीर्थयात्रा के दौरान इसका वर्णन प्राप्त होता है:-
 
पश्यन्स्थलानि सम्प्राप्य तप्तां श्रीमणिकर्मिकाम।
करतोयानदीतोये स्नात्वाग्रे न ययौ विभु:।।
भगवान श्रीराम के यज्ञ में अश्व के करतोयातट का ही जाने का वर्णन प्राप्त होता है।
 
ययौ वाजी वायुगत्य शीघं ज्वालामुखीं प्रति।
दोषभीत्या करतोयां तीत्र्वा नैवाग्रतो गत:।।
(आनन्दरामायण, यागकाण्ड 3-35)
आनन्दरामायण में वर्णन आता है कि प्रभु श्रीराम तीर्थयात्रा करते हुए करतोयातट तक गए थे, पर उसके संघन में दोष जानकर उस पार नहीं गए।

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