इंदौर के श्री तांबे स्वामी महाराज कुटी और श्री दत्त मंदिर का इतिहास

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इंदौर। इंदौर के अन्नपूर्णा रोड पर वैशाली नगर में श्री तांबे स्वामी महाराज कुटी एवं श्री दत्त मंदिर स्थापित है। यह जागृत तपोभूमि है जहां श्री केशवानंद सरस्वती तांबे स्वामी महाराज ने निस्वार्थ व प्रेमभाव से श्री वासुदेवानंद सरस्वती टेंबे स्वामी महाराज की भक्ती की थी।
 
श्री तांबे स्वामी का जन्म कार्तिक कृष्ण द्वितीया इसवी सन 1893 में खरगोन में पिता श्री रामचंद्र और माता सौं भागीरथी के यहां हुआ। पूर्वाश्रम में स्वामी का नाम सखाराम रखा गया। आयु के 5 वें वर्ष में बालक सखाराम का व्रतबंध संस्कार हुआ। उत्तरार्ध में स्वामी दशग्रंथी ब्राह्मण बने। स्वामी ने आद्यगुरु श्रीशंकराचार्य की तरह ब्रह्मचर्याश्रम से सीधे संन्यास आश्रम में प्रवेश किया।
 
वासुदेव बाग में ब्रह्मवृंद के समक्ष संन्यास दीक्षा ग्रहण की। संन्यास दीक्षा ग्रहण करने के बाद तांबे स्वामी गरुड़ेश्वर को श्री वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज के दर्शनों के लिए निकलें। मार्ग में 3 दिनों के लिए उज्जैन में मुक्काम किया उज्जैन में वे उसी स्थान पर रुके जहां श्री वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज को श्री नारायणानंद सरस्वती स्वामी महाराज ने दंड दीक्षा दी थी तीन दिवसीय मुक्काम के दौरान एक यति स्वामी महाराज वहां उपस्थित हुए और उन्होंने श्री तांबे स्वामी को कहा कि मैं तुम्हें दंड दीक्षा देने आया हूं इसे ग्रहण कर भिक्षा लेकर गरुडेश्वर जाओ। ऐसा कहकर यति महाराज ने स्वामी को दंड दीक्षा दी और आगे निकल गए।
 
यह सब क्या चमत्कार घट रहा है स्वामी को समझ नहीं आ रहा था। अपराह्न काल स्वामी दीक्षा के लिए निकले और वापस दत्त मंदिर की ओर लौटते हुए उन्हें एक भिक्षार्थी मिला और बोला मुझे भूख लगी है आपके पास जो भिक्षा है वह मुझे दीजिए ऐसा सतत 3 दिन लगातार घटता रहा, इस प्रकार 3 दिनों तक उज्जैन प्रवास के दौरान स्वामी का उपवास रहा, तब उन्होंने गुड़-दाने खाकर ही रहने का निश्चय किया। यह नियम उनके सदेह रहने तक जारी रखा।
 
इंदौर में अपने वास्तव्य के दौरान श्री तांबे स्वामी 1932 से 1944 तक पलासिया में कुटी बना कर रहे। बाद में उनके दर्शनों को सतत जाने वाले स्व. बालकृष्ण दुर्गाशंकर जोशी जी ने उन्हें उनके बागीचे में आकर रहने का आग्रह किया। स्वामी ने उन्हें कहा कि वे अपने इष्ट गुरु श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य सद्गुरु श्री वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज से आज्ञा लेकर वहां आना नियत करेंगे। पश्चात् स्वामी ने गुरु आज्ञा से जोशी जी के बागीचे अन्नपूर्णा रोड पर वैशाली नगर के सामने आना निश्चित किया।
 
स्वामी के आगमन के पूर्व जोशी जी ने वहां पर्णकुटी का निर्माण किया। फाल्गुन शुद्ध अष्टमी को श्री तांबे स्वामी का उस बागीचे में बनी कुटी में आगमन हुआ जिसे आज श्री तांबे स्वामी की कुटी के नाम से जाना जाता है। इसी कुटी परिसर में कालांतर में सुंदर वास्तु के रूप में श्रीदत्त मंदिर का निर्माण हुआ जिसमें चित्ताकर्षक श्री दत्तमूर्ति सबको अपनी और आकृष्ट करती हैं।
श्री तांबे स्वामी ने अपने आगमन के पश्चात कुटी परिसर में चारों दिशाओं में औदुम्बर, आंवला, अशोक और अश्वस्थ (पीपल) के पेड़ लगाएं। दक्षिण दिशा में बिल्वपत्र का पेड़ लगाया। प्रत्येक पेड़ के नीचे शिवलिंग की स्थापना की जिनका बिल्वेश्वर, गरुड़ेश्वर, नर्मदेश्वर और विश्वेश्वर ऐसा नामकरण किया। कालांतर में यहां से दो शिवलिंग और अशोक का वृक्ष लोपित हो गए। 
 
श्री तांबे स्वामी ने कुटी में अपने प्रवास के दौरान वेदाध्ययन, संहिता पठन और नित्य श्रीगणपति अथर्वशीर्ष का पाठ शुरू किया। श्री जोशी कुटुंब के धन्यवाद के लिए आने वाले भक्तों को उन्होंने यहां पर नित्य श्रीगणपति अथर्वशीर्ष का एक आवर्तन निश्चित करने को कहा। इसी समय स्वामी जी के अनन्य शिष्य स्व. श्री आबाजी जोशी जिन्होंने स्वामी महाराज की जीवनी "सद्गुरु लीलामृत" की रचना की है, वे अधिकतर स्वामी जी के साथ उनकी सेवा में उनके साथ रहते थे। 
 
श्री स्वामी महाराज ने श्रावण शुद्ध चतुर्दशी ईसवी सन् 1948 में कुटी में ही ब्रह्मरूप हुए और भौतिक देह का त्याग किया। शिष्य वृंद द्वारा विधि विधान से श्री स्वामी महाराज को बड़वाह में नर्मदा जी में जल समाधि दी गई। आज भी कुटी में स्वामी जी की दिव्यता और चैतन्यता की अनुभूति यहां आने वाले भाविक भक्तजनों को मनः शांति के रूप में अनुभूत होती है।
 
स्वामी जी के निर्वाण के बाद भी यहां भक्तों का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर भक्तों को सफेद संगमरमर से निर्मित श्री दत्त की एक सुंदर मूर्ति दिखाई देती है। दत्त मंदिर के पीछे की तरफ श्री स्वामी महाराज की कुटी है। तांबे स्वामी ने इसी स्थान पर अपने गुरु महाराज श्री वासुदेवानंद सरस्वती टेंबे स्वामी महाराज की शुद्ध, पवित्र और प्रेमभाव से भक्ति की। कुटी के अंदर श्री स्वामी महाराज की गरुड़ेश्वर से लाई हुए मूती हैं और तांबे स्वामी की एक बड़ी तस्वीर है।
 
इस कुटी के बाहर लगे औदुम्बर के वृक्ष में स्वयं श्री दत्त वास करते है ऐसा भक्तों का विश्वास है। वर्तमान में यहां दंड संन्यास की दीक्षा ग्रहण करने वाले पुरुषोत्तम आश्रम स्वामी जी के सानिध्य में स्थापित दत्त भाविक मंडल के माध्यम से सेवा कार्य किए जाते हैं।
 
यहां गुरु पूर्णिमा, श्री वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज की पुण्य तिथि और तांबे स्वामी महाराज की पुण्य तिथि बड़े उत्साह से मनाई जाती है। दत्त जयंती के दौरान आठ दिन तक भव्य उत्सव मनाया जाता है। दूर-दूर से बड़े-बड़े कलाकार स्वामी महाराज के चरणों में स्वराभिषेक करने आते हैं। कुटी और मंदिर को खूब सजाया जाता है। यहां का पवित्र, शांत व आध्यात्मिक वातावरण बरबस ही भक्तों को आकर्षित करता है।

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