क्यों करते हैं अमरनाथ की यात्रा?
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। यहीं पर माता पार्वतीजी को शिवजी ने अमर होने के सूत्र बताए थे। यही कारण है कि रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।
पुराणों में लिखा है कि काशी में दर्शन से 10 गुना, प्रयाग से 100 गुना और नैमिषारण्य से 1000 गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। और कैलाश को जो जाता है, वह मोक्ष पाता है। उल्लेखनीय है कि पुराणों को ईसा पूर्व लिखा गया था। इसलिए यह दावा सही नहीं है कि 17वीं या 18वीं सदी में इस गुफा को खोजा गया और तभी से यात्रा प्रारंभ हुई।
वैसे तो अमरनाथ की यात्रा महाभारत के काल से ही की जा रही है। बौद्ध काल में भी इस मार्ग पर यात्रा करने के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की 'राजतरंगिनी तरंग द्वितीय' में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वीं) शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने जाते थे। इस उल्लेख से पता चलता है कि यह तीर्थ यात्रा करने का प्रचलन कितना पुराना है। बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में अमरनाथ तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है।
बृंगेश संहिता में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है, जहां तीर्थयात्रियों को अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे। उनमें अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग, 3454 मीटर), पंचतरंगिनी (पंचतरणी, 3,845 मीटर) और अमरावती शामिल हैं।