अमरनाथ की गुफा किसने खोजी और किसने शुरू की थी यात्रा, जानिए पौराणिक प्राचीन इतिहास

WD Feature Desk

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025 (11:48 IST)
Amarnath Yatra 2025: बाबा अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर दूर हिमालय पर्वत श्रेणियों में स्थित है। समुद्र तल से 3,978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह गुफा 150 फीट ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है। अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए 2 रास्ते हैं- एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है। अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को 'अमरेश्वर' कहा जाता है। इसे बाबा बर्फानी कहना गलत है। 3 जुलाई 2025 से अमरनाथ यात्रा शुरू होगी और 9 अगस्त 2025 को इसका समापन होगा।ALSO READ: अमरनाथ यात्रा के रजिस्ट्रेशन कल से होंगे शुरू, जानिए कैसे करें आवेदन...
 
क्यों करते हैं अमरनाथ की यात्रा?
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। यहीं पर माता पार्वतीजी को शिवजी ने अमर होने के सूत्र बताए थे। यही कारण है कि रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।
 
किसने खोजी गुफा और सबसे पहले की थी यात्रा?
कश्मीर घाटी में राजा दश और ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का निवास स्थान था। पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। तब ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फ के शिवलिंग को देखा। मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का प्रमुख देवस्थान बन गया, क्योंकि यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी।ALSO READ: शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा, जानिए तारीख और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से जुड़ी सभी जानकारी
 
पुराणों में लिखा है कि काशी में दर्शन से 10 गुना, प्रयाग से 100 गुना और नैमिषारण्य से 1000 गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। और कैलाश को जो जाता है, वह मोक्ष पाता है। उल्लेखनीय है कि पुराणों को ईसा पूर्व लिखा गया था। इसलिए यह दावा सही नहीं है कि 17वीं या 18वीं सदी में इस गुफा को खोजा गया और तभी से यात्रा प्रारंभ हुई।
 
वैसे तो अमरनाथ की यात्रा महाभारत के काल से ही की जा रही है। बौद्ध काल में भी इस मार्ग पर यात्रा करने के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की 'राजतरंगिनी तरंग द्वि‍तीय' में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वीं) शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने जाते थे। इस उल्लेख से पता चलता है कि यह तीर्थ यात्रा करने का प्रचलन कितना पुराना है। बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में अमरनाथ तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है। 
 
बृंगेश संहिता में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है, जहां तीर्थयात्रियों को अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे। उनमें अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग, 3454 मीटर), पंचतरंगिनी (पंचतरणी, 3,845 मीटर) और अमरावती शामिल हैं।

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