यह देखकर भोले भंडारी को दया आ गई और उन्होंने उसे क्षमा कर दिया। इसके बाद वे पुन: तपस्या में चले गए तो कीर्तिमुख ने कहा कि प्रभु मुझे बहुत भूख लगी है मैं अब किसे खाऊं? तपस्या में लीन महादेव ने कहा कि तुम खुद को ही खा लो। यह सुनते ही राक्षस ने खुद को ही खाना शुरू कर दिया। फिर जैसे ही महादेव का ध्यान टूटा तो उन्होंने देखा कि कीर्तिमुख अपने पूरे शरीर को खा गया है और अब सिर्फ हाथ और मुख ही बचा है।
यह देखकर शिवजी ने उसे रोक और कहा कि मैं तुमसे प्रसन्न हुआ। आज से तुम जहां भी विराजमान होओगे वहां कि नकारात्मक शक्तियों को खा जाओगे। वहां के द्वेश और क्रोध को भी खा जाओगे। इसके बाद से ही कीर्तिमुख को देवताओं की तरह पूजा जाने लगा जोकि घर और मंदिर के आसपास की नकारात्मक शक्तियों को खा जाता है। लोग उसके मुख को घर और मंदिर के बाहर स्थापित करते हैं। बहुत से भारतीय मंदिरों में मुख्य द्वार के ऊपर या गर्भगृह के द्वार पर धड़रहित एक डरावना सिर आप को घूरता या मुस्कुराता नजर आएगा यह कीर्तिमुख है।