भूख मिटाने के लिए बेल फलों को गिराने के लिए उसने कुछ तीर पेड़ पर चलाए तो कुछ पत्ते टूटकर नीचे शिवलिंग पर आ गिरे। बिखरे हुए तीरों को अंधेरे में टटोलते हुए वह शिवलिंग के सामने झुका भी। शिवरात्रि पर जागरण के साथ ही अनजाने में ही उसने शिवलिंग को जल से नहलाया, बेल पत्र चढ़ाए और दंडवत भी किया। भोले शंकर थे कि इस पर भी प्रसन्न हो गए।
सालों बाद शिकारी की उम्र का पट्टा खत्म हुआ तो उसे लेने यमदूत आए और अनजाने में किए पुण्य के कारण शिवगण भी उसे कैलाश पर्वत ले जाने पहुंचे। दोनों में युद्ध हुआ और आखिर शिवगण उसे अपने साथ ले जाकर ही माने। जिंदगी भर किए पाप के बावजूद चंद मिनटों के पुण्य ने शिकारी और उसके कुत्ते को मोक्ष का अधिकारी बना दिया।