इन 2 श्राप के कारण कद्रू के पुत्र नाग मुसीबत में फंस गए थे, परंतु आस्तिक ने बचाया

अनिरुद्ध जोशी
महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू नामक पत्नी से नागवंश की उत्पत्ति हुई थी। कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें 8 पुत्र मिले जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- 1.अनंत (शेष), 2.वासुकि, 3.तक्षक, 4.कर्कोटक, 5.पद्म, 6.महापद्म, 7.शंख और 8.कुलिक। इन्हें ही नागों का प्रमुख अष्टकुल कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है। सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के। आओ जानते हैं नागों के श्राप के बारे में।
 
 
1.कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप : महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है।
 
कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।
 
2.श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप : पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां मौन अवस्था में शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन मौन और ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया।
 
ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी। राज परीक्षित की मृत्यु का कारण जब उनके पुत्र जनमेजय को पता चला तो उन्होंने संकल्प लिया की मैं एक ऐसा यज्ञ करूंगा जिसके चलते सभी नाग जाति का समूलनाश हो जाएगा।
 
जनमेजय के यज्ञ के चलते एक एक करके सभी नाग यज्ञ की शक्ति से खिंचाकर उसमें भस्म होते जा रहे थे। कद्रू और कश्यप के पुत्र वासुकी की बहन देवी मनसा ने नागों की रक्षार्थ जन्म लिया था। अधिकतर जगहों पर मनसा देवी के पति का नाम ऋषि जरत्कारु बताया गया है और उनके पुत्र का नाम आस्तिक (आस्तीक) है जिसने अपनी माता की कृपा से सर्पों को जनमेयज के यज्ञ से बचाया था।

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