लक्ष्मी जी के स्वयंवर में नारद जी ने भगवान विष्णु से कहा कि मुझे हरि की तरह बना दीजिए, भगवान विष्णु विनोद कर बैठे और उनका मुख बंदर का बना दिया। क्योंकि हरि का एक अर्थ वानर भी होता है। स्वयंवर में नारद जी हंसी के पात्र बन गए इससे वे कुपित हो गए और विष्णु जी को स्त्री वियोग का शाप दे दिया। त्रेता युग में जब विष्णु जी ने रामावतार लिया तो इसी शाप को स्वीकार कर माता सीता का हरण करवाया और पत्नी वियोग में परेशान हुए। वहीं कृष्णावतार में गांधारी के दिए श्राप को शिरोधार्य कर अपने यादव वंश का नाश किया।