दोनों में युद्ध शुरू हो गया और अंततः सहस्रबाहु के एक तगड़े प्रहार से रावण अचेत होकर धरती पर गिर पड़ा। उसे बंदी बना लिया गया। सहस्रबाहु अर्जुन ने त्रिलोक विजेता रावण को भी धूल चटा दी। बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया। इसके बाद रावण ने सहस्त्रार्जुन से मित्रता की और लंका की ओर प्रस्थान किया।