इतने ऊँचे उठो कि जितना ऊँचा गगन है

महामहिम प्रतिभा देवीसिंह पाटिल (राष्ट्रपति)

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एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में भारत को छः दशक से ज्यादा हो चुके हैं और न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के सिद्धांत हमारा मार्गदर्शन करते रहे हैं। इन साठ वर्षों के दौरान हमने अनेक क्षेत्रों में सफतलाएँ प्राप्त की हैं लेकिन हमारे सामने कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है। हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व है लेकिन हम अपनी कमियों को दूर करने के लिए कटिबद्ध भी हैं। हमने आतंकवाद, विश्वव्यापी मंदी, खाद्यान्न पदार्थों की विश्व बाजार में बढ़ती कीमतों से उत्पन्न चुनौती का सफलतापूर्वक सामना किया है।

एकता हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। यह एक ऐसी विशिष्टता है जो देश के एक अरब से ज्यादा लोगों को एक अरब से अधिक मजबूत संकल्प में बदल देती है। हमें अपने राष्ट्र की अभिलाषाओं और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इस एकता को बनाए रखना है। हमारा एक प्राथमिक कार्य राष्ट्र को आतंकियों और कट्टरपंथियों से बचाना है। इसके लिए सभी एजेंसियों को एक सुदृढ़, समन्वित और संगठित नजरिया अपनाना जरूरी है। हमारे सुरक्षा कर्मियों को यह विश्वास होना चाहिए कि हमारी सीमाओं की सुरक्षा और देश के भीतरी सुरक्षा कार्य में देश का हर नागरिक उनके साथ है।

हमारा संविधान हमारे लोकतंत्र और लोगों के अधिकारों का शासन पत्र है। संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता और सम्मान सुनिश्चित किया गया है। मताधिकार द्वारा लोगों को अपने राजनीतिक विकल्प चुनने का अधिकार है। विकास प्रक्रिया निरंतर एक भागीदारी गतिविधि बनती जा रही है। सूचना अधिकार अधिनियम से नागरिक शासन से जवाबदेही माँग सकते हैं। इन सभी के कारण नागरिक, राष्ट्र के विकास से लाभान्वित होने का केंद्रबिंदु है और यह विकास में एक विशिष्ट भूमिका निभाता है। सफलता हासिल करने के लिए सभी को अपनी भूमिका और जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा।

गाँधीजी कहा करते थे कि हम सभी को इसी भावना से कार्य करना चाहिए। हमें क्षेत्रीयता, संकीर्णता, सांप्रदायिकता और जातिवाद के विचारों पर नहीं चलना है। ऐसे विचार उन सिद्धांतों के खिलाफ हैं जिन्हें हमने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ने के लिए चुना था। निस्संदेह सभी भारतीयों में अनेक समानताएँ हैं, लेकिन भारतीयता उनमें सबसे बड़ी पहचान है। हमारी यह पहचान अनेकता में एकता के हमारे मूल सिद्धांत पर आधारित है। बहुलवादी समाज में सांप्रदायिक और जातीय हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। फूट डालने वाली प्रवृत्तियों का मुकाबला करने के संकल्प के साथ ऐसे भारत के लिए कार्य करें जिसमें भारतीयता हमारी पहली पहचान हो। उसके बाद ही कोई दूसरी बात आती है।

भारत पर विश्व परिस्थितियों का प्रभाव पड़ा है, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास के रास्ते पर कायम रहने की बुनियादी ताकत और सहनशक्ति है। हमारा घरेलू बाजार बहुत बड़ा है और समाज के सभी वर्गों की क्रयशक्ति बढ़ाकर हम आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं। जब आर्थिक विकास लोगों की बेहतरी के लिए हो तभी सामाजिक उद्देश्य पूरे हो सकते हैं। हमारा प्रयास सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति को शिक्षा, स्वास्थ्य, और रहन-सहन की बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने का है। हमने पिछले साठ वर्षों में बहुत प्रगति की है, लेकिन अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। एक विकसित देश बनने के लिए हमें सतत प्रयास करने होंगे।

हम समावेशी दृष्टिकोण अपनाकर सभी क्षेत्रों और वर्गों के लोगों को शामिल करके विकास प्रक्रिया की असमानता को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। दूरदराज इलाकों में भी आर्थिक विकास के अवसर सुलभ कराने चाहिए। पूर्वोत्तर सहित देश के सभी इलाकों में बुनियादी सुविधाओं का विकास करना चाहिए। गरीब, वंचित लोगों को मुख्यधारा से जोड़ते हुए उन्हें विकास के दायरे में शामिल किए जाने की आवश्यकता है। संतुलित विकास का लाभ पहुँचाने के लिए ग्रामीण विकास एक सफल माध्यम बन सकता है।

राष्ट्र को हमेशा अपने कृषि क्षेत्र और खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता पर ध्यान देना चाहिए। बेहतर तकनीक और कृषिगत सुविधाओं के विकास से अपनी कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाकर हम देश को उन्नत बना सकते हैं। किसानों की आय बढ़ाकर हम आंतरिक आर्थिक माँग में भी वृद्धि कर सकते हैं। हमें अपने विविधतापूर्ण वन क्षेत्र के जीवों, वनस्पतियों और वन संपदा का सदुपयोग करके उसके विशेष प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए। इससे पर्यावरण संतुलन के साथ आर्थिक विकास को भी गति मिलेगी ।

जनसंख्या की दृष्टि से भारत एक युवा राष्ट्र है। युवा आने वाले कल की उम्मीद और राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति हैं। विकास और समृद्धि की उनकी आशाएँ वास्तव में राष्ट्र की अभिलाषाएँ हैं। कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण के जरिए उनमें लाभकारी रोजगार संभावनाएँ पैदा की जा सकती हैं। युवा उपलब्ध अवसरों का पूरा लाभ उठाएँ। आत्म विकास करने के साथ उन्हें हिंसा का त्याग करने और मानव कल्याण के लिए कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए।

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति होने के कारण मेरी भावनाएँ स्वाभाविक रूप से महिलाओं के साथ जुड़ी हैं। मैं उनकी क्षमता को पूरी तरह साकार करने में उनके मार्ग में आने वाली बाधाओं और कठिनाइयों से परिचित हूँ। उनका सशक्तीकरण जरूरी है। यह कार्य उन्हें शिक्षा और आर्थिक सहयोग देकर किया जा सकता है। महिला-पुरुष समानता के लिए प्रत्येक मंत्रालय, विभाग और सभी राज्य सरकारों को आगे आना चाहिए। स्वंय सहायता समूह महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए काफी प्रभावी सिद्ध हुए हैं।

हमारा प्रयास होना चाहिए कि प्रत्येक योग्य महिला को स्व-सहायता समूह के अंतर्गत लाएँ जिससे वे आर्थिक दृष्टि से संपन्न हो सकें। हमें समाज में महिलाओं के प्रति व्याप्त संकीर्णता को भी समाप्त करना होगा। इससे कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों को नष्ट करने की जरूरत है। मीडिया को भी इस दिशा में काम करते हुए लोगों की मानसिकता को बदलने का प्रयास करना चाहिए।

देशवासियों से मेरी अपील है कि वे राष्ट्रसेवा के लिए पूरे प्रयास करें। भारत को एक महान सभ्यता होने का गौरव प्राप्त है। यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत को एक महान राष्ट्र बनाने के लिए उसका प्रत्येक नागरिक वचनबद्ध है। मैं हिन्दी के एक प्रसिद्ध कवि के इन शब्दों द्वारा राष्ट्र की अभिलाषा प्रकट करती हूँ 'इतने ऊँचे उठो कि जितना ऊँचा गगन है।' (नईदुनिया)

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