गणतंत्र दिवस : स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती

डॉ. पुरुषोत्तम दुबे
 
स्वतंत्रता हमारे हर अभिप्राय में हो सकती है। हमको ध्यान रखना होगा कि जो कार्य हम कर रहे हैं अथवा करने जा रहे हैं, उस कार्य का समग्र नहीं तो, थोड़ा ही अंश राष्ट्रहित में जा रहा है अथवा नहीं। नहीं के उत्तर में उस कार्य को हाथों में न लें। राष्ट्र में रहते हुए हर कार्य का यही व्यापक अर्थ होता है कि वह कार्य राष्ट्रहित में हो। इससे हटकर यदि कोई कार्य हाथों में लेने की सोची तो वह निहित स्वार्थ के पक्ष में किया जाने वाला कार्य होगा। ऐसा कार्य राष्ट्रीय हित को ताक में रखकर व्यक्तिगत हित को साधने वाला माना जाएगा।
दसों दिशाओं से स्वतंत्रता लुभाती है। यही महती आकर्षण है, जिसको हमने भारतीय स्वतंत्रता के परिप्रेक्ष्य में समझा है। हमारे मस्तकों पर स्वतंत्रता की शीतल छाया वर्तमान है। तभी तो हमने हमारी स्वतंत्रता के परम सान्निध्य में रहते हुए हमारे विचारों में राष्ट्रबोध को गहरे तक उतार रखा है। यह हमारी स्वतंत्रता का प्रभाव ही माना जाएगा कि हमने हमारे देश भारत और हमारी भारतीयता के मध्य में कोई पार्थक्य नहीं रख छोड़ा है। फलस्वरूप हम अभिमानपूर्वक कहते हैं कि हम वही हैं जो हमारा भारत है। 
 
भारत की स्वतंत्रता कुर्बानियों का विहंसता दर्पण है। इसमें झांककर हम हमारे शहीदों को जब चाहें तब मूर्त रूप में देख सकते हैं। इस प्रक्रिया में अक्सर जो संकल्प सूत्र हमारे हाथों में लगता है, वह हमारे राष्ट्रीय स्वातंत्र्य-प्रेम को अक्षुण्ण बनाए रखने का होता है। हम कितने भाग्यशाली हैं कि शहीदों ने भारत की स्वतंत्रता का रूप सपनों में देखा था जबकि हम भारत की स्वतंत्रता का रूप प्रत्यक्ष में देख रहे हैं। शहीदों की कुर्बानियों के मूल्य पर हमको स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। अतः समय आने पर यदि हमको हमारी स्वतंत्रता पुकारती है तो उसके एक आह्वान पर हमें उसकी अस्मिता के लिए प्राण-पण से तैयार होकर निकलना होगा। तब यही हमारा अभीष्ट भी होगा। और तब यही हमारा लक्ष्य भी होगा। 
 
हम हर घड़ी मोहित हैं, हमारे मन में स्वतंत्रता की नाचती हुई मयूरी पर। स्वतंत्रता की मयूरी हमारे प्रीतिकर चाव को कभी खट्टा नहीं होने देती है लेकिन तब भी हमको एक बात से सावधान रहना होगा। उस अदृश्य दुश्मन से जो हमारी स्वतंत्रता की मयूरी पर घात लगाने के निमित्त भविष्य की किसी गर्त में हथियारों को पैना किए हुए बैठा है। ऐसा नहीं हो कि हम हमारी स्वतंत्रता की नृत्य करती मयूरी के नृत्य-पगे भावों से इतने प्रमादी अथवा उन्मत्त हो जाएं कि आगे की स्वतंत्रता के प्रति हमारे मूल कर्तव्यों का भान हम भूल जाएं। अतः हम हमारी स्वतंत्रता की मयूरी का नृत्य आम आदमी की भांति भले ही देखें लेकिन हर घड़ी हमारे साथ इस भान को ओढ़े हुए रखेंगे कि हम स्वतंत्रता की मयूरी के पहरुए भी हैं। 
 
स्वतंत्रता का स्वभाव ही सबका मार्ग प्रशस्त करने का होता है। स्वतंत्रता कभी तंग-हृदय नहीं होती है। उसको कृतज्ञता ज्ञापित करनी आती है क्योंकि स्वतंत्रता की चौकसी करना दुष्कर कार्य है। देखा जाए तो स्वतंत्रता पुष्प की गंध से भी अधिक महीन होती है। इसलिए स्वतंत्रता को सावधानीपूर्वक सहेजकर रखना होता है। आकृति से सुकुमार स्वतंत्रता राष्ट्र की डोली में सुरक्षित होकर बैठ जाती है, जिसको लोकतंत्र के कहार उठाए फिरते हैं। भारत वर्ष विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रधारी राष्ट्र है। इस कारण इस विशाल राष्ट्र में स्वतंत्रता का अर्थ बहुत व्यापक है। भारतीय लोकतंत्र के सिरहाने नानाविध जाति, धर्म और विभिन्न संस्कृति द्वारा परिचालित लोग बैठे हुए हैं तथा भारतीय लोकतंत्र के श्रीचरणों में विभिन्नाता में एकता का गौरवशाली रूप विद्यमान है। इस प्रकार भारतीय लोकतंत्र नख से शिख तक विविधता से लकदक है। फलस्वरूप यह बात हमारी कल्पना में खरी बैठती है कि भारत जैसा राष्ट्र, जो विविधता से संपन्न है, विश्वभर में सबसे बड़ा आदर्श राष्ट्र है। और यह भी कि ऐसा उच्चादर्श वाला राष्ट्र अपने नन्हे-बड़े हाथों से समान उल्लास के साथ भारतीय स्वतंत्रता की पालकी को सुरक्षितअर्थ में थामे हुए है। 
 
अब एक बार जब भारत ने स्वतंत्रता की रोटी का स्वाद चख लिया है तो यही आहार भारत को प्रिय लगने लगा है। स्वतंत्रता की रोटी सचमुच के 'आटे' की रोटी नहीं होती है बल्कि 'भावों' की रोटी होती है। हमारे भारत में 'भाव-भोग' की बड़ी कीमत है। हमारी मान्यता में हमारे भगवान भी भक्त के भावों के भूखे होते हैं। हमारा राष्ट्र भी अपनी नागरिकता के भावों का भूखा है। हम राष्ट्र के प्रति समर्पित होते रहे हैं, यही हमारी भाव-धारा है। हम हमारी इसी भाव-धारा से राष्ट्र का परिपोषण करते रहें। हमारा यही उत्कट ध्येय हमारे राष्ट्र की कामना है।  
 
स्वतंत्रता द्विअर्थी कदापि नहीं होती है। वह सदैव ही एक अर्थ को ही वहन किए होती है। हम स्वतंत्र हैं, पहले यह मानना गलत होगा। हमारा राष्ट्र स्वतंत्र है। राष्ट्रीय स्वतंत्रता ही अंततः हमारी स्वतंत्रता है। लेकिन हममें से प्रत्येक को यह चाहिए कि हम हमारी राष्ट्रीय स्वतंत्रता का भान पारस्परिक रूप से एक-दूसरे को कराते रहें क्योंकि हमारी स्वतंत्रता की उम्र अर्द्धशती के ऊपर है। उम्र के इस पड़ाव पर आकर यह कहीं न घट जाए कि हम हमारी स्वतंत्रता का भान ही भूल बैठें। प्रत्युत स्वतंत्रता की याद व खबर हमको कदम-प्रति-कदम रखना है। इतना नहीं, स्वतंत्रता की निगरानी में होशियार भी बने रहना है। सही मायने में हम हमारे देश भारत के सजग गश्ती हैं। हमारा सो जाना, हमको कहीं भयावहता की स्थिति में न ले जाए और हम समय पर जाग न सकें, ऐसी अवस्था में हमारी स्वतंत्रता हमको कभी क्षमा नहीं करेगी। स्वतंत्रता का बोध हमको हमारे प्रत्येक तीज-त्योहार के साथ जगाते चलना होगा। होली के गुलालों में हम राष्ट्रीय तिरंगे को नहीं भूलें। दीपावली के दीपोत्सव में हम शहीदों के नाम 'एक दीप' जलाना न भूलें। स्वाधीनता और गणतंत्र दिवस पर एक-दूसरे को दी जाने वाली बधाइयों में राष्ट्र के गौरव का बखान करें। हमको यदि हमारी रगों से स्वतंत्रता को पहचानना है तो हर प्रिय वंदना के साथ मातृभूमि की वंदना भी करें। 
 
स्वतंत्रता हमारे हर अभिप्राय में हो सकती है। हमको ध्यान रखना होगा कि जो कार्य हम कर रहे हैं अथवा करने जा रहे हैं, उस कार्य का समग्र नहीं तो, थोड़ा ही अंश राष्ट्रहित में जा रहा है अथवा नहीं। नहीं के उत्तर में उस कार्य को हाथों में न लें। राष्ट्र में रहते हुए हर कार्य का यही व्यापक अर्थ होता है कि वह कार्य राष्ट्रहित में हो। इससे हटकर यदि कोई कार्य हाथों में लेने की सोची तो वह निहित स्वार्थ के पक्ष में किया जाने वाला कार्य होगा। ऐसा कार्य राष्ट्रीय हित को ताक में रखकर व्यक्तिगत हित को साधने वाला माना जाएगा। 
 
माना, वैयक्तिक स्वतंत्रता भी कोई बात हुआ करती है लेकिन अंततः व्यक्ति भी तो राष्ट्र की इकाई होता है। अतः एक व्यक्ति की वैयिक्तक स्वतंत्रता भी व्यापक अर्थ में राष्ट्रीय स्वतंत्रता का एक अंश ही है। इसलिए हमको यह मानकर चलना चाहिए कि हम राष्ट्रीय स्वतंत्रता की सीमामें होकर ही वैयक्तिक स्वातंत्र्य से निःसीम हो सकते हैं अर्थात हम राष्ट्रीय स्वतंत्रता की सीमा तक स्वयं को स्वतंत्र मानकर चल सकते हैं। हम वैयक्तिक स्वातंत्र्य में चाहे जिएं  लेकिन इस उद्देश्य से हमारा जीवन जीना राष्ट्रीय स्वातंत्र्य से कटिबद्ध रहे, इस विस्तृत सोच का प्रभाव हमको स्वीकार करना होगा। 
 
अब आइए, हम स्वतंत्र भारत अथवा भारतीय स्वतंत्रता की एक तस्वीर बनाएं क्योंकि जिस पीढ़ी के लिए हमको यह तस्वीर बनानी आवश्यक है वह भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात जन्मी पीढ़ी है। इस नई पीढ़ी के परिज्ञान के लिए हमको भारतीय स्वतंत्रता के स्वरूप का एक चित्र उकेरना है। अलबत्ता यह काम एक गहरी सोच का है क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता का चित्र मात्र चित्र न होकर दिशाबोध कराने वाला तथा नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद भी होगा। अतः क्यों नहीं हम सब मिलकर ऐसे चित्र के लिए अपनी-अपनी योजनाएंं  रखें। इस दृष्टि से हम हमारे राष्ट्रीय अनुभवों को संचित करें। राष्ट्रीय विचारधारा के परिपालन में हमसे कहां  भूल हुई तथा कहां  हम नासमझ बने रहे, इसका लेखा-जोखा हम प्रस्तुत करें।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में संबंधों को लेकर हमने क्या खोया और क्या पाया है, इसकी स्पष्ट विवेचना के साथ अपने तथ्य रखें। हमारी राष्ट्रीय स्वतंत्रता पर कौन से खतरे मंडरा रहे हैं तथा उनके निदान में हम किन बिन्दुओं को लेकर कृत संकल्प बनें, इस तरह की धारणा का उल्लेख भी हमें करना होगा। साथ ही चित्र में इस बात का रंग प्रमुखता के आधार पर भरना होगा कि किन-किन मूल्यों की भरपाई के उपरांत हम हमारे भारत को स्वतंत्रता का रूप दे पाए हैं। उन सारी कुर्बानियों की गणना भी चित्र के शीर्ष पर चमकने वाले तारे के रूप में करनी होगी, जिन कुर्बानियों की दास्ता से हमारी स्वतंत्रता का इतिहास स्वर्णाक्षरों से भर गया है। 
 
निःसंदेह उक्त चित्र भारतीय स्वतंत्रता का ऐसा 'उद्घोष' बनकर सामने आएगा, जिसके छत्र तले संपूर्ण युवा पीढ़ी न केवल स्वतंत्रता के उत्कृष्ट अर्थ को जान पाएगी अपितु स्वतंत्र भारत के प्रति अपनी भूमिकाओं से भी परिचित बनेगी।

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