मेरी नींद चुराने वाले जा तुझको भी नींद ना आए पूनम वाला चाँद तुझे भी सारी-सारी रात जगाए।
तुझे अकेले तन से तेरे बड़ी लगे अपनी ही शैय्या चित्र रचे वह जिसमें चीर हरण करता हो कृष्ण कन्हैया बार-बार आँचल सम्भालते तू रह-रह मन में झुँझलाए कभी घटा सी घिरे नयन में कभी-कभी फागुन बौराए।
बरबस तेरी दृष्टि चुरा लें कँगनी से कपोत के जोड़े पहले तो तोड़े गुलाब तू फिर उसकी पंखुड़ियाँ तोड़े होंठ थके 'हाँ' कहने में भी जब कोई आवाज लगाए चुभ-चुभ जाए सुई हाथ में धागा उलझ-उलझ रह जाए।
बेसुध बैठ कहीं धरती पर तू हस्ताक्षर करे किसी के नए-नए संबोधन सोचे डरी-डरी पहली पाती के
'जियु बिनु देह नदी बिनु नारी' तेरा रोम-रोम दोहराए ईश्वर करे ह्रदय में तेरे भी कोई सपना अँकुराए। जा तुझको भी नींद ना आए।