एक खुली हुई खिड़की है...
मेरे मन के घर के आँगन में...
ठहरी हुई है...
पट पर तेरे राह देखते ...
मेरे
आ जाते हैं आँखों में अनायास ही आँसू,
पीड़ा के सारे पल खामोश सिरहाने बैठे ...
दिल लगाने की भूल थे पहले।
अब जो पत्थर हैं फूल थे पहले।
तुझसे मिलकर हुए हैं कारआमद1
चाँद-तारे फुज
देश-विदेश
बादलों के पार
सपनों के गाँव
यादों की गलियाँ
और ज़िंदगी की साँसें ...
बता तो क्या तू म...
बैठ पीपल छाँव में, मन!
साँवरी! तुमको पुकारे!
बाँस-वन के झुरमुटों में
बाग-बागिन खेलते फिर,
चीखता है -
मधु की धार कह रही है
निरंतर,
शिराओं में बहती हुई -
प्यार की अंखुआने का
शायद यही मौसम है ...
तभी व
अपनी जगह जमे हैं, कहने को कह रहे थे
सब लोग वरना बहते दर्या में बह रहे थे
जिंदगी को पंख लग जाते
काश! तुम मेरे लिए गाते
मुस्करातीं झूमतीं कलियाँ
और जंगल फूल बरसाते ...
हर तमन्ना मिटा गया कोई
चोट दिल पर लगा गया कोई
।
जिसकी बुनियाद मैंने रखी थी,
वो इमारत बना गया कोई