प्रेम कविता : गुमनाम पुल अच्छे थे

WD Feature Desk

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025 (13:26 IST)
- नवीन रांगियाल
 
गुमनाम पुल सबसे अच्छे थे
जिन्होंने सबसे जर्ज़र और खतरनाक होते हुए भी उन्हें सुरक्षित रखा जो यहां आए और अंधेरों में घण्टों बैठे रहे 
 
उनके वादों को याद रखा
उन्हें अपनी आदिम दीवारों से सटकर खड़े रहने के मौके दिए
 
जंग लगी लोहे की कमज़ोर जालियां अच्छी थीं
जिनसे उड़कर ज़्यादातर मुर्गियां भागने में कामयाब रहीं
 
वो सारी बरसातें अच्छी थीं, जिनके थमने पर मजदूर काम के लिए निकले
और लड़कियां अपने प्रेमियों के साथ भीगकर घर लौटीं
 
सारे बेनाम पेड़ सबसे सुंदर थे जिनकी टहनियों पर हमने कुरेदकर अपने नाम लिखे
 
वो सब जगहें अच्छी थी जहां- जहां हमने हाथ पकड़े
अंधेरे अच्छे थे जिन्होंने पहली- पहली बार चूमने के मौके दिए
 
सारे फूल अच्छे थे जिन्हें उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ कभी अर्थियों पर रखा गया, कभी देवताओं के सिर पर
 
सबसे अच्छा था तुम्हारा निर्ममता के साथ चले जाना, और पीछे मुड़कर नहीं देखना
तुम्हारे जाने के बाद ही मैंने इंतज़ार सीखे, देर तक एक ही जगह पर खड़े रहना सीखा
 
मुझे पसंद है तह कर के टेबल पर रखे हुए रुमाल
जिन्हें देखकर मैं सोचता था तुम वापस आओगी और मेरी जिंदगी को ठीक करोगी
 
अगर तुम पूछो--
अगर तुम पूछो मुझसे
मुझे सबसे ज़्यादा क्या पसंद है तो मैं कहूंगा 
मुझे सबसे ज़्यादा तुम्हारी पीठ अच्छी लगती है
मैं जानता हूं-- 
मुझे सबसे ज़्यादा जी भरकर उसी ने चाहा।

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