भोपाल। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध अब निर्णायक दौर में पहुंच गया है। राजधानी कीव और दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव पर कब्जे को लेकर रूसी सेना अब अंतिम प्रहार कर रही है। कीव और खारकीव यूक्रेन के वह दो सबसे बड़े शहर है जहां पर सबसे अधिक संख्या में भारतीय स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई करने जाते है। मध्यप्रदेश के गृह विभाग को विदेश मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक प्रदेश के 454 बच्चे यूक्रेन में युद्ध शुरु होने के समय मौजूद थे जिसमें से अब तक 225 की सुरक्षित वापसी हो चुकी है वहीं अन्य फंसे बच्चों की वापसी के प्रयास तेज है।
राजधानी भोपाल की अवधपुरी की रहने वाली शिवानी सिंह और रायसेन जिले की रहने वाली सुचि भी उन स्टूडेंट्स में से एक है जो युद्ध शुरु होने पर यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में फंस गई थी। खारकीव में सात दिन युद्ध के साए में रहने के बाद शिवानी और उसकी दोस्त सुचि लंबी जद्दोजहद के बाद आज हंगरी पहुंच पाई है।
वेबदुनिया पर पढ़िए शिवानी और उसकी दोस्त सुचि के खारकीव से निकलकर हंगरी तक पहुंचने के संघर्ष की पूरी कहानी
मैं खारकीव नेशनल यूनिवर्सिटी में MBBS के चौथे साल की छात्र हूं। रूस और यूक्रेन में युद्ध शुरु होने के समय मैं और मेरी दोस्त सुचि खारकीव में थे। युद्ध शुरु होने पर रूसी सेना के हमले से बचने के लिए हम लोगों जान बचाने के हॉस्टल से भागकर एक बंकर में छिप गए। जिस बंकर में हम छिपे थे उसकी हालत बहुत ही खराब थी। स्थानीय लोगों ने बताया था कि वह बंकर सोवियन यूनियन के समय का बना था।
बंकर मे रहने के दौरान बाहर रह-रहकर लगातार बम धमाकों की आवाज सुनाई देती थी। बंकर में चार दिन रहने के बाद हमारे पास खाना और पीने का पानी भी खत्म हो गया। ऐसे में हमने अपनी जान बचाने और सुरक्षित निकालने के लिए सरकार से गुहार लगाई। बंकर में चार दिन गुजारने के बाद जब हमारे पास पहले से स्टोर किया गया खाना, बिस्किट और पानी भी खत्म हो गया तब हमे अपनी जान बचाते हुए 28 फरवरी को अपने हॉस्टल वापस लौटना पड़ा।
हॉस्टल में रहने के दौरान हम को बार-बार बाहर धमाकों की आवाज सुनाई पड़ती थी। ऐसे में हम लगातार खारकीव से निकलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन खारकीव में सब कुछ बंद होने के चलते और रह-रहकर हो रहे धमाकों के चलते बाहर नहीं निकल पा रहे थे। इस बीच सरकार की ओर तत्काल खारकीव छोड़ने की एडवाइजरी के बाद आखिरकार एक मार्च को तमाम खतरों के बीच अपनी दोस्त सुचि और अन्य भारतीय छात्रों के एक ग्रुप के साथ रेलवे स्टेशन के लिए निकले।
खारकीव रेलवे स्टेशन पर हालात बहुत ही खराब थे और लोगों की भारी भीड़ मौजूद थी, ऐसे में हम लोग किस तरह ट्रेन में सवार हो पाए, ट्रेन में खड़े होने की जगह भी नहीं थी। इस बीच घर वालों से संपर्क में बने रहने के बीच हम छात्रों ने एक वाट्सअप ग्रुप बनाया और इस ग्रुप हर छात्र के परिवार से एक सदस्य को जोड़ा। ऐसा हमन फोन की बैटरी को बचाए रखने और इमरजेंसी में घर वालों से संपर्क रखने के लिए किया। इसके बाद एक लंबे सफर और संघर्ष के बाद आखिरकार हम लोग हंगरी पहुंच गए है और अब भारतीय छात्र जहां ठहरे वहां जा रहे है।
(आज खारकीव से हंगरी पहुंची शिवानी सिंह के परिजनों ने वेबदुनिया को जैसा बताया)