भारत में बालमजदूरी गैरकानूनी है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में इस वक्त लाखों बच्चे बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं। एक स्वतंत्र संस्था के मुताबिक मेघालय की निजी कोयला खानों में लगभग सत्तर लाख बच्चे मजदूर हैं।
राजधानी शिलांग मात्र 90 किलोमीटर दूर जयंतिया की खूबसूरत पहाड़ियाँ हैं, लेकिन इनके करीब जाते ही बाल मजदूरी की कड़ुवी सच्चाई सामने आ जाती है। यहाँ कई कोयला खदानें हैं और उनमें कालिख से पुते हुए हजारों बाल मजदूर हैं। यहाँ खदानों के भीतर जाने का रास्ता बेहद संकरा और उबड़-खाबड़ है। यह भी एक वजह है कि बच्चों को इसमें झोंक दिया गया है।
इम्पल्स की निदेशक हसीना खारबहीह कहती है, 'कोयला निकालने के लिए यहाँ चार पहियों वाली छोटी-सी गाड़ी का इस्तेमाल किया जाता हैं। इस गाड़ी के पहियों को बाहर से रस्सी से बाँध दिया जाता है और इस पर बैठकर बच्चे तंग खानों के अंदर घुसकर कोयला निकालते लिए हैं। कोयला मेघालय की आमदनी का सबसे बड़ा माध्यम है।'
मेघालय के खनन और भूगर्भशास्त्र सचिव अरिंदम सोम कहते हैं कि देश के लिए काला सोना माने जाने वाली कोयला इंडस्ट्री अभी निजी हाथों में है, इसलिए सरकार का इस पर सीधा नियंत्रण नहीं है। मेघालय में 40-50 सालों से खनन का काम होता आ रहा है। कोयले की खानों को किराए पर भी नहीं दिया जाता है। यहाँ खान के मालिक के पास सारे अधिकार होते हैं।
लेकिन निराशा की बात यह है कि इस स्थिति के बावजूद मेघालय सरकार इसमें दखलंदाजी नहीं करती है। हसीना खारबहीह कहती हैं कि सीमा लाँघकर पड़ोसी देशों से आठ से सोलह साल के बच्चों को कोयले की खानों में काम करने के लिए लाया जाता है। हालाँकि इन देशों की सीमा पर चौकसी की जाती है, लेकिन कोयला खदानों की तस्वीर बताती है कि यह चौकसी कितनी सजग और कड़ी है।
आरोप हैं कि सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं देती, खुद अरिंदम सोम कहते हैं, 'सीमा से आने-जाने के कई रास्ते हैं। हम इसे पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकते। यहाँ बंधुआ मजदूरी नहीं है, लेकिन बाल मजदूरी अभी भी होती है। इसके खिलाफ लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जा रही है।'
अधिकारिक आँकड़ों के अनुसार दक्षिण अफ्रीका में बाल मजदूरी के शिकार करीब 300 करोड़ बच्चे हैं। इनमें पाँच से चौदह साल के दो करोड़ बच्चे हैं, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि दक्षिण एशिया में भी हालात कम खराब नहीं हैं। भारत, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों के पास बाल मजदूरी के आँकड़े ही नहीं हैं। भारत में मेघायल के हालात सरकारी दावों की खिल्ली उड़ाने के लिए काफी है।