पीएम मोदी अगर कर दें यह काम, तो तेजी से होगा विकास...

बुधवार, 31 मई 2017 (13:05 IST)
भारतीय कालगणना के अनुसार एक दिन और रात सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक में पूर्ण होते हैं जबकि अंग्रेजी कालगणना के अनुसार रात के 12 बजे जबरन दिन बदल दिया जाता है, जबकि उस वक्त उस दिन की रात ही चल रही होती है। समय की यह धारणा पूर्णत: अवैज्ञानिक है। यदि इस परंपरा को बदल दिया गया तो देश में इतनी बड़ी क्रांति होगी जिसका की अंदाजा लगाना मुश्किल है।

टाइम जोन को समान समय क्षेत्र कहते हैं। दुनिया की घड़ियों के समय का केंद्र वर्तमान में ब्रिटेन का ग्रीनविच शहर है। यहीं से संपूर्ण दुनिया की घड़ियों का समय तय होता है। इंडियन स्टैंडर्ड टाइम भी वहीं से तय होता है। आज के जमाने में घड़ियां स्थानीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार चलती हैं, उसी हिसाब से सारे काम होते हैं। लेकिन क्या ये जरूरी है कि हर देश में एक ही टाइम जोन हो?
 
19वीं शताब्दी में भारतीय शहरों में विक्रमादित्य के समय से चले आ रहे स्थानीय समय को सूर्य के मुताबिक तय किया जाता था लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में भारत में सबकुछ बदल गया। दरअसल, उस काल में रेलगाड़ियों का समय तय करने वालों ने यह परंपरा बदली। रेलवे नेटवर्क के विस्तार और औद्योगिक क्रांति ने इंटरनेशनल स्टैंडर्ड टाइम को जन्म दिया। साल 1884 में मेरिडियन कॉन्फ्रेंस में दुनिया को 24 टाइम जोनों में बांटा गया। उन्होंने दिन के 24 घंटे नियुक्त किए जिसे ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) के तौर पर जाना जाता है। बाद में इसे कोर्डिनेट यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) नाम दिया गया।
 
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत दो जोनों में बंटा था लेकिन 1 सितंबर 1947 के दिन इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (आईएसटी) जारी किया गया जिसके मुताबिक घड़ी 82.5 डिग्री पर एक वर्टिकल लाइन पर सेट कर दी गई, जो इलाहाबाद के पास के शंकरगढ़, मिर्जापुर से होकर गुजरता है। ये एक बेतुका फैसला था और साल-दर-साल सरकारों ने भी इसे सुधारने में कोई रुचि नहीं ली।
 
वर्किंग टाइम बदलेने की जरूरत :  साल 1948 तक पूर्वी भारत में ‘कलकत्ता टाइम’ फॉलो किया जाता था। साल 1955 तक पश्चिमी भारत में ‘बंबई टाइम’ फॉलो किया जाता था। वर्तमान में दिल्ली टाइम फॉलो किया जाता है। इससे कई तरह की दिक्कतें पैदा होती हैं। भारत के उत्तर-पूर्व में जहां ब्रितानी चाय बागान चलाते थे, वहां ‘बागान टाइम’ फॉलो किया जाता था। ये आईएसटी से 1 घंटा आगे होता था और पश्चिमी तट के समय से 2 घंटे आगे। पूर्व से पश्चिम तक अमेरिका 4,800 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और वो 9 टाइम जोन का पालन करता है, वहीं भारत पूर्व से पश्चिम तक 3,000 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और कायदे से यहां भी कम से कम 2 या 3 टाइम जोन होने चाहिए। ऐसा करना भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद हो सकता है।
 
उदाहरणार्थ, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का सीधा नुकसान दिखता है। वहां लोग सुबह 6 बजे तक नाश्ता करके तैयार मिलते हैं, लेकिन सरकारी दफ्तर या अदालतें 10 बजे से पहले नहीं खुलते, वहीं बंद होने का समय 4 या 5 बजे शाम का होता है, क्योंकि वहां सूर्य सबसे पहले उदित होता है और अस्त भी। वे तब उठ जाते हैं जबकि पश्चिम और मध्यभारत के लोग गहरी नींद में सोए रहते हैं। अब जब पूर्वोत्तर के लोग घड़ी के अनुसार ऑफिस पहुंचते हैं तो निश्चित ही घड़ी के अनुसार ही वे लौटेंगे यानी रोजाना अधिकतम 4 घंटे का नुकसान। ये व्यापार, अर्थव्यवस्था के साथ नागरिकों के लिए भी नुकसानदेह है, क्योंकि स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार सुबह के 7 बजे पूर्वोत्तर के टाइम में 10 बजे का समय होता है।
 
मान लीजिए अगर हम पूर्वी, मध्य और पश्चिमी टाइम जोन में भारत के हिस्से बांट लें- भारत का पूर्वी हिस्सा जहां सबसे पहले दिन की रोशनी पड़ती है, वहां काम सबसे पहले शुरू हो, फिर मध्य और आखिर में पश्चिम भारत में काम शुरू हो तो समूचे भारत में सक्रिय कार्य करने के घंटे बढ़ जाएंगे। ऐसा करने से ये सिर्फ समय का माप न रहकर देश के विकास को गति देने वाला एक औजार बन जाएगा।
 
प्राचीनकाल में ऐसी थी व्यवस्था : भारत में विक्रमादित्य के शासनकाल में संपूर्ण भारत का समय उज्जैन से तय होता था। यह समय सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक एक दिन-रात पर आधारित था और उसे एक दिवस माना जाता था। ग्रीक, फारसी, अरबी और रोमन लोगों ने भारतीय कालगणना से प्रेरणा लेकर ही अपने अपने यहां के समय को जानने के लिए अपने तरीके की वेधशालाएं बनाई थीं। रोमन कैलेंडर भी भारत के विक्रमादित्य कैलेंडर से ही प्रेरित था।
 
उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग को 'महाकाल' इसीलिए कहा जाता था, क्योंकि वहीं से दुनियाभर का समय तय होता था। खगोलशास्त्रियों के अनुसार उज्जैन की भौगोलिक स्थिति विशिष्ट है। यह नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित है इसलिए इसे पूर्व से ‘ग्रीनविच’ के रूप में भी जाना जाता है।
 
प्राचीन भारत की ‘ग्रीनविच’ यह नगरी देश के मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से लगभग 1658 फीट ऊंचाई पर बसी है। वर्तमान में ग्रीनविच मान से उज्जैन 23°11 अंश पर स्थित है। भौगोलिक गणना के अनुसार प्राचीन आचार्यों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना जाता है। कर्क रेखा भी यहीं से गुजरती है। देशांतर रेखा और कर्क रेखा यहीं एक-दूसरे को काटती है। रोहतक, अवन्ति और कुरुक्षेत्र ऐसे स्थल हैं, जो इस रेखा में आते हैं। देशांतर मध्यरेखा श्रीलंका से सुमेरु तक जाते हुए उज्जयिनी सहित अनेक नगरों को स्पर्श करती जाती है। 
 
प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार जब उत्तरी ध्रुव की स्थिति पर 21 मार्च से प्राय: 6 मास का दिन होने लगता है। प्रथम 3 माह के पूरे होते ही सूर्य दक्षिण क्षितिज से बहुत दूर हो जाता है। यह वह समय होता है, जब सूर्य उज्जैन के ठीक ऊपर होता है। उज्जैन का अक्षांश व सूर्य की परम क्रांति दोनों ही 24 अक्षांश पर मानी गई है। सूर्य के ठीक सामने होने की यह स्थिति संसार के किसी और नगर की नहीं है।
 
उज्जैन को अपनी इस भौगोलिक स्थिति के कारण प्राचीनकाल के खगोलशास्त्रियों ने कालगणना का केंद्रबिंदु माना था और यहीं से संपूर्ण भारत ही नहीं, दुनिया का समय भी निर्धारित होता था। राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है। 
 
स्कंदपुराण के अनुसार ‘कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतायन:।’ इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है। प्राचीन भारत की समय गणना का केंद्रबिंदु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं, जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। वराहपुराण में उज्जैन को शरीर का नाभि देश और महाकालेश्वर को अधिष्ठाता कहा गया है। महाकाल की यह कालजयी नगरी विश्व की नाभिस्थली है।
 
भारत के मध्य में स्थित होने के कारण उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है। प्राचीन सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य आदि ने उज्जयिनी के मध्यमोदय को ही स्वीकारा था। गणित और ज्योतिष के विद्वान वराहमिहिर का जन्म उज्जैन जिले के कायथा ग्राम में लगभग शक् संवत 427 में हुआ था। प्राचीन भारत के वे एकमात्र ऐसे विद्वान थे जिन्होंने ज्योतिष की समस्त विधाओं पर लेखन कर ग्रंथों की रचना की थी। उनके ग्रंथ में पंचसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जनक विवाह पटल, यात्रा एवं लघुजातक आदि प्रसिद्ध हैं। 
 
अत: क्यों नहीं प्राचीन भारतीय मानक समय को अपनाकर रात को समय बदलने की परंपरा को खत्म किया जाए या भारत में 4 से 5 टाइम जोन नियुक्त किए जाएं। यदि इस ओर ध्यान दिया गया और कोई एक ऐसा रास्ता निकाला जाए जिससे कि भारत में भी अलग- अलग टाइम जोन होंगे तो निश्चित ही इससे सक्रिय कार्य के घंटों पर बड़ा फर्क पड़ेगा जिसके कारण विकास की गति में तेजी आएगी।

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