आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या कोई अच्छी या बुरी आत्माएं किसी के शरीर में प्रवेश करके अपना संदेश लोगों तक पहुंचाती है या कि वह उनके शरीर पर कब्जा करके उनको दुख पहुंचाती रहती है?
भारत में यह धारणा प्रचलित है कि भूत या प्रेत उन्हीं लोगों के शरीर पर कब्जा करते हैं जो मानसिक स्तर से कमजोर हैं या अति भावुक होते हैं। हालांकि ऐसी धारणा भी प्रचलित है कि कुछ लोग जानबूझकर ही अच्छी आत्मा के लिए समर्पण कर देते हैं।
भारत के ग्रामिण क्षेत्रों में यह देखा गया है कि किसी के शरीर में नाग देवता आते हैं, तो किसी के शरीर में देवी आती है। इसके विपरित कोई भूतात्मा ने किसी के शरीर पर कब्जा कर लिया है तो उस व्यक्ति को किसी पीर, फकीर की दरगाह, देवी या हनुमान मंदिर में ले जाकर इस भूतबाधा को दूर किया जाता है। किसी आत्मा के शरीर में आने को हाजिरी आना, पारगमन की आत्मा का आना, बदन में आना या डील में आना कहा जाता है।
शरीर में किसी आत्मा का आना : भारत में किसी व्यक्ति विशेष के शरीर में नाग महाराज, भेरू महाराज या काली माता के आने के किस्से सुनते रहते हैं। भारत में ऐसे कई स्थान या चौकी हैं, जहां आह्वान द्वारा किसी व्यक्ति विशेष के शरीर में दिव्य आत्मा का अवतरण होता है और फिर वह अपने स्थान विशेष या गद्दी पर बैठकर हिलते हुए लोगों को उनका भूत और भविष्य बताता है और कुछ हिदायत भी देता है।
हालांकि इन लोगों में अधिकतर तो नकली ही सिद्ध होते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो किसी भी व्यक्ति का भूत और भविष्य बताकर उसकी समस्या का समाधान करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति का जीवन बदलने की क्षमता रखते हैं। ऐसे कुछ लोगों के स्थान पर मेला भी लगता है। जहां वे किसी मंदिर में बैठकर किसी चमत्कार की तरह लोगों के दुख-दर्द दूर करते हैं।
प्रेत बाधा : हालांकि यह भी देखा गया है कि कुछ बुरी आत्माएं भी लोगों को परेशान करने के लिए उनके शरीर पर कब्जा कर लेती हैं। विदेशों (अमेरिका या योरप में) में अधिकतर लोगों को बुरी आत्माएं परेशान करती हैं जिससे छुटकारा पाने के लिए वे चर्च के चक्कर लगाते रहते हैं जबकि भारत में किसी दरगाह, समाधि मंदिर, किसी जानकार, तांत्रिक, बाबा या संत के पास जाते हैं। कुछ लोग ऐसे लोगों के पास जाते हैं जिनके शरीर में पहले से ही किसी समय विशेष में कोई दिव्य आत्मा आई हुई होती है।
परकाय प्रवेश के उल्लेख : अखंड ज्योति में श्रीराम शर्मा आचार्य ने उल्लेख किया है कि 'नाथ सम्प्रदाय' के आदि गुरु मुनिराज 'मछन्दरनाथ' के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी। सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे। एकबार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर एक मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्म शरीर से प्रवेश किया था।
'महाभारत के शान्ति पर्व' में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी अपने योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी। उन दिनों राजा जनक का व्यवहार भी स्वाभाविक न था।
'अनुशासन पर्व' में ही कथा आती है कि एक बार इन्द्र किसी कारण वश ऋषि देवशर्मा पर कुपित हो गये। उन्होंने क्रोधवश ऋषि की पत्नी से बदला लेने का निश्चय किया। देवशर्मा का शिष्य 'विपुल' योग साधनाओं में निष्णात और सिद्ध था। उसे योग दृष्टि से यह मालूम हो गया कि मायावी इन्द्र, गुरु पत्नी से बदला लेने वाले हैं। 'विपुल' ने सूक्ष्म शरीर से गुरु पत्नी के शरीर में उपस्थित होकर इन्द्र के हाथों से उन्हें बचाया।
'पातंजलि योग दर्शन' में सूक्ष्म शरीर से आकाश गमन, एक ही समय में अनेकों शरीर धारण, परकाया प्रवेश जैसी अनेकों योग विभूतियों का वर्णन है।
मरने के बाद सूक्ष्म शरीर जब स्थूल शरीर को छोड़कर गमन करता है तो उसके साथ अन्य सूक्ष्म परमाणु कहिए या कर्म भी गमन करते हैं जो उनके परिमाप के अनुसार अगले जन्म में रिफ्लेक्ट होते हैं, जैसे तिल, मस्सा, गोली का निशान, चाकू का निशान, आचार-विचार, संस्कार आदि। इस सूक्ष्म शरीर को मरने से पहले ही जाग्रत कर उसमें स्थिति हो जाने वाला व्यक्ति ही परकाय प्रवेश सिद्धि योगा में पारंगत हो सकता है।
सबसे बड़ा सवाल यह कि खुद के शरीर पर आपका कितना कंट्रोल है? योग अनुसार जब तक आप खुद के शरीर को वश में करन नहीं जानते तब तक दूसरे के शरीर में प्रवेश करना मुश्किल होगा। दूसरों के शरीर में प्रवेश करने की विद्या को परकाय प्रवेश योग विद्या कहते हैं। आदि शंकराचार्य इस विद्या में अच्छी तरह से पारंगत थे। नाथ संप्रदाय के और भी बहुत से साधक इस तकनीक से अवगत थे, लेकिन आम जनता के लिए तो यह बहुत ही कठिन जान पड़ता है।
कैसे दूसरे को शरीर में प्रवेश करती हैं आत्मा
आदि शंकराचार्य यह विधि जानते थे, और भी बहुत से साधक इस तकनीक से अवगत थे, लेकिन आम जनता के लिए तो यह बहुत ही कठिन जान पड़ता है। क्यों?
योग में कहा गया है कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है 'चित्त की वृत्तियां'। इसीलिए योग सूत्र का पहला सूत्र है- योगस्य चित्तवृत्ति निरोध:। इस चित्त में हजारों जन्मों की आसक्ति, अहंकार काम, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से उपजे कर्म संग्रहित रहते हैं, जिसे संचित कर्म कहते हैं।
यह संचित कर्म ही हमारा प्रारब्ध भी होते हैं और इसी से आगे की दिशा भी तय होती है। इस चित्त की पांच अवस्थाएं होती है जिसे समझ कर ही हम सूक्ष्म शरीर को सक्रिय कर सकते हैं। सूक्ष्म शरीर से बाहर निकल कर ही हम दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
इस चित्त या मानसिक अवस्था के पांच रूप हैं:- (1)क्षिप्त (2) मूढ़ (3)विक्षिप्त (4)एकाग्र और (5)निरुद्व। प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ मानसिक वृत्तियों का निरोध होता है।
कैसे होगा यह संभव : चित्त जब वृत्ति शून्य (निरुद्व अवस्था) होता है तब बंधन के शिथिल हो जाने पर और संयम द्वारा चित्त की प्रवेश निर्गम मार्ग नाड़ी के ज्ञान से चित्त दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की सिद्धि प्राप्त कर लेता है। यह बहुत आसान है, चित्त की स्थिरता से सूक्ष्म शरीर में होने का अहसास बढ़ता है। सूक्ष्म शरीर के निरंतर अहसास से स्थूल शरीर से बाहर निकलने की इच्छा बलवान होती है।
*योग निंद्रा विधि : जब ध्यान की अवस्था गहराने लगे तब निंद्रा काल में जाग्रत होकर शरीर से बाहर निकला जा सकता है। इस दौरान यह अहसास होता रहेगा की स्थूल शरीर सो रहा है। शरीर को अपने सुरक्षित स्थान पर सोने दें और आप हवा में उड़ने का मजा लें। ध्यान रखें किसी दूसरे के शरीर में उसकी इजाजत के बगैर प्रवेश करना अपराध है।