हिन्दू धर्म संपूर्ण पशु-पक्षी और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण घटक मानता है। उनमें से भी कुछ वृक्ष, पशु और पक्षी ऐसे हैं जिनके नहीं होने से मानव का अस्तित्व भी संकट में पड़ सकता है। इसके अलावा हिन्दू धर्म के ऋषियों और मुनियों ने यह जाना कि कौन-से थलचर जंतु में क्या रहस्य छिपा हुआ है।
आओ जानने हैं ऐसे दस दिव्य और पवित्र थलचर जंतु जिनका हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है और जिनका सम्मान और आदर करना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है।
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गाय : गाय का थलचर जंतुओं में सबसे ऊंचा स्थान है। पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है। गाय को किसी भी रूप में सताना घोर पाप माना गया है। उसकी हत्या करना तो नर्क के द्वार को खोलने के समान है, जहां कई जन्मों तक दुख भोगना होगा।
गाय माता : गाय ही व्यक्ति को मरने के बाद वैतरणी नदी पार कराती है। भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। गाय के भीतर देवताओं का वास माना गया है। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है।
समृद्धि देती गाय : अथर्ववेद के अनुसार- 'धेनु सदानाम रईनाम' अर्थात् गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय समृद्धि व प्रचुरता की द्योतक है, वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है, वह जननी है। गाय के दूध से कई तरह के प्रॉडक्ट बनते हैं। गोबर से ईंधन व खाद मिलती है, इसके मूत्र से दवाएं व उर्वरक बनते हैं।
गाय का रहस्य : गाय इसलिए पूजनीय नहीं है कि वह दूध देती है और इसके होने से हमारी सामाजिक पूर्ति होती है, दरअसल मान्यता अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।
गाय की दुर्गति : अब मार्केट में सोयाबीन सहित अन्य तत्वों का दूध भी आ गया है, शायद इसीलिए अब गाय की दुर्गति हो चली है। वर्तमान समय में गायों का बड़ी बेरहमी से संहार किया जा रहा है। कभी महलों और गोशाला में रहने वाली गाय आजकल सड़कों पर दर-दर भटक रही है। अब उसे प्लास्टिक और कूड़ाघर में पेट भरने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसे स्टेरॉयड व एंटीबायोटिक देकर गर्भधारण करवाया जाता है और अंत में मांस का भोग कराने के लिए मार दिया जाता है। इसके परिणाम भी व्यक्ति भुगत रहा है।
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बैल : बैल की पूजा या कथा विश्व के सभी धर्मों में मिल जाएगी। बैल के कई रूप हैं, उनमें से नंदी बैल प्रमुख है। बैल भगवान शिव की सवारी है। वृषभ राशि का प्रतीक भी पवित्र बैल है। सिंधु घाटी, मेसोपोटामिया, मिस्र, बेबीलोनिया, माया आदि सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल की पूजा का उल्लेख मिलता है। सभ्यताओं के प्राचीन खंडहरों में भी बैल की मूर्ति मिल जाएगी।
बैल को लेकर दो कहावतें हैं- 'आ बैल मुझे तू मार' और 'कोल्हू का बैल'।
बैलों का योगदान : बैल एक चौपाया पालतू प्राणी है। यह गोवंश के अंतर्गत आता है। बैल प्राय: हल, बैलगाड़ी आदि खींचने का कार्य करते हैं। सांड इसका एक अन्य रूप है जिसे नंदी कहा जाता है। मानव विकास में बैलों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कृषि युग में बैल ने जहां खेतों को खोदा वहीं उसने आवागमन के साधन के रूप में गाड़ी को खींचा। इसी कारण बैल की विशेषता शक्ति-संपन्नता के साथ-साथ कर्मठता भी मानी जाने लगी।
एक समय था, जब बैल रेलगाड़ी भी खींचते थे। इंजन के अभाव में बैल ही मालगाड़ी को खींचा करते थे। भारतीय रेलवे के 160 वर्ष पूरे होने पर उसने 'भारतीय रेलवे की विकास गाथा' में इसका जिक्र किया है। इसका मतलब बैलों ने जहां बैलगाड़ी चलाई, वहीं रेलगाड़ी भी। बैलों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं उसमें एक कस्तूरी बैल भी है।
बैल है धर्म : वेदों ने बैल को धर्म का अवतार माना है और गाय को विश्व की माता माना है। वेदों ने बैल को गाय से अधिक मूल्यवान माना है इसलिए उससे काम कराते समय उसे अनुचित कष्ट न हो इस तरह से काम करवाने के नियम भी बनाए हैं। हमारे देश के 6 करोड़ 32 लाख (सन् 1992 के आंकडों के अनुसार) बैल खेतों में, रास्तों पर, तेल पीलने के कोल्हूओं में, आटा पीसने की चक्कियों में, कुओं पर लगे रेहट में रात-दिन काम करते हैं। चिलचिलाती धूप में, बर्फानी शीत में, मूसलधार वर्षा में या रात्रि के गाढ़े अंधकार में ये बैल मानव जाति के सुख, आराम व शांति के लिए काम करते हैं।
बैल का मेहनताना : बैल मनुष्य की जो सेवा करता है उसका उसे कोई मेहनताना नहीं मिलता है। अंतत: बूढ़े और घायल हो चुके बैल को कत्लखाने के लिए बेच दिया जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार ऐसे मनुष्य को नर्क में उबलते हुए तेल के कढ़ाव में डाला जाता है और वह वहां अनंतकाल तक तड़पते हुए उबलता रहता है।
कम से कम बैल को अपने अंतिम वक्त में स्वतंत्र और खुद के तरीके से जीने का अधिकार मिलना चाहिए।
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हाथी : हाथी को हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का साक्षात रूप माना गया है। यह इंद्र का वाहन भी है। हाथी को पूर्वजों का प्रतीक भी माना गया है। जिस दिन किसी हाथी की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। हाथियों को अपने पूर्वजों की स्मृतियां रहती हैं।
अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजा विधि व्रत रखा जाता है। सुख-समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं। गणेशजी का मुख हाथी का होने के कारण उनके गजतुंड, गजानन आदि नाम हैं। गजेन्द्र मोक्ष कथा में गजेन्द्र ने मगर के ग्राह से छूटने के लिए श्रीहरि की स्तुति की थी। श्रीहरि ने गजेन्द्र को मगर के ग्राह से छुड़ाया था। गजेन्द्र मोक्ष स्रोत का स्थान गीता में है। गीता में श्रीकृष्ण ने हाथियों में ऐरावत को अपनी विभूति बताया है। हाथी शुभ-शकुन वाला और लक्ष्मी दाता माना जाता है।
अमृत मंथन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक ऐरावत हाथी भी है।
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सिंह : सिंह को मां दुर्गा की सवारी माना गया है और यह विष्णु और सूर्य का प्रतीक भी है। राशियों में एक सिंह भी है। सिंह की तेजी से विलुप्त होती बची-खुची संख्या अब उत्तर-पश्चिमी भारत में पाई जाती है। सिंह और शेर दोनों ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पशु हैं।
सबसे पहले भारत के राजाओं ने सिंह का शिकार किया और फिर मुगलों और अंग्रेजों ने। इस बीच सिंह के अंगों, खाल और नाखूनों की तस्करी करने वालों ने इसका शिकार कर इसके अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। इसके अलावा सर्कस वालों ने भी सिंह का बहुत दुरुपयोग किया।
भगवान विष्णु ने एक अवतार सिंह के रूप में ही लिया था जिसे नृसिंह अवतार कहा जाता है। सिंह शौर्य और वीरता का प्रतीक है इसीलिए क्षत्रिय लोग अपने नाम के बाद सिंह विशेषण लगाते हैं। ज्योतिषी अनुसार बुध देव सिंह पर सवारी करते हैं अत: सिंह पूजनीय है। सिंह को सूर्य ग्रह का प्रतीक भी माना जाता है।
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नाग : भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि यह एक रहस्यमय जंतु है। यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।
भारत में 8 प्रकार के नाग पाए जाते हैं- 1. अनंत (शेष), 2. वासुकी, 3. तक्षक, 4. कर्कोटक, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. शंख और 8. कुलिक। इन नागों को पूजने वाले समाज ने अपने कुल का नाम भी इनके नाम पर रखा इसलिए उन्हें नागवंशी कहा गया। अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है।
हिन्दू, जैन और बौद्ध देवताओं के सिर पर शेष (नाग) छत्र होता है। भगवान शिव के गले में नाग का होना इस बात की सूचना है कि वह कितने महत्व का जंतु है।
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कुत्ता : कुत्ते को भगवान भैरव का प्रिय माना जाता है। श्वान या कुत्ता भेड़िया प्रजाति की एक उपप्रजाति है। यह मनुष्य के पालतू पशुओं में से एक महत्वपूर्ण प्राणी है। आजकल कुत्तों की हजारों नस्लें पाई जाती हैं उनमें से ज्यादातर तो संकर नस्ल है।
कुत्ते के संबंध में भी कई कहावतें हैं- धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का।
लोग कुत्ते को एक बुरा प्राणी मानते हैं लेकिन यह सिर्फ एक ही कारण से बुरा है कि इसके काटने से जानलेवा रेबीज बीमारी हो जाती है। कुत्ते को सबसे वफादार और निर्भीक प्राणी माना जाता है। प्राचीनकाल से ही कुत्ता मानव का साथी रहा है। मानव ने इसके महत्व को समझा है।
हिन्दू धर्म में कुत्ते को बहुत ही शुभ प्राणी माना गया है। कुत्तों को भविष्य की घटनाओं का ज्ञान हो जाता है और यह हर तरह से व्यक्ति की रक्षा करने में सक्षम है। इसकी सूंघने की क्षमता अद्भुत होती है। माना जाता है कि 6 माह पूर्व ही यह होने वाले बीमारी सूंघकर पता लगा लेता है।
माना जाता है कि कुत्तों को मृत्यु की पूर्व सूचना हो जाती है। इसकी हरकतों से शुभ और अशुभ का भी पता लगाया जाता है। कुत्ते को प्रतिदिन रोटी खिलाने से सभी तरह के संकट दूर होते हैं। घर में किसी भी प्रकार की आकस्मिक घटना नहीं होती है।
ज्योतिषी के अनुसार केतु का प्रतीक है कुत्ता। कुत्ता पालने या कुत्ते की सेवा करने से केतु का अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है। पितृ पक्ष में कुत्तों को मीठी रोटी खिलानी चाहिए।
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भैंस और भैंसा : भगवान यमराज की सवारी है भैंसा। भैंसे को मारकर खाना महापाप माना गया है। भैंस एक दुधारू पशु है। कुछ लोगों द्वारा भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक पसंद किया जाता है। यह ग्रामीण भारत में बहुउपयोगी पशु है। इसकी पूजा की जाती है।
भैंस के बारे में कहावत है- 'भैंस के आगे बीन बजाना'।
भैंस- यह गोवंश (बोविडी) का जुगाली करने वाला स्तनपायी प्राणी है। भैंस को प्राचीन समय से ही एशिया में पालतू बना लिया गया था।
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बंदर : बंदरों की कई प्रजातियां होती हैं उनमें से ही एक है वानर जिसे कपि भी कहा जाता है। वानर का अर्थ है- वन मैं रहने वाला नर। वानरों की भी कई प्राजातियां होती हैं। वानरों के कारण ही बंदरों को भी महत्व दिया जाता है। वानर हिन्दू गाथा रामायण में वर्णित मानवनुमा कपियों की एक जाति थी जिसके सदस्य साहस, शक्ति, बुद्धि और जिज्ञासा के गुण रखते थे।
वानरों को हनुमानजी का प्रतीक माना जाता है। वानर की सेवा करना अर्थात हनुमानजी की सेवा करना माना गया है। ज्योतिषी अनुसार वानर को चने खिलाने से मंगल का बुरा प्रभाव दूर होता है।
बंदरों में भी इंसानों जैसी भावना और सामाजिकता पाई जाती है। बंदर पर कई लोककथाएं प्रचलन में हैं। चित्रकथाओं में बंदर एक महत्वपूर्ण पात्र रहता है। पुराणों में भी बंदर को एक शुभ प्राणी माना गया है। बंदर को किसी भी प्रकार से सताना पाप है।
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घोड़ा : इसे आर्यकाल में अश्व कहा जाता था। मानव जीवन के विकास में घोड़ों का बहुत योगदान रहा है। घोड़े के कुटुम्ब में घोड़े के अतिरिक्त गधा, जेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड़-खर एवं खच्चर भी शामिल हैं, लेकिन घोड़ा सबसे महत्वपूर्ण है।
वेदों में अश्वमेध यज्ञ की चर्चा मिलती है। अश्व को चंद्रदेव का प्रतीक माना जाता है। कुछ लोगों का मत है कि 5,000 वर्ष ईसा पूर्व दक्षिणी रूस के पास आर्यों ने प्रथम बार घोड़े को पालना शुरू किया था, तब से घोड़ा मानव के साथ है। राजाओं और बाद में सेना में शामिल हुआ घोड़ा पहले सिर्फ आवागमन का साधन मात्र था। युद्ध में घोड़े के योगदान ने मानव का इतिहास बदल दिया।
माना जाता है कि संसार के इतिहास में घोड़े की चिकित्सा पर लिखी गई प्रथम पुस्तक शालिहोत्रशास्त्र है। इस पुस्तक को शालिहोत्र ऋषि ने महाभारतकाल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था।
प्राचीन भारत में अश्व नदी हुआ करती थी, अश्वमेध यज्ञ किया जाता था और अश्वमेध नगर होता था। अमृत मंथन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक उच्चैश्रवा घोड़ा भी है।
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मूषक : भगवान गणेश का वाहन है मूषक जिसे चूहा भी कहा जाता है। चूहे को मारकर खाना महापाप है। दो तरह के मूषक होते हैं- सफेद और काले। माना जाता है कि सफेद चूहा दिख जाए तो भाग्य खुल जाते हैं।
राजस्थान के देशनोक नामक स्थान पर विश्वप्रसिद्ध करनी माता के मंदिर में हजारों की तादाद में चूहे निवास करते हैं इसीलिए इसे चूहे वाली माता का मंदिर भी कहा जाता है। जैसे अमरनाथ मंदिर में कबूतरों को दिखना शुभ माना जाता है ठीक इसी तरह करनी माता मंदिर में चूहों की फौज में सफेद चूहों का दिख जाना बड़ा ही शुभ संयोग माना जाता है। मान्यता है कि सफेद चूहा दिख जाने से मांगी गई मुराद पूरी होती है।
हालांकि इन पशुओं के अलावा भी ऐसे बहुत से जंगली पशु हैं जिनको हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना गया है और जिनका आध्यात्मिक महत्व भी कम नहीं है। उनमें से एक है भालू।