चाहे हिंदू, पारसी, यहूदी, ईसाई, इस्लाम हो या फिर चर्वाक, जैन, शिंतो, कन्फ्युशियस या बौद्ध हो, आज धरती पर जितने भी धर्म हैं, उन सभी का आधार यही प्राचीन परम्परा रही है। इसी परम्परा ने वेद लिखे और इसी से जिनवाद की शुरुआत हुई। यही परम्परा आगे चलकर आज हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म कहलाती है। हजारों वर्षों के इस सफर में इस परम्परा ने बहुत कुछ खोया और इसमें बहुत कुछ बदला गया। आज जिस रूप में यह परम्परा है यह बहुत ही चिंतनीय विषय होगा, उनके लिए जो इस परम्परा के जानकार हैं।
ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म को ही मोक्ष का आधार मानता हो और वेद वाक्य को ही ब्रह्म वाक्य मानता हो। ब्राह्मणों अनुसार ब्रह्म, और ब्रह्मांड को जानना आवश्यक है तभी ब्रह्मलीन होने का मार्ग खुलता है। श्रमण वह जो श्रम द्वारा मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को मानता हो और जिसके लिए व्यक्ति के जीवन में ईश्वर की नहीं श्रम की आवश्यकता है। श्रमण परम्परा तथा संप्रदायों का उल्लेख प्राचीन बौद्ध तथा जैन धर्मग्रंथों में मिलता है तथा ब्राह्मण परम्परा का उल्लेख वेद, उपनिषद और स्मृतियों में मिलता है।
आज ब्राह्मण और श्रमण शब्द के अर्थ बदल गए हैं। यह जातिसूचक शब्द से ज्यादा कुछ नहीं। उक्त शब्दों को नहीं समझने के कारण अब इनकी गरिमा नहीं रही। दरअसल यह उन ऋषि-मुनियों की परम्परा या मार्ग का नाम था जिस पर चलकर सभी धर्म और जाति के लोगों ने मोक्ष को पाया। यह ऐसा ही है कि हम ऋषि और मुनि नाम की कोई जाति निर्मित कर लें और फिर उक्त शब्दों की गरिमा को भी खत्म कर दें।