प्राचीन भारत के विशालकाय मानव, आज भी रहस्य है बरकरार

यह सोचना थोड़ा कठिन है कि आदिकाल, प्राचीनकाल या पौराणिक काल में लोग 20 से 22 फीट के होते थे? हिन्दू पौराणिक ग्रंथों अनुसार दानव, दैत्य (असुर) और राक्षस लोग विशालकाय हुआ करते थे। हिन्दू पुराणों के अनुसार विशालकाय लंबे-चौड़े राक्षसों जैसे मानव पहले धरती पर रहते थे। पौराणिक कथाओं अनुसार आदिकाल में विशालकाय मानव ही नहीं पशु और प‍क्षी भी होते थे। हिन्दू धर्म के अनुसार सतयुग में इस तरह के विशालकाय मानव हुआ करते थे। बाद में त्रेतायुग में इनकी प्रजाति नष्ट हो गई।
 
 
दुनियाभर में 2 से 6 फुट तक के लंबे पदचिह्न पाए जाते हैं। सवाल यह उठता है कि ये किसी विशालकाय मानव के पदचिह्न हैं या कि मानव ने ऐसे पदचिह्न हाथों से बनाए हैं। भारत में भगवान शिव और हनुमानजी के पैरों के निशान मिलते हैं जो बहुत ही विशालकाय हैं। आओ हम जानते हैं भारत के विशालकाय मानवों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
ताड़का- सुकेतु नामक यक्ष की पुत्री और मारीच-सुबाहु की माता ताड़का भी विशालकाय थी। वह अगस्त्य ऋषि के शाप के चलते राक्षसी बन गई थी। आए दिन वह सरयू के निकट तप और यज्ञ करने वाले ऋषियों को परेशान करती रहती थी। उनके यज्ञ में बाधा डालती रहती थी। ताड़का के अत्याचार से तंग आकर एक दिन विश्वामित्र अयोध्या पहुंच और उन्होंने दशरथ से ताड़के के वध के लिए राम और लक्ष्मण को मांग लिया। दोनों भाई ऋषियों की सुरक्षा में तैनात हो गए। राम और लक्ष्मण ने ताड़का का वध कर दिया था।
 
 
जाम्बवंत- रामायण काल में रीझनुमा मानव भी होते थे। जाम्बवंतजी इसका उदाहण हैं। भालू या रीछ उरसीडे (Ursidae) परिवार का एक स्तनधारी जानवर है। हालांकि इसकी अब सिर्फ 8 जातियां ही शेष बची हैं। संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं। निश्चित ही अब जाम्बवंत की जाति लुप्त हो गई है। हालांकि यह शोध का विषय है।
 
 
कहते हैं कि मानव की सामान्य हाईट से कहीं ज्यादा लंबे और विशालकाय थे जाम्बवंत। जाम्बवंत एक राजा होने के साथ-साथ इंजीनियर भी थे। समुद्र के तटों पर वे एक मचान को निर्मित करने की तकनीक जानते थे, जहां यंत्र लगाकर समुद्री मार्गों और पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था। मान्यता है कि उन्होंने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था, जो सभी तरह के विषैले परमाणुओं को निगल जाता था। माना जाता है कि वर्तमान के रीछ या भालू इन्हीं के वंशज हैं। जाम्बवंत की उम्र बहुत लंबी थी। 5 हजार वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। जाम्बवंत की बेटी के साथ कृष्ण ने विवाह किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है।
 
 
हनुमान- वानर को बंदरों की श्रेणी में नहीं रखा जाता था। 'वानर' का अर्थ होता था- वन में रहने वाला नर। ऐसे मानव जिनकी पूंछ होती थी और जिनके मुंह बंदरों जैसे होते थे। वे विशालकाय मानव भी सामान्य मानवों के साथ घुल-मिलकर ही रहते थे। उन प्रजातियों में 'कपि' नामक जाति सबसे प्रमुख थी। हनुमानजी वानरों की कपि जाति से थे। दंडकारण्य के अलावा दक्षिण में मलय पर्वत और ऋष्यमूक पर्वत के आसपास भी वानरों का राज था। इसके अलावा जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, मलेशिया, माली, थाईलैंड जैसे द्वीपों के कुछ हिस्सों पर भी वानर जाति का राज था। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है।
 
 
अंजनेरी पर्वत पर हनुमान पद है। यहां पांव के आकार जैसा दिखने वाला एक सरोवर है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये बाल हनुमान के पैरों के दबाव से बना है। यह पर्वत महाराष्‍ट्र के नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर के पास लगभग 6 से 7 किलोमीटर दूर स्थित है। हनुमानजी ने जब सीताजी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण कर लिया था, फिर वे आकाश मार्ग से समुद्र को पार करके श्रीलंका पहुंच गए थे। ऐसा कहा जाता है कि श्रीलंका में जहां उन्होंने अपने पहले कदम रखे, वहां उनके पैरों के निशान बन गए। ये निशान आज भी वहां मौजूद हैं जिसे 'हनुमान पद' कहा जाता है। आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित लेपाक्षी मंदिर में भी हनुमान के पदचिन्ह अंकित है। हिमाचल के शिमला में जाखू मंदिर में और मलेशिया के पेनांग में भी हनुमानजी के पद के विशालकाय निशाह मौजूद हैं।
 
 
सुरसा- समुद्र पार करते समय रास्ते में हनुमानजी का सामना सुरसा नाम की नागमाता से हुआ जिसने विशालकाय राक्षसी का रूप धारण कर रखा था। सुरसा ने हनुमानजी को रोका और उन्हें खा जाने को कहा। समझाने पर जब वह नहीं मानी, तब हनुमान ने कहा कि अच्‍छा ठीक है मुझे खा लो। जैसे ही सुरसा उन्हें निगलने के लिए मुंह फैलाने लगी हनुमानजी भी अपने शरीर को बढ़ाने लगे। जैसे-जैसे सुरसा अपना मुंह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमानजी भी शरीर बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुंह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आए। हनुमानजी की बुद्धिमानी से सुरसा ने प्रसन्न होकर उनको आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।
 
 
राक्षसी माया- समुद्र में एक राक्षसी रहती थी। वह माया करके आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को पकड़ लेती थी। आकाश में जो जीव-जंतु उड़ा करते थे, वह जल में उनकी परछाईं देखकर अपनी माया से उनको निगल जाती थी। हनुमानजी ने उसका छल जानकर उसका वध कर दिया।
 
 
कुंभकर्ण- यह रावण का भाई था, जो 6 महीने बाद 1 द‌िन जागता और भोजन करके फ‌िर सो जाता, क्‍योंक‌ि इसने ब्रह्माजी से इंद्रासन की जगह न‌िद्रासन का वरदान मांग ल‌िया था। इसका शरीर विशालकाय था। युद्ध के दौरान क‌िसी तरह कुंभकर्ण को जगाया गया। कुंभकर्ण ने युद्ध में अपने व‌िशाल शरीर से वानरों पर प्रहार करना शुरू कर द‌िया इससे राम की सेना में हाहाकार मच गया। सेना का मनोबल बढ़ाने के ल‌िए राम ने कुंभकर्ण को युद्ध के ल‌िए ललकारा और भगवान राम के हाथों कुंभकर्ण वीरगत‌ि को प्राप्त हुआ।
 
 
पूतना- पूतना कंस द्वारा भेजी गई एक विशालकाय राक्षसी थी। पूतना ने राक्षसी वेष तज कर अति मनोहर नारी का रूप धारण किया और आकाश मार्ग से गोकुल पहुंच गई। गोकुल में पहुंचकर नन्दबाबा के महल में घुस गई और शिशु के रूप में सोते हुए श्रीकृष्ण को गोद में लेकर अपना दूध पिलाने लगी। कहते हैं कि पूतना के स्तन में हलाहल विष होता था। जैसे ही पूतना ने बालक कृष्ण को स्तनपान कराया। उसी दौरान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया।

 
विशालकाय मानव घटोत्कच- भीम के पुत्र घटोत्कच और पौत्र बर्बरीक के बारे में कहा जाता है कि इन दोनों की सामान्य मानवों से कई गुना ज्यादा ऊंचाई थी। माना जाता है कि कद-काठी के हिसाब से भीम पुत्र घटोत्कच इतना विशालकाय था कि वह लात मारकर रथ को कई फुट पीछे फेंक देता था और सैनिकों तो वह अपने पैरों तले कुचल देता था। भीम की असुर पत्नी हिडिम्बा से घटोत्कच का जन्म हुआ था। घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक था। घटोत्कच का वध कर्ण ने किया था।
 
 
भीम और हिडिम्बा : भीम के बारे में कहा जाता है कि उनमें दस हजार हाथियों का बल था। वह सामान्य मानवों से कुछ ज्यादा ही लंबे और चौड़े थे। शिमला से 100 किमी की दूरी पर करसोग घाटी में ममलेश्वर मंदिर है में एक 2 मीटर लंबा और तीन फीट है ऊंचा ढोल करीब पांच हजार साल से रखा हुआ है। इसके बारे में कहा जाता है कि ये ढोल भीम का है। और अज्ञातवास के समय वह बजाया करते थे। क्या भीम सचमुच विशालकाय मानव थे?
 
 
भीम का विवाह राक्षसनी हिडिम्बा से हुआ था। हिडिम्बा बहुत ही विशालकाय महिला थी। भारतीय राज्य नागालैंड के दीमापुर में हिडिंबा नाम से एक वाड़ा है, जहां राजवाड़ी में स्थित शतरंज की ऊंची-ऊंची गोटियां हैं जो चट्टानों से निर्मित है। शतरंज की इतनी विशालकाय गोटियों नो देखना पर्यटकों के लिए आश्चर्य में डालने वाला ही होता है। हालांकि इनमें से अब कुछ गोटियां टूट चुकी है। दीमापुर कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था। भीम की पत्नी हिडिम्बा यहां की राजकुमारी थीं। यहां रहने वाली डिमाशा जनजाति के लोग खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानते हैं। यहां के निवासियों कि मान्यता है कि इन गोटियों से भीम और उसका पुत्र घटोत्कच शतरंज खेलते थे। इस जगह पांडवों ने अपने वनवास का काफी समय गुजारा किया था। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह कछारी राज्य के अवशेष हैं। मशरूम के आकार के ये खंभे कछारी खंडहर के हिस्से हैं।..भीम ने बकासुर का वध भी किया था जो कि बहुत ही विशालकाय था।
 
 
घटोत्कच- माना जाता है कि कद-काठी के हिसाब से भीम पुत्र घटोत्कच इतना विशालकाय था कि वह लात मारकर रथ को कई फुट पीछे फेंक देता था और सैनिकों तो वह अपने पैरों तले कुचल देता था। भीम की असुर पत्नी हिडिम्बा से घटोत्कच का जन्म हुआ था। चूंकि घटोत्कच की माता एक राक्षसी थी, पिता एक वीर क्षत्रिय था इसलिए इसमें मनुष्य और राक्षस दोनों के मिश्रित गुण विद्यमान थे। वह बड़ा क्रूर और निर्दयी था।
 
 
महाभारत युद्ध के बीच इसने हाहाकार मचा दिया था। कर्ण सेनापति बनकर कौरवों के पक्ष से युद्ध कर रहे थे। कर्ण के पास इंद्र की दी हुई ऐसी शक्ति थी जिससे वह किसी भी पराक्रमी से पराक्रमी योद्धा को मार सकते थे। वह शक्ति कभी खाली जा ही नहीं सकती थी। कर्ण इस शक्ति से अर्जुन को मारना चाहते थे। श्रीकृष्ण यह जानते थे, इसी कारण उन्होंने घटोत्कच को रणभूमि में उतारा। इस राक्षस ने आकाश से अग्नि और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र बरसाना आरंभ कर दिया जिससे कौरव सेना में हाहाकार मच उठा। दुर्योधन ने घबराकर कर्ण से इसे मारने के लिए कहा। कर्ण भी इसकी मार से घबरा गए थे। उसने अपनी आखों से देखा कि इस तरह तो कुछ ही देर में सारी कौरव सेना नष्ट हो जाएगी, तब लाचार होकर उसने घटोत्कच पर उस अमोघ शक्ति का प्रयोग किया। अत: घटोत्कच क्षणभर में ही निर्जीव होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। पांडवों को उसकी मृत्यु से दुख हुआ था, लेकिन श्रीकृष्ण ने सारी चाल उनको समझाकर उन्हें संतुष्ट कर दिया।
 

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