धरती की कहानी मुख्यत: 5 कल्पों की है:- महत् कल्प, हिरण्यगर्भ कल्प, ब्रह्मकल्प, पद्मकल्प और वराह कल्प। प्रत्येक कल्प की कहानी अलग-अलग है। प्रत्येक कल्प में ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने धरती पर सृष्टि रचना, पालन और विध्वंस किया है। धरती आज जो रहने लायक बनी है और मानव की आज जो आबादी है, उसमें उक्त तीनों देवताओं का ही योगदान रहा है। यहां प्रस्तुत है वराह काल की शुरुआत से बुद्ध और कल्कि काल तक का महत्वपूर्ण घटनाक्रम क्रमवार...।
जब धरती आग में तप गई और सभी जीव-जंतु जलकर मर गए तब मेघों ने कई वर्षों तक जल बरसाया और इसके चलते धरती वर्षा के पानी में डूब गई। इस काल में भगवान विष्णु ने नील वराह के रूप में अवतार लेकर धरती पर से जल को हटाया और उसे इंसानों के रहने लायक बनाया। तब ब्रह्मा ने इंसानों का जाति का विस्तार किया और शिव ने संपूर्ण धरती पर धर्म और न्याय का राज्य कायम किया।
* पहला काल : ब्रह्मा का काल:-
1. त्रिदेवों का पुन: धरती पर अवतरण। सनकादि ऋषियों का अवतरण।
2. नील वराह अवतार : लगभग 14 हजार ईसा पूर्व।
3. देवी-देवताओं की उत्पत्ति : प्रभुनारायण केशव माधव, पद्मनाभ ब्रह्मा नारायणी नरप्रजा, अग्नि, वायु, इन्द्र आदि देवी-देवों की प्रथम उत्पत्ति।
4. असुरों की उत्पत्ति : हेति प्रहेति, मधुकैटम आदि प्रबल असुरों की उत्पत्ति।
5. विराट महाविष्णु की उत्पत्ति, विश्व नियंत्रण असुरकर्मा तपोगुणी अपहर्ता प्रजाएं, देवसर्ग पृथ्वी जल आदि की उत्पत्ति।
6. पंच तत्व देव : तेज, वायु, आकाश के कर्माधिष्ठात्रि देवता की प्रतिष्ठा।
7. ब्रह्मा पुत्र : ब्रह्मा के 10 पुत्र मरीचि, मरीचि से कश्यप, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष, नारद की उत्पत्ति।
8.नर और नारायण का अवतार : भगवान विष्णु ने धर्म की पत्नी रुचि के माध्यम से नर और नारायण नाम के दो ऋषियों के रूप में अवतार लिया। बदरीवन में उन्होंने तपस्या की। बद्रीनाथ वही स्थान हैं।
9. कश्यप ऋषि की उत्पत्ति और उनसे एकादश रुद्रों की उत्पत्ति।
10. कपिल मुनि : महर्षि कर्दम व देवहूति के यहां विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में जन्म लिया। कपिल के क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं। वे सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं।
11. रुद्र कार्तिकेय और विनायक सेना में प्रमथ होने का वर्चस्व।
12. दत्तात्रेय का अवतार : एक बार त्रिदेव ब्रहा, विष्णु और महेश ने ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वे अपने अंश से उनके गर्भ से पुत्ररूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। चंद्रमा से चंद्रवंश चला। इसी वंश में कृष्ण हुए।
13. आदि वराह अवतार (हिरण्याक्ष वध) : कश्यप पुत्र हिरण्याक्ष का आतंक और उसका अंत।
14. श्वेत वराह अवतार : ऋषभदेव देव के पुत्र सुमति के पुत्र विमति का आतंक और उसका वध।
15. नृसिंह अवतार (हिरण्यकशिपु वध) : कश्यप ऋषि के दूसरे पुत्र और भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकशिपु का वध।
16. हररुद्र अन्धक (बृकासुर वध, भस्मासुर वध) :
17. स्कंद कार्तिकेय ताड़क (विरोचन वध) : शिव पुत्र कार्तिकेय द्वारा ताड़कासुर का वध, हिरण्यकशिपु के पौत्र और प्रहलाद के पुत्र विरोचन का वध।
18. दैत्यराज बलि का दक्षिण देश पर विशाल साम्राज्य : बालि से घबराकर दक्ष, अंगिरा, वशिष्ठ, अत्रि, चन्द्रमा, भृगु, बृहस्पति, भारद्वाज आदि की इन्द्रादि देवों द्वारा रक्षा और दान सम्मान अर्चना। बालि विरोचन का पुत्र था।
19. वामन अवतार (बालि बंधन) : बालि द्वारा स्वर्ग पर अधिकार और विष्णु का वामन अवतार।
20. शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध :
21. सती के बाद पार्वती का जन्म :
22. महिषासुर का आतंक और उसका वध :
* दूसरा काल : स्वायंभुव मनु का काल:-
1. स्वायम्भुव मनु का काल : स्वायंभुव मनु के दो प्रमुख पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी।
2.मनु की कन्याएं : आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि के आकूति से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई।
3.यज्ञावतार : श्री स्वयंभुव मनु की पुत्री आकूति, जो रुचि प्रजापति से ब्याही गई थी। उन रुचि प्रजापति ने आकूति से एक पुरुष और स्त्री का जोड़ा उत्पन्न किया। उनमें जो पुरुष था, वह साक्षात यज्ञ-स्वरूपधारी भगवान विष्णु थे और जो स्त्री थी, वह भगवान से कभी भी अलग न रहने वाली लक्ष्मीजी की अंषरूपा थीं।
4.मनु के पुत्र प्रियव्रत का धरती का विभाजन : सप्त समुद्रों और सप्त द्वीपों का विभाजन कर अपने पुत्रों को बांटना। अग्नीध्र को जम्बूद्वीप मिला। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम तामस और रैवत- ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो अपने नामवाले मनवंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्रों मे से कवि, महावीर तथा सवन ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।
5.भगवान ऋषभनाथ का जन्म : महाराज नाभि के पुत्र का नाम ऋषभ था। महाराजा नाभि के दादा का नाम प्रियव्रत और पिता का नाम अग्नीध्र था। इनको ही वेदों मे वृषभनाथ कहा गया है। कुछ लोग इन्हें ही वातरशना मुनि कहते हैं।
6.राजा भरत का जन्म : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था।
* तीसरा काल : वैवस्वत मनु का काल:-
1. कच्छप अवतार (समुद्र मंथन) : कच्छप अवतार को कूर्म अवतार भी कहते हैं। कूर्म अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।
2. मत्स्य अवतार (वैवस्वत मनु काल) : इस काल में धरती एक बार फिर जल के प्रलय में डूब गई थी। विष्णु ने मछली बनकर राजा वैवस्वत मनु की नाव को हिमालय की चोटी से बांध दिया था। प्रलय के बाद वैवस्वत मनु ने विश्व प्रजा का पालन, देव संस्कृति का महान विस्तार किया। इस मन्वंतर में ऊर्जस्वी नामक इन्द्र थे। मनु के पुत्र थे:- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं।
3.राजा इक्ष्वाकु का वंश : मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के तीन पुत्र हुए:- 1.कुक्षि, 2.निमि और 3.दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। इन्हीं के कुल में रघु हुए। इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि मिथिला के राजा थे। इसी इक्ष्वाकु वंश में बहुत आगे चलकर राजा जनक हुए। राजा निमि के गुरु थे- ऋषि वसिष्ठ। निमि जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर बनें। इक्ष्वाकु ने 100 रात्रि का कठोर तप करके सूर्य देवता की सिद्धि प्राप्त की थी और वशिष्ठ को गुरु बनाकर उनके उपदेश से अपना पृथक राज्य और राजधानी अयोध्या (आयुधधारी संघ जिससे युद्ध करने का कोई साहस न करे) ऐसी पुरी स्थापित कराई और वे प्राय: वहीं रहने लगे।
4.पृथु का काल : त्रिशंकु, मांधाता, प्रसेनजित और भरत की कहानी। पृथु को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। युवनाश्व वंशी त्रसदस्यु मांधाता का विश्व दस्यु दलन कार्य प्रसिद्ध है। कुत्स गोत्र का यौवनाश्व प्रवर युवनाश्व पुत्र चक्रवर्ती सम्राट मांधाता के आत्मसमर्पण का द्योतक है। मांधाता यौवनाश्व का समय 5576 वि.पू. है। भागवत के कथन से यौवनाश्व मांधाता पुत्र अंबरीष का पुत्र था। युवनाश्व का राज्य लवणासुर ने छीन लिया।
5.यह काल दिष्ट वंशी मरु चक्रवर्ती, निमिवंशी प्रतीपक तक चला तथा चन्द्रवंशी संयाति पर इसका अंत हो गया। भरत के बाद क्रमश ये हुए- सगर, भगीरथ, रघु, सुदर्शन, अग्निवर्ण, मरु, नहुष, ययाति।
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* चौथा काल : राम-वशिष्ठ काल : 1. मरुदगणों के कुल के मरुत चक्रवर्ती के बाद हैहयों का राज्य, सगर वंश का राज्य। 2. राजा हरिशचंद्र का बलिदान : महान दानवीर और त्याग की मूर्ति राजा हरिशचंद्र की कथा कौन नहीं जानता। गुरु वशिष्ठ और ब्रह्मा ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे सबकुछ छीन लिया था। 3.भगीरथ द्वारा गंगा अवतरण : राजा भगीरथ ने भागीरथी गंगा का अवतरण 4448 वि.पू. में किया, जो आज भी भारतवर्ष की सबसे बड़ी पुण्यप्रद और जल सिंचन आधार बनी राष्ट्र संवर्धक महान नदी है। सगर से लेकर भगीरथ तक गंगा पर कार्य चला।
4. वशिष्ठ-विश्वामित्र की लड़ाई : सुदास का दाशराज युद्ध, दोनों ऋषियों का देवों और ऋषियों में सम्मान था, दोनों में धर्म और वर्चस्व की लड़ाई थी। इस लड़ाई में वशिष्ठ के 100 पुत्रों का वध हुआ। फिर डर से विश्वामित्र के 50 पुत्र तालजंघों (हैहयों) की शरण में जाकर उनमें मिलकर म्लेच्छ हो गए। तब, हार मानकर विश्वामित्र इनके (वशिष्ठ के) शरणागत हुए और वशिष्ठ ने उन्हें क्षमादान दिया। वशिष्ठ ने श्राद्धदेव मनु (वैवस्वत) 6379 वि.पू. को परामर्श देकर उनका राज्य उनके पुत्रों को बंटवाकर दिलाया।
5. देवासुर संग्राम : वैसे तो देवताओं और असुरों में पहले भी कई संग्राम हुए, लेकिन यह संग्राम वशिष्ठ के काल में हुआ। इसमें राम के पिता राजा दशरथ ने भी भाग लिया था।
6. परशुराम कार्तवीर्य (हैहय विनाश) : परशुराम का जन्म और उनका हैहय क्षत्रियों से झगड़ा। 7.राम और रावण युद्ध : दशरथ पुत्र राम ने रावण से युद्ध किया था। 8. रामवंशी लव, कुश, बृहद्वल, निमिवंशी शुनक और ययाति वंशी यदु, अनु, पुरु, दुह्यु, तुर्वसु का राज्य महाभारतकाल तक चला और फिर हुई महाभारत। इन्हीं पांचों से मलेच्छ, यादव, यवन, भारत और पौरवों का जन्म हुआ। इनके काल को ही आर्यों का काल कहा जाता है।
* पांचवां : कृष्ण काल:- 1. श्रीकृष्ण अवतार- कृष्ण जन्म और धरती की राजनीतिक व धार्मिक स्थिति। कृष्ण, पांडव, कौरव और ऋषि पुत्रों का वंश वर्णन और इस काल के कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम का उल्लेख महाभारत में मिलता है। 2. महाभारत युद्ध : महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है। 3. अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजीत, वीरजीत और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेमधर्म से पूर्व राज किया था। 4. बृहद्रथ (जरासंध) वंश के रूप में 3233 वि.पू. से रिपुंजय तक 2011 वि.पू. तक चला, शत्रुंजय के समय श्रीकृष्ण वंशी बज्रनाम का राज्य चला, बाद में यादवों के वंश मिथिला, मगध, विदर्भ, गौंडल, जैसरमेल, करौली, काठियावाड़, सतारा, दक्षिण मथुरा पांड्यदेश, पल्लव आदि विभिन्न खंडों में बिखर गए। 5.महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है। 6.शुनक वंशी प्रद्योत और उसके पांचवें वशंधर नंदिवर्धन (1873 वि.पू.)।
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* पांचवां काल : महावीर और बुध का काल:- 1. महावीर स्वामी का जन्म : 2. उदयन : पुरुवंशीय उदयन वत्स राज्य के राजा थे। उनकी राजधानी का नाम कौशाम्बी था। उन्हीं दिनों अवंति राज्य, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी, में प्रद्योत नाम के राजा राज्य करते थे। 3. बुद्ध जन्म : 4. बिम्बिसार : बुद्ध के सबसे बड़े प्रश्रयदाता और अजातशत्रु के पिता। 5. कल्कि अवतार : इस काल में कल्कि अवतार हुआ था। लेकिन इस पर विवाद है। यह शोध का विषय है। 6. कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य : कुमारिल जहां बौद्ध धर्म को प्रचारित करने में लगे थे वहीं शंकराचार्य हिन्दू धर्म को बचाने में लगे थे। उन्होंने दसमानी संप्रदाय का गठन कर हिन्दू धर्म को फिर से जीवंत किया। शंकराचार्य नहीं होते तो यह देश उसी काल में बौद्ध राष्ट्र बन गया होता। 7. विदेशी आक्रमण की शुरुआत : हूण, यूनानी, ईरानी, मंगोल आदि का आक्रमण। हूण आक्रमण- 600 वि. के लगभग हूणों ने आक्रमण किया। हूणों ने अपार धन लूटा मंदिर तोड़े, स्तूप संघारामों को बर्बाद किया। ईरानी हजारों टन सोना लूट ले गए। 8.उज्जैन के राजा विक्रम सिंह विक्रमादित्य : विक्रमादित्य के द्वारा भारत का पुनरुत्थान। यह वह राजा हैं जिनके काल की बेताल और सिहांसन बत्तीसी की कहानी प्रसिद्द है। राजा विक्रमादित्य का राज्य अरब तक था। इनके बाद ही विक्रम संवत शुरू हुआ।
* छठा काल : मौर्य काल : 1.चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य : आदिवासी जाति की मुरा नामक स्त्री के चंद्रगुप्त ने धननंद के राज्य को उखाड़कर एक लोककांत्रिक और हिन्दू राज्य की स्थापना की। 2.देवानांप्रिय अशोक मौर्य : चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र और बिंदुसार के पुत्र महान सम्राट अशोक का जन्म, कार्य और राज्य विस्तार। * शक, कुषाणों का राज्य विस्तार : कुषाणों का राज्य आया। कुषाण शिव के कूष्मांड गण थे। कनिष्क 182-205 वि. इस वंश का महान प्रतापी सम्राट था। *गुप्त काल : गुप्तवंश के काल को भरत का स्वर्ण काल माना जाता है। श्रीगुप्त, घटोत्कच्छ, चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितिय और कुमारगुप्त गुप्तवंश के प्रमुख राजा थे।
अंत में सातवां काल, अगले पन्ने पर..
सातवां काल : हर्षवर्धन-भोज का काल * हर्षवर्धन : हर्षवर्धन और राजा भोज ने भारत की अक्षुणता बनाए रखने के बहुत प्रयास किए, लेकिन उनके जाने के बाद भारत में आक्रमण बढ़ गए। इनके बाद के काल को भारतीय इतिहास में मध्यकाल कहा जाता है। मध्यकाल में भारत और हिन्दू धर्म का पतन हो गया।
* इसके बाद अरबी, ईरानी, तुर्क, मंगोल आदि लोगों का आक्रमण बढ़ गया और यहां अरब के इस्लामिक धर्म का विस्तार हुआ।
* आक्रमणकर्ताओं के क्रम में मोहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, अलाउद्दीन खिलजी, मोहम्मद गौरी, बाबर, औरंगजेब, तैमूरलंग आदि ने लूटा और कत्लेआम किया तो मुहम्मद तुगलक, कुतुबुद्दीन ऐबक, हुमायूं, इल्तुतमिश, इब्राहीम लोधी आदि के पूर्वजों और उन्होंने ने भारत में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करवाया और संपूर्ण भारत की धरती एक युद्ध क्षेत्र में बदल गई। उपर जितने भी नाम लिखे हैं वे सभी विदेशी आक्रांता और उनके वंशज थे। अब भारत में उनके वंशज नहीं रहे।
संदर्भ : वेद, पुराण, और माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों का इतिहास (लेखक, श्री बालमुकुंद चतुर्वेदी) से साभार। संशोधन और सुझाव आमंत्रित।