प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का क्या रहा है इतिहास

WD Feature Desk
बुधवार, 19 जून 2024 (12:07 IST)
Nalanda University: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। भारत के प्राचीन काल में इस विश्वविद्यालय में देश और दुनिया से छात्र पढ़ने आते थे। उस काल में यह विश्‍व का सबसे टॉप विश्‍वविद्यालय था। मध्यकाल में इस यूनिवर्सिटी को मु्स्लिम आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया था। आओ जानते हैं कि क्या है इस विश्‍व विद्यालय का इतिहास।
 
नालंदा का अर्थ : नालंदा संस्कृत शब्‍द नालम्+दा से बना है। संस्‍कृत में 'नालम्' का अर्थ 'कमल' होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है। नालम्+दा यानी कमल देने वाली, ज्ञान देने वाली। कालक्रम से यहां महाविहार की स्‍थापना के बाद इसका नाम 'नालंदा महाविहार' रखा गया।ALSO READ: नालंदा यूनिवर्सिटी को मिला नया कैंपस, PM मोदी बोले, आग की लपटे ज्ञान को मिटा नहीं सकती
 
कहां है नालंदा : नालंदा विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 95 किलोमीटर, राजगीर से 12 किलोमीटर, बोधगया से 90 किलोमीटर (गया होकर), पावापुरी से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस विश्वविद्यालय के खंडहरों को अलेक्जेंडर कनिंघम ने तलाशकर बाहर निकाला था जिसके जले हुए भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव की दास्तां बयां करते हैं। 
 
विश्वविद्यालय का स्थापना काल : इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 413-455 ईपू में की। इस विश्वविद्यालय को कुमारगुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग और संरक्षण मिला। ह्नेनसांग के अनुसार 470 ई. में गुप्त सम्राट नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालंदा में एक सुंदर मंदिर निर्मित करवाकर इसमें 80 फुट ऊंची तांबे की बुद्ध प्रतिमा को स्थापित करवाया। 
 
चीनी यात्री ह्वेनसांग : जब ह्वेनसांग भारत आया था, उस समय नालंदा विश्‍वविद्यालय में 8,500 छात्र एवं 1,510 अध्यापक थे। अनेक पुराभिलेखों और 7वीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आए चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहां जीवन का महत्वपूर्ण 1 वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध बौद्ध 'सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।
 
संरक्षण : गुप्त वंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसके संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान जारी रखा और बाद में इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानीय शासकों तथा विदेशी शासकों से भी इस विश्वविद्यालय को अनुदान मिलता था। यहां इतनी किताबें रखी थीं कि जिन्हें गिन पाना आसान नहीं था। हर विषय की किताबें इस विश्वविद्यालय में मौजूद थीं। 
 
नि:शुल्क पढ़ाई : नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास, भोजन आदि का कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता था। सभी सुविधाएं नि:शुल्क थीं। राजाओं और धनी सेठों द्वारा दिए गए दान से इस विश्वविद्यालय का व्यय चलता था। इस विश्वविद्यालय को 200 ग्रामों की आय प्राप्त होती थी। यह भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्वविख्यात केंद्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केंद्र में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। यहां धर्म ही नहीं, राजनीति, शिक्षा, इतिहास, ज्योतिष, विज्ञान आदि की भी शिक्षा दी जाती थी। यहां पर सभी विषयों का ज्ञान दिया जाता था। ALSO READ: इस तरह हुआ नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस
 
किसने विध्वंस किया नालंदा को : बिहार बौद्ध धर्म का गढ़ था। इस गढ़ को ढहाने के लिए खलिफाओं के द्वारा एक तुर्क सेनापति बख्तियार खिलजी को भेजा गया था। इस विश्वविद्यालय की 4थी से 11वीं सदी तक अंतररराष्ट्रीय ख्याति रही थी, लेकिन इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी नामक एक मुस्लिम तुर्क लुटेरे ने 1199 ईस्वी में इसे जलाकर नष्ट कर दिया। इस कांड में हजारों दुर्लभ पुस्तकें जलकर राख हो गईं। महत्वपूर्ण दस्तावेज नष्ट हो गए। कहा जाता है कि वहां इतनी पुस्तकें थीं कि आग लगने के बाद भी 3 माह तक पुस्तकें धू-धू करके जलती रहीं।
 
आश्चर्य की बात यह है कि वह लुटेरा सिर्फ 200 घुड़सवारों के साथ आया था और नालंदा विश्वविद्यालय में उस समय कम से कम 20,000 छात्र पढ़ रहे थे। निहत्थे और अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं ने कभी यह कल्पना भी नहीं कि थी कि इस विश्‍वविद्यालय को सुरक्षा की जरूरत भी होगी। इस क्रूर तुर्क ने विश्वविद्यालय के पासपास रह रहे बौद्धों, अनेक धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम किया और उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। हजारों बौद्ध भिक्षुओं का कत्ल कर दिया गया और हजारों भिक्षु श्रीलंका या नेपाल भाग गए।
 
खिलजी ने बिहार में चुन-चुनकर सभी बौद्ध मठों को नष्‍ट कर दिया था और लोगों को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया था। इस्‍लामी चरमपंथियों ने गया के बोधिस्‍थल को अपने हमले के लिए चुना।
 
लुप्त हो गया ज्ञान : नालंदा की हजारों जलाई गईं पुस्तकों के कारण बहुत-सा ऐसा ज्ञान विलुप्त हो गया, जो आज दुनिया के काम आता। कैसे बचाया दुर्लभ पांडुलिपियों को : कहते हैं कि कई अध्यापकों और बौद्ध भिक्षुओं ने अपने कपड़ों में छुपाकर कई दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाया तथा उन्हें तिब्बत की ओर ले गए। कालांतर में इन्हीं ज्ञान-निधियों ने तिब्बत क्षेत्र को बौद्ध धर्म और ज्ञान के बड़े केंद्र में परिवर्तित कर दिया।

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