महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है।
कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने नाग पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ नागों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।
अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को एक ऋषि ने श्राप दिया दिया था जिसके चलते तक्षक नाग ने उन्हें काट लिया था। उनके मरने का कारण जब परीक्षित के पुत्र जनमेजय को पता चला तो जनमेजय ने नागयज्ञ किया। जिस यज्ञ के प्रभाव से सभी नाग यज्ञ की आग में खुद ब खुद आकर भस्म होने लगे। लेकिन कर्कोटक नामक एक नाग शिव की नगरी महाकाल में शिव की शरण में जाकर बच गया था।
उल्लेखनीय है कि कद्रू की कोख से बहुत से नागों की उत्पत्ति हुई, जिनमें प्रमुख आठ नाग थे- अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।