भारत की इन 4 रहस्यमयी लिपियों का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे...

अनिरुद्ध जोशी
ग्लोबलाइजेशन और तकनीक के दौर में पूरी दुनिया कुछ बेहतर पाने के लिए अपनी कुछ अहम चीजों को पीछे छोड़ती जा रही है, उनमें से एक है भाषा। विज्ञान और सांस्कृतिक संघर्ष के कारण कुछ भाषाएं लुप्त हो रही है तो कुछ खुद को बदल रही है और कुछ खुद को विस्तार दे रही है। इसी संघर्ष क्रम में प्राचीन काल में ऐसी कई भाषाएं या उनकी लिपियां लुप्त होकर अब रहस्य का विषय बनी हुई है। हालांकि कुछ ऐसी भी लिपिया हैं जिनका अस्तिव बरकरार है।
कई गुफाओं में पाई गई चित्रलिपि या न मालूम किस भाषा में लिखे गए शिलालेख, मुद्रा और स्तंभों पर खुदी भाषा आज के भाषाविदों के लिए अभी भी अनसुलझी गुत्थी है। इसी क्रम में कुछ लोग मध्य कामल में ऐसे लेख या किताबें लिख गए है जिनकी भाषा वतर्ममान में प्रचलीत भाषा से भिन्न है और जिन्हें अभी तक नहीं पढ़ा जा सकता है। यह लिपियां गुहा चित्रों, भग्नावशेषों, समाधियों, मंदिरों, मृदाभांडों, मुद्राओं के साथ शिलालेखों, चट्टान लेखों, ताम्रलेखों, भित्ति चित्रों, ताड़पत्रों, भोजपत्रों, कागजों एवं कपड़ों पर अंकित है। 
 
भाषाओं के अस्तित्व बचाने की दौड़ में ऐसी कई भाषाएं और लिपियां लुप्त हो गई, जिन्हें आज रहस्यमयी माना जाता है। इनमें से कुछ ऐसी भाषा की पांडुलिपियां पाई गई है जो विज्ञान की नजरों में अत्यंत ही रहस्यमी ज्ञान से परिपूर्ण है। कुछ प्राचीन लिपियां आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई हैं। उनमें लिखित अभिलेख आज तक नहीं पढ़े जा सके हैं। कई वर्षों के शोध के बाद भी अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इन लिपियों, मुद्राओं या शिलालेखों में क्या लिखा है। जिस दिन इसका पता चलेगा इतिहास का एक नया पन्ना खुलेगा। ऐसी ही कुछ नई और कुछ प्राचीन रहस्यमयी लिपियों के बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे।

रहस्यमयी लिपि : बालूमाथ चंदवा के बीच रांची मार्ग पर नगर नामक स्थान में एक अति प्राचीन मंदिर है जो भगवती उग्रतारा को समर्पित है। यह एक शक्तिपीठ है।

बालूमाथ से 25 किलोमीटर दूर प्रखंड के श्रीसमाद गांव के पास तितिया या तिसिया पहाड़ के पास चतुर्भुजी देवी की एक मूर्ति मिली है, जिसके पीछे अंकित लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
 
 

शंख लिपि : कुछ प्राचीन लिपियां आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई हैं। उनमें लिखित अभिलेख आज तक नहीं पढ़े जा सके हैं। भारत तथा जावा और बोर्नियो में प्राप्त बहुत से शिलालेख शंखलिपि में हैं। इस लिपि के वर्ण 'शंख' से मिलते-जुलते कलात्मक होते हैं। इसीलिए शंख लिपि कहते हैं।
शंख लिपि को विराटनगर से संबंधित माना जाता है। उदयगिरि की गुफाओं की शिलालेखों और स्तंभों पर यह लिपि खुदी हुई है। इस लिपि के अक्षरों की आकृति शंख के आकार की है। प्रत्येक अक्षर इस प्रकार लिखा गया है कि उससे शंखाकृति उभरकर सामने दिखाई पड़ती है। इसलिए इसे शंखलिपि कहा जाने लगा।

सिंधु घाटी की लिपि : नए शोधानुसार माना जाता है कि सिंधु घाटी के द्रविढ़ियन आर्य या वैदिक धर्म का पालन करते थे। लेकिन इन लोगों की भाषा कौन-सी थी यह आज भी एक रहस्य है। सिंधु घाटी की लिपि आज तक नहीं पढ़ी जा सकी, जो किसी युग में निश्चय ही जीवंत भाषा रही होगी।
नए शोधानुसार हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले बर्तन समेत अन्य वस्तुओं पर सिंधु घाटी सभ्यता की अंकित चित्रलिपियों को पढ़ने की कोशिशें लगातार जारी हैं। गोंडी भाषा के विद्वान आचार्य तिरु मोतीरावण कंगाली का दावा है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सैंधवी लिपियां गोंडी में ज़्यादा सुगमता से पढ़ी जा सकती हैं। सैंधवी लिपि को पढ़ने की कोशिश करने वाले डॉक्टर जॉन मार्शल सहित आधे दर्जन से अधिक भाषा और पुरातत्वविदों के हवाले से मोतीरावण कंगाली कहते हैं, 'सिन्धु घाटी सभ्यता की भाषा द्रविड़ पूर्व (प्रोटो द्रविड़ीयन) भाषा थी।' ऋग्वेद के अनुसार दुर्योण 'कुयव असुरों' की राजधानी थी, जिसे जला दिया गया था. मोहनजोदड़ो को भी जलाया गया था. यह आर्य पूर्व द्रविड़ियन की राजधानी बाताई जाती है. गोंड समुदाय के लोग आज भी धरती माता की पूजा पर 'कुयव' से संबंधित मंत्र का जाप करते हैं.
 
एक अन्य शोधानुसार सदियों पुरानी धारणा कि सिंधु लिपि एक भाषा है, इसके विपरीत एक अनुभवी विज्ञान इतिहासकार बी.वी.सुब्बारायप्पा ने दावा किया है कि यह लिपि संख्यात्मक है, जो सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों और कलाकृतियों पर अंकित संख्याओं और प्रतीकों से स्पष्ट है। संख्यात्मक सिंधु लिपि की बेजोड़ विशिष्टताओं को दिखाते हुए उन्होंने कहा कि घाटी के लोग व्यापक रूप से अपने दैनिक व्यवसायों के लिए दशमलव, जमा और गुणात्मक संख्यात्मक प्रणाली का इस्तेमाल करते थे।

ब्राह्मी और देवनागरी लिपि : भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा। प्राचीनकाल में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का प्रचलन था। ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। ब्राह्मी भी खरोष्ठी की तरह ही पूरे एशिया में फैली हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि ब्राह्मी लिपि 10,000 साल पुरानी है लेकिन यह भी कहा जाता है कि यह लिपि उससे भी ज्यादा पुरानी है।
सम्राट अशोक ने भी इस लिपि को अपनाया : महान सम्राट अशोक ने ब्राह्मी लिपि को धम्मलिपि नाम दिया था। ब्राह्मी लिपि को देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि यह प्राचीन सिन्धु-सरस्वती लिपि से निकली लिपि है। हड़प्पा संस्कृति के लोग सिंधु लिपि के अलाव इस लिपि का भी इस्तेमाल करते थे, तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।
 
शोधकर्ताओं के अनुसार देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि आदि सभी लिपियों की जननी है ब्राह्मी लिपि। ब्राह्मी एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। कुछ लोगों के अनुसार कोरियाई लिपि का विकास भी इसी से हुआ था। कहते हैं कि प्राकृत और पाली भाषा भी देवनागरी और ब्राह्मी लिपि में लिखी जाती थी। पाली, ब्राह्मी परिवार की लिपियों में लिखी जाती थी। कहते हैं कि चीनी लिपि 5,000 वर्षों से ज्यादा प्राचीन है। मेसोपोटामिया में 4,000 वर्ष पूर्व क्यूनीफॉर्म लिपि प्रचलित थी। इसी तरह भारतीय लिपि ब्राह्मी के बारे में भी कहा जाता है। 
 
जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता को मानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था और कहा जाता है कि उसी ने लेखन की खोज की। यही कारण है कि उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते हैं। हिन्दू धर्म में सरस्वती को शारदा भी कहा जाता है, जो ब्राह्मी से उद्भूत उस लिपि से संबंधित है।
 
तीर्थंकर की बेटी ब्रह्मी ने विकसित की यह लिपि : तीर्थंकर ऋषभदेव की ब्राह्मी और सुन्दरी दो पुत्रियां थीं। बाल्यावस्था में वे ऋषभदेव की गोद में जाकर बैठ गई। ऋषभदेव ने उनके विद्याग्रहण का काल जानकर लिपि और अंकों का ज्ञान कराया। ब्राह्मी दायीं ओर और सुन्दरी बायीं ओर बैठी थी, ब्राह्मी को वर्णमाला का बोध कराने के कारण लिपि बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती है। सुन्दरी को अंक का बोध कराने के कारण अंक बायीं से दायीं ओर ओर इकाई, दहाई...के रूप में लिखे जाते हैं। इस लिपि का अभ्यास करने से भारत की अधिकांश लिपियों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ब्राह्मी लिपि का प्रयोग वर्ण ध्वन्यात्मक है। इसको लिखने और बोलने में एक रूपता है। वर्तमान में अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं की लिपियों को छोड़कर समस्त लिपियां ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं।
 
दक्षिण भारत में भी प्रचलित थी ब्राह्मी : केरल के एर्नाकुलम जिले में कलादी के समीप कोट्टानम थोडू के आसपास के इलाकों से मिली कुछ कलात्मक वस्तुओं पर ब्राह्मी लिपि खुदी हुई पाई गई है, जो नवपाषाणकालीन है। यह खोज इलाके में महापाषाण और नवपाषाण संस्कृति के अस्तित्व पर प्रकाश डालती है। पत्थर से बनी इन वस्तुओं का अध्ययन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वैज्ञानिक और केरल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुरातत्वविद डॉ. पी. राजेन्द्रन द्वारा किया गया। ये वस्तुएं एर्नाकुलम जिले में मेक्कालादी के अंदेथ अली के संग्रह का हिस्सा हैं। राजेन्द्रन ने बताया कि मैंने कलादी में कोट्टायन के आसपास से अली द्वारा संग्रहीत कलात्मक वस्तुओं के विशाल भंडार का अध्ययन किया। इन वस्तुओं में नवपाषणकालीन और महापाषाणकालीन से संबंधित वस्तुएं भी हैं। उन्होंने बताया कि नवपाषाणकलीन कुल्हाड़ियों का अध्ययन करने के बाद पाया गया कि ऐसी 18 कुल्हाड़ियों में से 3 पर गुदी हुई लिपि ब्राह्मी लिपि है।
 
तमिल लिपि : तमिल भाषा की लिपि को तमिल लिपि कहते हैं। दरअसल, तमिल लिपि को ब्राह्मी लिपि का ही एक रूप है। इसे द्रविड़ लिपि भी कहते हैं। ऐतिहासिक रूप से तमिल लेखन प्रणाली का विकास ब्राह्मी लिपि से वट्टे-लुटटु (मुड़े हुए अक्षर) और कोले-लुट्टु (लम्बाकार अक्षर) के स्थानीय रूपांतरणों के साथ हुआ।
 
सौराष्ट्र, बडगा, इरुला और पनिया आदि अल्पसंख्यक भाषाएं भी तमिल में लिखी जातीं हैं। तेलुगु लिपि भी ब्राह्मी से उत्पन्न एक भारतीय लिपि है जो तेलुगु भाषा लिखने के लिए प्रयुक्त होती है। अक्षरों के रूप और संयुक्ताक्षर में ये अपने पश्चिमी पड़ोसी कन्नड़ लिपि से बहुत मेल खाती है। मलयालम लिपि भी ब्राह्मी लिपि से व्युत्पन्न लिपि है। इसका उपयोग मलयालम भाषा सहित पनिय, बेट्ट कुरुम्ब, रवुला और कभी-कभी कोंकणी लिखने में होता है।
 
इसी तरह बांग्ला लिपि भी पूर्वी नागरी लिपि का एक परिमार्जित रूप है जिसे बांग्ला भाषा, असमिया या विष्णुप्रिया मणिपुरी लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है। पूर्वी नागरी लिपि का संबंध ब्राम्ही लिपि के साथ है। बांग्ला और असमिया लिपियों में बहुत समानता है और इन दोनों का विकास एकसाथ ही हुआ है। 
 
गुरु नानक के उत्तराधिकारी गुरु अंगद ने नानक के पदों के लिए गुरुमुखी लिपि को स्वीकार किया, जो ब्राह्मी से निकली थी और पंजाब में उनके समय में प्रचलित थी। गुरुमुखी लिपि वह लिपि है, जिसमें सिक्खों का धर्मग्रन्थ 'ग्रन्थ साहब' लिखा हुआ है। वास्तव में 'गुरुमुखी' लिपि का नाम है, परन्तु भूल से लोग इसे भाषा भी समझ लेते हैं।

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