हिंदू धर्म में युग शब्द के अलग-अलग अर्थ है। उल्लेखनीय है कि आपने सुना ही होगा मध्ययुग, आधुनिक युग, वर्तमान युग जैसे अन्य शब्दों को। इसका मतलब यह कि युग शब्द को कई अर्थों में प्रयुक्त किया जाता रहा है।
ज्योतिषानुसार 5 वर्ष का एक युग होता है। संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर और युगवत्सर ये युगात्मक 5 वर्ष कहे जाते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि 60 वर्षों में 12 युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में 5-5 वत्सर होते हैं। 12 युगों के नाम हैं- प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो 5 वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और 5वां युगवत्सर है।
दूसरी ओर, पौराणिक मान्यता अनुसार एक युग लाखों वर्ष का होता है, जैसा कि सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है। उक्त युगों के भीतर ही यह चार तरह के युगों का क्रम भी होता है। अर्थात कलियुग में ही सतयुग का एक दौर आएगा, उसी में त्रैता और द्वापर भी होगा। हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं इसी पौराणिक मान्यता के अनुसार किस युग में कौन से प्रमुख अवतार हुए इसके बारे में जानकारी। हालांकि निम्निलिखित अवतारों के अलावा भी विष्णु के अवतार हुए हैं लेकिन यहां प्रमुख के नाम।
सतयुग : इस युग में मत्स्य, हयग्रीव, कूर्म, वाराह, नृसिंह अवतार हुए जो कि सभी सभी अमानवीय थे। इस युग में शंखासुर का वध एवं वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए यह अवतार हुए थे।
त्रेतायुग : इस युग में वामन, परशुराम और भगवान श्री राम अवतार हुए। भगवान विष्णु ने बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, अत्याचारी हैयय क्षत्रियों का संहार और रावण का वध करने के लिए यह अवतार लिया था।
कलियुग : इस युग में भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है, जिनके माध्यम से धर्म की पुन: स्थापना की गई। दूसरा इसी युग में भगवान कल्कि के विष्णु यक्ष के घर जन्म लेने की बात कही गई है। हालांकि कुछ के अनुसार यह अवतार हो चुका है। उन्होंने मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों के विनाश एवं धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया या लेंगे।