शतपथ ब्राह्मण अनुसार पुरुवस् को ऐल भी कहा जाता था। पुरुवस् का विवाह उर्वशी से हुआ। जिससे उसको आयु, वनायु, क्षतायु, दृढ़ायु, घीमंत और अमावसु कानम पुत्र प्राप्त हुए। अमावसु एवं वसु विशेष थे। अमावसु ने कान्यकुब्ज नामक नगर की नींव डाली और वहां का राजा बना। आयु का विवाह स्वरभानु की पुत्री प्रभा से हुआ जिनसे उसके पांच पुत्र हुए- नहुष, क्षत्रवृत (वृदशर्मा), राजभ (गय), रजि, अनेना। प्रथम नहुष का विवाह विरजा से हुआ जिससे अनेक पुत्र हुए जिसमें ययाति, संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख थे। इन पुत्रों में यति और ययाति प्रीय थे।
यति सांसारिक मोह त्यागकर संन्यासी हो गए और ययाति राजा बने जिनका राज्य सरस्वती तक विस्तृत था। ययाति प्रजापति की 1वीं पीढ़ी में हुए। ययाति की दो पत्नियां थी: देवयानी और शर्मिष्ठा। ययाति प्रजापति ब्रह्मा की 10वीं पीढ़ी में हुए थे। देवयानी से यदु और तुर्वसु तथा शर्मिष्ठा से द्रहुयु (द्रुहु), अनु और पुरु हुए। पांचों पुत्रों ने अपने अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रहुयु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुए।
ययाति ने पुरु को अपने पैतृत प्रभुसत्ता वला क्षेत्र प्रदाय किया जो कि गंगा-यमुना दोआब का आधा दक्षिण प्रदेश था। अनु को पुरु राज्या का उत्तरी, द्रहयु को पश्चिमी, यदु को दक्षिण-पश्चिमी तथा तुर्वसु को दक्षिण-पूर्वी भाग प्रदान किया। पुरु के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए।
पुरु का वंश : पुरु के कौशल्या से जन्मेजय हुए, जन्मेजय के अनंता से प्रचिंवान हुए, प्रचिंवान के अश्म्की से संयाति हुए, संयाति के वारंगी से अहंयाति हुए, अहंयाति के भानुमती से सार्वभौम हुए, सार्वभौम के सुनंदा से जयत्सेन हुए, जयत्सेन के सुश्रवा से अवाचीन हुए, अवाचीन के मर्यादा से अरिह हुए, अरिह के खल्वंगी से महाभौम हुए, महाभौम के शुयशा से अनुतनायी हुए, अनुतनायी के कामा से अक्रोधन हुए, अक्रोधन के कराम्भा से देवातिथि हुए, देवातिथि के मर्यादा से अरिह हुए, अरिह के सुदेवा से ऋक्ष हुए, ऋक्ष के ज्वाला से मतिनार हुए और मतिनार के सरस्वती से तंसु हुए।
इसके बाद तंसु के कालिंदी से इलिन हुए, इलिन के राथान्तरी से दुष्यंत हुए, दुष्यंत के शकुंतला से भरत हुए, भरत के सुनंदा से भमन्यु हुए, भमन्यु के विजय से सुहोत्र हुए, सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती हुए, हस्ती के यशोधरा से विकुंठन हुए, विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़ हुए, अजमीढ़ से संवरण हुए, संवरण के तप्ती से कुरु हुए जिनके नाम से ये वंश कुरुवंश कहलाया।
कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए, विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा हुए, अनाश्वा के अमृता से परीक्षित हुए, परीक्षित के सुयशा से भीमसेन हुए, भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा हुए, प्रतिश्रावा से प्रतीप हुए, प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ।
देवापि किशोरावस्था में ही सन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ने में लग गए इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को गद्दी मिली। शांतनु कि गंगा से देवव्रत हुए जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भीष्म का वंश आगे नहीं बढ़ा क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा कि थी। शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। लेकिन इनका वंश भी आगे नहीं चला इस तरह कुरु की यह शाखा डूब गई, लेकिन दूसरी शाखाओं ने मगथ पर राज किया और तीसरी शाखा ने अफगानिस्तान पर और चौथी ने ईरान पर। (wd (c))