योगी नरहरिनाथजी के अनुसार, महायोगी गोरक्षनाथ का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि और वार मंगलवार को हुआ था। अंग्रेजी माह के अनुसार इस बार यह जयंती 26 मई 2021 बुधवार को मनाई जाएगी। शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही शाक्त, नाथ और संत संप्रदाय आते हैं। उन्हीं में दसनामी और 12 गोरखपंथी व नाथ संप्रदाय शामिल है। आओ जानते हैं नाथ परंपरा के सभी प्रमुख संतों के नाम।
1. गोरखनाथ के हठयोग की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले सिद्ध योगियों में प्रमुख हैं:- चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। 13वीं सदी में इन्होंने गोरख वाणी का प्रचार-प्रसार किया था। यह एकेश्वरवाद पर बल देते थे, ब्रह्मवादी थे तथा ईश्वर के साकार रूप के सिवाय शिव के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं मानते थे।
2. कुछ लोग नवनाथ के नाम इस प्रकार बताते हैं : आदिनाथ, अचल अचंभानाथ, संतोषनाथ, सत्यानाथ, उदयनाथ, गजबलिनाथ, चौरंगीनाथ, मत्स्येंद्रनाथ और गौरखनाथ। महार्णव तंत्र में कहा गया है कि नवनाथ ही 'नाथ' संप्रदाय के मूल प्रवर्तक हैं। नवनाथों की सूची अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग मिलती है। यथाक्रम- मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ, गहनिनाथ, जालंधरनाथ, कृष्णपाद, भर्तृहरिनाथ, रेवणनाथ, नागनाथ, चर्पटनाथ।
3. 84 नाथ : राहुलजी सांस्कृतायन के अनुसार तिब्बत के 84 सिद्धों की परम्परा 'सरहपा' से आरंभ हुई और नरोपा पर पूरी हुई। सरहपा चौरासी सिद्धों में सर्व प्रथम थे। इन्हीं 84 नाथों में गुरु मत्स्येंद्रनाथ या मछींद्रनाथ (मनीपा) और गुरु गोरखनाथ (गोरक्षपा) का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
इन नामों के अंत में पा जो प्रत्यय लगा है, वह संस्कृत 'पाद' शब्द का लघुरूप है। नवनाथ की परंपरा के इन सिद्धों की परंपरा के कारण ही मध्यकाल में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के अस्तित्व की रक्षा होती रही। इन सिद्धों के कारण ही अन्य धर्म के संतों की परंपरा भी शुरू हुई। इन सिद्धों के इतिहास को संवरक्षित किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है।
नाथ संप्रदाय : नाथ सम्प्रदाय गुरु गोरखनाथ से भी पुराना है। भगवान शंकर को 'भोलेनाथ' और 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस आदिश शब्द से ही आदेश शब्द बना है। भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। भगवान शंकर के बाद इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय के बाद सिद्ध संत गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने 'नाथ' परंपरा को फिर से संगठित करके पुन: उसकी धारा अबाध गति से प्रवाहित करने का कार्य किया। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के बाद उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ ने 'नाथ' परंपरा को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। उनके लाखों शिष्यों में हजारों उनके जैसे ही सिद्ध होते थे।
इसके अलावा 'नाथ' साधुओं में प्रमुख नाम है- भर्तृहरि नाथ, नागनाथ, चर्पटनाथ, रेवणनाथ, कनीफनाथ, जालंधरनाथ, कृष्णपाद, बालक गहिनीनाथ योगी, गोगादेव, रामदेव, सांईंनाथ आदि।
12 गोरखपंथ : गोरखनाथ के संप्रदाय की मुख्य 12 शाखाएं- 1. भुज के कंठरनाथ, 2. पागलनाथ, 3. रावल, 4. पंख या पंक, 5. वन, 6. गोपाल या राम, 7. चांदनाथ कपिलानी, 8. हेठनाथ, 9. आई पंथ, 10. वेराग पंथ, 11. जैपुर के पावनाथ और 12. घजनाथ।