अंकों में आठ अर्थात 8 को शनि का अंक माना जाता है। इस अंक का स्वामी ग्रह शनि है। कुछ अंक शास्त्री आठ अंक को अशुभ मानते हैं क्योंकि यह शनि से जुड़ा है। आठ अंक के व्यक्ति को हर चीज को पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है तब कहीं जाकर वह कुछ हासिल कर पाता है। यह अंक शनि का है और शनि व्यक्ति को तपाकर ही फल प्रदान करते हैं।
आठ अंक का व्यक्ति जीवनभर संघर्ष में ही रहता है। सफलता इस पर निर्भर करती है कि वह कितना धर्मपरायण है। हालांकि आठ अंक वाले व्यक्ति बड़े बड़े प्रोजेक्ट को अकेले ही संभालने की क्षमता रखते हैं और उसमें वह सफल भी होते हैं। इसी तरह हम देखते हैं कि आठ का अंक एकदम अलग होता है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। आओ जानते हैं इस रहस्यमी और अजीब संयोग को...
अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म : भगवान विष्णु ने आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में आठवें अवतार श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में मथुरा के कारागर में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकल गए और जब आठवां उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न में हुआ था। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में ईसा से 3112 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ। ज्योतिषियों अनुसार उस समय शून्य काल (रात 12 बजे) था।
भगवान श्रीकृष्ण वसुदेव के आठवें पुत्र थे। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठ मित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।
*कृष्ण के माता-पिता : कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था। बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की पत्नी थीं।
*कृष्ण के गुरु : गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी थी। माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।
भगवान श्रीकृष्ण के प्रमुख नाम:- नंदलाल, गोपाल, गोविंद, कन्हैया, श्याम, कृष्ण, वासुदेव, केशव, माधव, बांके बिहारी, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश, मुरलीधर, गिरधारी, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, रासबिहारी आदि। कृष्ण को केशव भी कहा जाता है। हरिवंश के वर्णन से प्रतीत होता है कि केशी कंस का परम प्रिय भाई या मित्र था। केशी को मारने से कृष्ण का नाम 'केशव' हुआ। पुराणों के अनुसार केशी घोड़े का रूप बना कर कृष्ण को मारने गया था।
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