5. दान : दान तीन प्रकार के होते हैं- उत्तम, मध्यम और निकृष्टतम। धर्म की उन्नति के रूप में सत्य विद्या के लिए जो देता है, वह उत्तम। कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है, तो वह मध्यम और जो वेश्यागमनादि, भांड, भाटे व पंडे को देता है, वह निकृष्टतम माना गया है जबकि जो व्यक्ति पुण्य के लिए दान देता है, वह गुप्त रखा जाना चाहिए। दान देकर बाद में उसका बखान करना अपयश का कारण बनता है।