पूजा में माने गए हैं 4 रंग सबसे शुभ, जानिए महत्व

अनिरुद्ध जोशी

मंगलवार, 9 जून 2020 (14:40 IST)
रंगों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। जब कोई रंग बहुत फेड हो जाता है तो वह सफेद हो जाता है और जब कोई रंग बहुत डार्क हो जाता है तो वह काला पड़ जाता है। लाल रंग में अगर पीला मिला दिया जाए, तो वह केसरिया रंग बनता है। नीले में पीला मिल जाए, तब हरा रंग बन जाता है। इसी तरह से नीला और लाल मिलकर जामुनी बन जाते हैं। आगे चलकर इन्हीं प्रमुख रंगों से हजारों रंगों की उत्पत्ति हुई। हिन्दू धर्म में केसरिया, पीला, गेरुआ, भगवा और लाल रंग को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। गेरू और भगवा रंग एक ही है, लेकिन केसरिया में मामूली-सा अंतर है। लेकिन हिन्दू धर्म में पूजा के दौरान सफेद, लाल, पीला और हरे रंग का उपयोग बहुत होता है आखिर क्यों जानिए उसका महत्व।
 
1. सफेद रंग : प्राचीनकाल में यज्ञ या महत्वपूर्ण पूजा के दौरान सफेद रंग का बहुत महत्व था, लेकिन अब धीरे धीरे इसका महत्व कम हो गया। सफेद रंग माता सरस्वती का है। इससे राहु शांत रहता है। सफेद रंग से शुद्धता और पवित्रता का आभास भी होता है। प्राचीन काल में भारतीय दुल्हनें सफेद रंग का ही उपयोग करती थी। जिसमें पितांबरी पट्टा होता था।  सफेद रंग से मन में शांति और सुख का आभास होता है। लेकिन जब से यह रंग विधावा महिला और कफन में उपयोग होने लगा तब से इसका पूजा में महत्व कम हो गया। हालांकि आज भी सफेद रंग का सूती कपड़ा पाट पर बिछाने के लिए पूजा में उपयोग करते हैं।
 
सफेद रंग को सब्ज‍ियों या फलों के माध्यम से अपनी डाइट में शामिल करने से कैंसर और ट्यूमर होने का खतरा कम होता है। इसके अलावा ये हृदय को स्वस्थ रखने के साथ-साथ शरीर में वसा के स्तर के नियंत्रित करते हैं। इनमें एलीसीन और फ्लैवेनॉइड भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। सफेद रंग को डाइट में शामिल करने के लिए आप केला, मूली, आलू, गोभी, लहसुन, प्याज, नारियल, मशरूम आदि का प्रयोग कर सकते हैं।
 
2. पीला रंग : पीले रंग के वस्त्रों को पितांबर कहते हैं। इसके अंतर्गत आप नारंगी और केसरी रंग को भी शामिल कर सकते हैं। इससे गुरु का बल बढ़ता है। गुरु हमारे भाग्य को जगाने वाला गृह है। किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य में पीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है। पूजा-पाठ में पीला रंग शुभ माना जाता है। केसरिया या पीला रंग सूर्यदेव, मंगल और बृहस्पति जैसे ग्रहों का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह रोशनी को भी दर्शाता है। इस तरह पीला रंग बहुत कुछ कहता है।
 
वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग के उपयोग से हमारे रक्त में लाल और श्वेत कणिकाओं का विकास होता है। अर्थात रक्त में हिमोग्लोबिन बढ़ने लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग रक्त संचार बढ़ाता है। थकान दूर करता है। पीले रंग के संपर्क में रहने से रक्त कणों के निर्माण की प्रक्रिया बढ़ती है। सूजन, टॉन्सिल, मियादी बुखार, नाड़ी शूल, अपच, उल्टी, पीलिया, खूनी बवासीर, अनिद्रा और काली खांसी का नाश होता है।
 
पीले रंग का संबंध जहां वैराग्य से है वीं यह पवित्रता और मित्रता से भी है। वैवाहिक जीवन में और बेडरूम में पीले रंग का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं करना चाहिए। किचन में और बैठक रूप में इस रंग का प्रयोग करें। घर का फर्श पीले रंग कर रख सकते हैं।
 
पीले रंग के फल और सब्ज‍ियों में पपीता, संतरा, अनानास, शिमला मिर्च, मक्का, सरसों, कद्दू, नींबू, पीच, आम, खरबूजा आदि का प्रयोग कर आप अल्फा कैरोटीन, बीटा कैरोटीन, बायोफ्लैवेनॉइड्स, विटामिन-सी को अपने शरीर में जगह देते हैं। यह त्वचा को जवां बनाए रखने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी इजाफा करते हैं। इसके इलावा यह हृदय रोग एवं फेफड़ों की समस्या के लिए भी फायदेमंद है। इससे आंखों की समस्याओं में भी फायदा मिलता है।
 
3. लाल रंग : लाल रंग के अंतर्गत केसरिया या भगवा का उपयोग भी कर सकते हैं। इसी में शामिल है अग्नि का रंग भी। शरीर में रक्त महत्वपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में विवाहित महिला लाल रंग की साड़ी और हरी चूड़ियां पहनती है। इसके अलावा विवाह के समय दूल्हा भी लाल या केसरी रंग की पगड़ी ही धारण करता है, जो उसके आने वाले जीवन की खुशहाली से जुड़ी है। लाल रंग उत्साह, सौभाग्य, उमंग, साहस और नवजीवन का प्रतीक है।
 
प्रकृति में लाल रंग या उसके ही रंग समूह के फूल अधिक पाए जाते हैं। मां लक्ष्मी को लाल रंग प्रिय है। मां लक्ष्मी लाल वस्त्र पहनती हैं और लाल रंग के कमल पर शोभायमान रहती हैं। रामभक्त हनुमान को भी लाल व सिन्दूरी रंग प्रिय हैं इसलिए भक्तगण उन्हें सिन्दूर अर्पित करते हैं। मां दुर्गा के मंदिरों में आपको लाल रंग की ही अधिकता दिखाई देगी।
 
भगवा या केसरिया सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी है, मतलब हिन्दू की चिरंतन, सनातनी, पुनर्जन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है यह। केसरिया रंग त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। शिवाजी की सेना का ध्वज, राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों के ध्वज का रंग केसरिया ही था। केसरिया या भगवा रंग शौर्य, बलिदान और वीरता का प्रतीक भी है।
 
सनातन धर्म में केसरिया रंग उन साधु-संन्यासियों द्वारा धारण किया जाता है, जो मुमुक्षु होकर मोक्ष के मार्ग पर चलने लिए कृतसंकल्प होते हैं। ऐसे संन्यासी खुद और अपने परिवारों के सदस्यों का पिंडदान करके सभी तरह की मोह-माया त्यागकर आश्रम में रहते हैं। भगवा वस्त्र को संयम, संकल्प और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है।
 
घर की दीवारों का रंग लाल नहीं होना चाहिए। बेडरूम में चादर, पर्दे और मैट का रंग लाल नहीं होना चाहिए। लाल रंग का प्रयोग बहुत सोच समझकर करना चाहिए। लाल से मिलता जुलता कोई रंग लें। लाल रंग का कहां प्रयोग करें और कहां नहीं यह जानना जरूरी है, क्योंकि लाल रंग उत्साह को उग्रता में बदलने की ताकत रखता है।
लाल रंग के फल और सब्ज‍ियों में लाइकोपिन और एंथेसायनिन होता है, जो कैंसर की संभावना को कम करने के साथ ही आपकी याददाश्त को बढ़ाने में मदद करते है। > ये शरीर को आवश्यक उर्जा भी प्रदान करते हैं, जिससे आप तरोताजा बने रहते हैं। इसके लिए अपनी डाइट में टमाटर, गाजर, चुकंदर, शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी, तरबूज, सेब, चेरी, आलूबुखारा आदि को शामिल कर सकते हैं।
 
4. हरा रंग : यह प्रकृति का रंग है। यह रंग माता पार्वती और भगवान शिव को अत्यधिक पसंद हैं। गणेश, माता दुर्गा और माता लक्ष्मी को भी यह रंग प्रिय है। माता दुर्गा को हरे रंग की मेहंदी, चुनरियां और चुड़ियां चढ़ाई जाती हैं। यह रंग बुध ग्रह का रंग है। पूजा में इस रंग के कपड़े का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पान, केल के पत्ते, दूब, आम की पत्तियां का भी पूजा में उपयोग किया जाता है।
 
महिलाओं के 16 श्रृंगार में इसी रंग की अधिकता होती है। आयुर्वेद में हरा रंग कई रोगों में कारगर माना गया है क्योंकि यह रंग हरियाली, शीतलता, ताजगी, आत्मविश्वास, प्रसन्नता और सकारात्मकता का होता है। यह आंत की बीमारियों, लिवर, नाड़ी संबंधी रोगों और खून की बीमारी में अच्छा माना जाता है।   

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