हिन्दू धर्म में 10 कर्तव्यों को बताया गया है- 1.ईश्वर प्राणिधान, 2.संध्या वंदन, 3.श्रावण माह व्रत, 4.तीर्थ चार धाम, 5.दान, 6.मकर संक्रांति-कुंभ पर्व, 7.पंच यज्ञ, 8.सेवा कार्य, 9. 16 संस्कार और 10.धर्म प्रचार। यहां हम जानते हैं दान के प्रकार, महत्व और मुहूर्त को।
दान के प्रकार :
1. वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं- 1. उक्तम, 2.मध्यम और 3.निकृष्ट। धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या के लिए जो देता है वह उत्तम। कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है तो वह मध्यम और जो वेश्यागमनादि, भांड, भाटे, पंडे को निष्प्रयोजन जो देता वह निकृष्ट माना गया है।
2. पुराणों में अनेकों दानों का उल्लेख मिलता है। जैसे गौ दान, छाता दान, जुते-चप्पल दान, पलंग दान, कंबल दान, सिरहाना दान, दर्पण कंघा दान, टोपी दान, औषध दान, भूमिदान, भवन दान, धान्य दान, तिलदान, वस्त्र दान, स्वर्ण दान, घृत दान, लवण दान, गुड़ दान, रजन दान, अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान। इनमें से मुख्य है- 1.अन्न दान, 2.वस्त्र दान, 3.औषध दान, 4.ज्ञान दान एवं 5.अभयदान।
3. कुछ दान ऐसे भी होते हैं जो किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिए जाते हैं। जैसे दीपदान, छायादान, श्रमदान आदि।
4. मुख्यत: दान दो प्रकार के होते हैं- एक माया के निमित्त किया गया दान और दूसरा भगवान के निमित्त किया गया दान। पहले दान में स्वार्थ होता है और दूसरे दान में भक्ति।
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दान का महत्व :
1. वेद और पुराणों में दान के महत्व का वर्णन किया गया है।दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियां खुलती हैं जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। मृत्यु आए इससे पूर्व सारी गांठे खोलना जरूरी है, जो जीवन की आपाधापी के चलते बंध गई है। दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है।
2. किसी भी वस्तु का दान करते रहने से विचार और मन में खुलापन आता है। आसक्ति (मोह) कमजोर पड़ती है, जो शरीर छुटने या मुक्त होने में जरूरी भूमिका निभाती है। हर तरह के लगाव और भाव को छोड़ने की शुरुआत दान और क्षमा से ही होती है। दानशील व्यक्ति से किसी भी प्रकार का रोग या शोक भी नहीं चिपकता है। बुढ़ापे में मृत्यु सरल हो, वैराग्य हो इसका यह श्रेष्ठ उपाय है और इसे पुण्य भी माना गया है।
3. दान देना एक पुण्य कर्म है। माना जाता है कि दान करने से मनुष्य का इस लोक के बाद परलोक में भी कल्याण होता है। दान देने से मनुष्य को सद्गति मिलती है।
4. दान करने से जीवन की तमाम परेशानियों का अंत खुद-ब-खुद होने लगता है। दान करने से कर्म सुधरते हैं और अगर कर्म सुधर जाएं तो भाग्य संवरते देर नहीं लगती है।
5. हमारे शास्त्रों में ऋषि दधीचि का वर्णन है जिन्होंने अपनी हड्डियां तक दान में दे दी थीं, कर्ण का वर्णन है जिसने अपने अंतिम समय में भी अपना स्वर्ण दंत याचक को दान दे दिया था।
6. दान एक हाथ से देने पर अनेक हाथों से लौटकर हमारे ही पास वापस आता। बस, शर्त यह है कि दान नि:स्वार्थ भाव से श्रद्धापूर्वक समाज की भलाई के लिए किया जाए।
7. दान करने से सभी तरह के दैहिक, मानसिक और आत्मिक ताप मिट जाते हैं।
8. दान करने से ग्रहदोष, नक्षत्रदोष, पितृदोष, मंगलदोष, कालसर्पदोष आदि सभी तरह के दोष मिट जाते हैं।
9. जरूरतमंद व्यक्ति को दान देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
10. दान करने से घर परिवार में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता है और सुख समृद्धि बनी रहती है।
दान देने का समय और मुहूर्त :
1. यदि कोई याचक आपके द्वार पर आए तो दान दें।
2. यदि कोई अतिथि आपके घर आए तो उसे दान दें।
3. यदि मंदिर में जाएं तो दान दें।
4. यदि किसी तीर्थ क्षेत्र में जाएं तो दान दें।
5. यदि कोई श्राद्ध कर्म करें तो दान दें।
6. यदि कोई संक्रांति पर्व हो तो दान दें।
7. यदि परिवार में किसी को धन, वस्तु या अन्न की आवश्यकता हो तो दान दें।
8. यदि देश, समाज और धर्म पर किसी भी प्रकार का संकट आया हो तो दान दें।
9. विद्यालय, चिकित्सालय, गौशाला, आश्रम, मंदिर, तीर्थ और धर्म के निमित्त दान दें।
10. सभी पर्वों और तीर्थों में दान करने के शुभ मुहूर्त होते हैं। उन्हें जानकर ही दान दें।