व्रत रखने के नियम दुनिया को हिंदू धर्म की देन है। हिंदू धर्म में व्रत रखने के कई नियम है और इसका बहुत ही महत्व है। व्रत रखना एक पवित्र कर्म है और यदि इसे नियम पूर्वक नहीं किया जाता है तो न तो इसका कोई महत्व है और न ही लाभ अलबत्ता इससे नुकसान भी हो सकते हैं। हालांकि आप व्रत बिल्कुल भी नहीं रखते हैं तो भी आपको इस कर्म का भुगतान करना ही होगा। आखिर क्यों व्रत रखना जरूरी है इसके लिए पढ़ें संपूर्ण आलेख।
व्रत रखने से दैहिक, मानसिक और आत्मिक ताप कम तो होते ही हैं साथ ही इससे ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचा जा सकता है। हालांकि व्रत रखने का मूल उद्येश्य होता है संकल्प को विकसित करना। संकल्पवान मन में ही सकारात्मकता, दृढ़ता और एकनिष्ठता होती है। संकल्पवान व्यक्ति ही जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता हैं। जिस व्यक्ति में मन, वचन और कर्म की दृढ़ता या संकल्पता नहीं है वह मृत समान माना गया है। संकल्पहीन व्यक्ति की बातों, वादों, क्रोध, भावना और उसके प्रेम का कोई भरोसा नहीं। ऐसे व्यक्ति कभी भी किसी भी समय
व्रत रखने का दूसरा उद्येश्य:-
लोग अपनी अपनी श्रद्दा और आस्था के अनुसार अलग-अलग देवी, देवताओं को मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इसी क्रम में वे सप्ताह में एक दिन, या खास मौकों या त्योहारों पर अपने देवी देवताओं के लिए व्रत रखते हैं। जिसमें वे पूरे दिन बगैर अन्न खाए सिर्फ फल खाकर ही रहते हैं। धर्म और मान्यता के अनुसार व्रत रखने से देवी, देवता प्रसन्न होते हैं तथा कष्टों और परेशानियों को दूर करके, मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
व्रत रखने का तीसरा उद्येश्य:-
इस व्रत या उपवास में व्यक्ति अपने आध्यात्मिक उद्येश्य की प्राप्ति हेतु काया का शुद्धिकरण करता रहता है। यह बहुत कठिन व्रत होते हैं। इसमें धीरे-धीरे व्यक्ति अन्न और फिर जल भी पीना छोड़ देता है। इसके अंतर्गत क्रिया योग भी किया जाता है।
यदि आप आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त नहीं करना चाहते मात्र अपनी सेहत को सुधारना चाहते हैं तो यह व्रत आपके लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगा। लोग अक्सर अपने वजन को कम करने या पेट को अंदर करने के लिए भी व्रत रखते हैं। यदि आप व्रत नहीं रखेंगे तो आपकी सेहत पर इसका बुरा असर होगा।
दरअसल, आप बचपन से ही खाते आ रहे हैं अर्थात आपकी आंतों सहित आपके शरीर के अन्य अंग लगातर आपके भोजन को पचाने का कार्य करते रहे हैं। ऐसे में उन्होंने एक दिन भी आराम नहीं किया और ही छुट्टी ली। क्या आप चाहते हैं कि वे हमेशा के लिए ही आराम करें। नहीं चाहते हैं तो उन्हें बीच बीच में छुट्टी देते रहें। व्रत से हमारे शरीर को स्वच्छ होने और आराम करने का समय मिलता है। क्या आप अपनी बाइक या कार को लगातार वर्षभर तक चलाते रह सकते हैं? जब
क्या है व्रत : व्रत शब्द की उत्पत्ति (वृत्त वरणे अर्थात वरण करना या चुनना) से मानी गई है। ऋग्वेदानुसार- संकल्प, आदेश विधि, निर्दिष्ट व्यवस्था, वशता, आज्ञाकारिता, सेवा, स्वामित्व, व्यवस्था, निर्धारित उत्तराधिकर वृत्ति, आचारिक कर्म, प्रवृत्ति में संलग्नता, रीति धार्मिक कार्य, उपासना, कर्तव्य, अनुष्ठान, धार्मिक तपस्या, उत्तम कार्य आदि वृत से ही व्रत की उत्पत्ति मानी गई है।
वेदों में कहीं-कहीं व्रत को किसी धार्मिक कृत्य या संकल्प कहा गया है जबकि उपनिषदों में व्रत का दो अर्थों में प्रयोग हुआ है- एक संकल्प, आचरण एवं भोजन संबंधी रोक के संदर्भ में और दूसरा उपवास करते समय भक्ष्य-अभक्ष्य भोजन के संदर्भ में।
संकल्पपूर्वक किए गए कर्म को व्रत कहते हैं। किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के लिए अन्न या जल या अन्य तरह के भोजन या इन सबका त्याग व्रत कहलाता है। व्रत धर्म का साधन माना गया है। उपवास का अर्थ होता है ऊपर वाले का मन में निवास। उपवास को व्रत का अंग भी माना गया है।
आप समझते हैं कि भोजन न करना ही उपवास या व्रत है तो आपकी यह समझ अधूरी है। उपवास या व्रत का अर्थ बहुत व्यापक है। शास्त्रों में मुख्यत: 4 तरह के व्रत और 13 तरह के उपवास बताए गए हैं। बहुत से तपस्वी अपने तप की शुरुआत उपवास से ही करते हैं।
व्रत के प्रकार :
राजा भोज के राजमार्तण्ड में 24 व्रतों का उल्लेख है। हेमादि में 700 व्रतों के नाम बताए गए हैं। गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है।
व्रतों के प्रकार तो मूलत: 1.नित्य, 2.नैमित्तिक और 3.काम्य कहे गए हैं और.. उपवास के प्रकार- 1.प्रात: उपवास, 2.अद्धोपवास, 3.एकाहारोपवास, 4.रसोपवास, 5.फलोपवास, 6.दुग्धोपवास, 7.तक्रोपवास, 8.पूर्णोपवास, 9.साप्ताहिक उपवास, 10.लघु उपवास, 11.कठोर उपवास, 12.टूटे उपवास, 13.दीर्घ उपवास। बताए गए हैं, लेकिन हम यहां वर्ष में जो व्रत होते हैं उसके बारे में बता रहे हैं।
1.साप्ताहिक व्रत : सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहिए।
2.पाक्षिक व्रत : 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्या और पूर्णिमा के व्रत महतवपूर्ण होते हैं। उक्त में से किसी भी एक व्रत को करना चाहिए।
3.त्रैमासिक : वैसे त्रैमासिक व्रतों में प्रमुख है नवरात्रि के व्रत। हिंदू माह अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन मान में नवरात्रि आती है। उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इन नौ दिनों तक व्रत और उपवास रखने से सभी तरह के क्लेश समाप्त हो जाते हैं।
4.छह मासिक व्रत : चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। उक्त दोंनों के बीच छह माह का अंतर होता है। इसके अलावा
5.वार्षिक व्रत : वार्षिक व्रतों में पूरे श्रावण मास में व्रत रखने के विधान है। इसके अलवा जो लोग चतुर्मास करते हैं उन्हें जिंदगी में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता है।
व्रत के नियम : अग्निपुराण में कहा गया है कि व्रत करने वालों को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए, सीमित मात्रा में भोजन करना चाहिए। इसमें होम एवं पूजा में अंतर माना गया है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में व्यवस्था है कि जो व्रत-उपवास करता है, उसे इष्टदेव के मंत्रों का मौन जप करना चाहिए, उनका ध्यान करना चाहिए उनकी कथाएं सुननी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए। किंतु अशौच अवस्था में व्रत नहीं करना चाहिए। जिसकी शारीरिक स्थिति ठीक न हो व्रत करने से उत्तेजना बढ़े और व्रत रखने पर व्रत भंग होने की संभावना हो उसे व्रत नहीं करना चाहिए।
व्रत करते समय निम्नोक्त 10 गुणों का होना आवश्यक है। क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, इन्द्रियनिग्रह, देवपूजा, अग्निहवन, संतोष एवं अस्तेय। व्रत के दिन मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए। पतित पाखंडी तथा नास्तिकों से दूर रहना चाहिए और असत्य भाषण नहीं करना चाहिए। उसे सात्विक जीवन का पालन और प्रभु का स्मरण करना चाहिए। साथ ही कल्याणकारी भावना का पालन करना चाहिए।
व्रत नहीं रखने के नुकसान : यदि आप व्रत नहीं रखते हैं तो निश्चित ही एक दिन आपकी पाचन क्रिया सुस्त पड़ जाएगी। आंतों में सड़ाव लग सकता है। पेट फूल जाएगा, तोंद निकल आएगी। आप यदि कसरत भी करते हैं और पेट को न भी निकलने देते हैं तो आने वाले समय में आपको किसी भी प्रकार का गंभीर रोग हो सकता है। व्रत का अर्थ पूर्णत: भूखा रहकर शरीर को सूखाना नहीं बल्कि शरीर को कुछ समय के लिए आराम देना और उसमें से जहरिलें तत्वों को बाहर करना होता है। पशु, पक्षी और अन्य सभी प्राणी समय समय पर व्रत रखकर अपने शरीर को स्वास्थ कर लेते हैं। शरीर के स्वस्थ होने से मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ हो जाते हैं। अत: रोग और शोक मिटाने वाले चतुर्मास में कुछ विशेष दिनों में व्रत रखना चाहिए। डॉक्टर परहेज रखने का कहे उससे पहले ही आप व्रत रखना शुरू कर दें।
अगले पन्ने पर व्रत करने से क्या होगा शरीर में...
यदि आप कठिन उपवास या व्रत रखने हैं तो पहले आपके शरीर की शक्कर या श्वेतसार खत्म होगी या जलेगी फिर चर्बी गलेगी। फिर प्रोटीन जलने लगते हैं। प्रोटिन के जलने से पहले ही आपको उपवास तोड़कर पहले ज्यूस फिर, फल और बाद में नियमित किए जाने वाले भोजन की शुरुआत करना चाहिए। हमें उतना ही भोजन करना चाहिए जितना की हमारे शरीर को उसकी जरूरत है। हां, भोजन में आयरन, कैल्शियम, मैग्निेशियम, पोटेशियम और शरीर को जरूरी अन्य प्रोटिन, खनीज लवणों का ध्यान रखना चाहिए।
अनाहार या उपवास के समय श्वेतसार, चर्बी और कुछ प्रोटीन जलती रहती है। चर्बी का भंडार जिस मात्रा में खाली होता जाता है उसी मात्रा में प्रोटीन अधिक खर्च होने लगती है। जब चर्बी बिलकुल खत्म हो जाएगी तो शरीर का कार्य केवल प्रोटीन को खर्च करके चलता है, इसका अर्थ है कि उस समय मनुष्य के शरीर का मांस, हड्डी और चमड़ा खर्च होता रहता है।
अनशन के समय अंगों का उपयोग या क्षय एक निश्चित प्राकृतिक नियम के अनुसार होता है। पहले पेट से अनावश्यक खाद्य पदार्थ बहार हो जाते हैं। फिर पेट और उसके आसपास की चर्बी घटने लगती है। इसका मतलब की पहले कम आवश्यक अंग क्षय होते हैं। उसके बाद उससे कुछ अधिक आवश्यक अंगों के ऊपर हाथ लगता है। सब के अन्त में नितान्त आवश्यक अंग काम में आते हैं इसके बाद जब जीवन के सबसे प्रधान अंगों पर हस्तक्षेप होने लगता है तो मृत्यु हो जाती है। लेकिन इसे जैन धर्म में संथारा कहते हैं।
उपवासी मनुष्य अपने सेहत को दुरुस्त करने के लिए तब तक उपवास करता है जब तक की उसका पेट पूर्णत: अंदर और नरम नहीं हो जाता है। यही शरीर को स्वस्थ करने की कारगर तकनीक है। भोजन तो शरीर को जरूरी ही चाहिए लेकिन कौन सा भोजन आप शरीर को दे रहे हैं यह भी तय करना जरूरी है। शरीर को पुष्ट करने वाला भोजन या कि अपने मन को पुष्ट करने वाला भोजन?
वैज्ञानिकों अनुसार शारीरिक ताप की सबसे छोटी मात्रा का नाम 'कैलोरी' है। कैरोली क्या है? करीब एक सेर पानी को एक डिग्री गर्म करने में एक घण्टे में जितना ताप खर्च होता है वह एक कैलोरी है। एक पूरा नौजवान आदमी जिसकी ऊंचाई और मोटाई मध्यम दर्जे की है वजन में लगभग 70 सेर होगा और इस 70 सेर वजन को पूर्ण निष्क्रिय अवस्था में ताप देने के लिए अथवा जीवित रखने के लिए प्रति घण्टे 70 कैलोरी ताप खर्च होगा, जिसका परिणाम 24 घण्टे में 1680 कैलोरी हो जाएगा। अगर आदमी नाटा या दुबला पतला होगा तो उसका खर्च इसी हिसाब से कम होगा।
लेकिन जहां तक जिंदा रहने के बात है तो व्यक्ति मात्र दो कैलोरी पर भी जिंदा रह सकता है। यदि आप परिश्रम नहीं करते हैं तो इतनी कैलोरी चलेगी। दर्जी-44, दफ्तरी-51, मोची 90, लोहा घिसने वाला कारीगर 141, पालिश का काम करने वाला 145, बढ़ई 146, लकड़ी चीरने वाला 378 कैलोरी खर्च करता है।
जैसे अगर एक बढ़ई प्रति दिन आठ घंटा काम करता है तो 1 घंटा में 146 कैलोरी के हिसाब से वह प्रति दिन 146&8=1168 कैलोरी खर्च करेगा। उस आदमी का वजन अगर डेढ़ मन या 60 सेर हो तो 60+24=1440 कैलोरी ताप उसके मूल आत्मीकरण में खर्च होगा। इसके सिवाय चलने, फिरने, बैठने-उठने का काम भी वह कुछ न कुछ अवश्य करेगा और उसमें भी कुछ शक्ति अवश्य खर्च होगी। इस प्रकार सब बातों पर विचार करने से यह अनुमान लगाया जाता है कि एक आदमी को साधारण रूप से जीवित रहने और जीवन निर्वाह का कोई पेशा करने के लिए इतने भोजन की आवश्यकता है जो प्रति दिन 3000 कैलोरी ताप उत्पन्न कर सके।