* मन और मस्तिष्क को स्वच्छ, निर्मल और सकारात्मक बनाने के लिए हिन्दू धर्म में कई रीति-रिवाज, परंपरा और उपाय निर्मित किए गए हैं। सकारात्मक भाव से मन शांतचित्त रहता है। शांतचित्त मन से ही व्यक्ति के जीवन के संताप और दुख मिटते हैं।
* जब किसी अन्न को भगवान को समर्पित कर दिया जाता है तो उसमें दिव्यता समाहित हो जाती है। वह और भी पवित्र और गुण वाला बन जाता है, जो हमारे शरीर को पुष्ट करता है। गिलास भर पानी पीने से कहीं अच्चा चरणामृत होता है जो हृदय को सेहतमंद बनाता है।
* भजन, कीर्तन, नैवेद्य आदि धार्मिक कर्म करने से जहां भगवान के प्रति आस्था बढ़ती है वहीं शांति और सकारात्मक भाव का अनुभव होता रहता है। इससे इस जीवन के बाद भगवान के उस धाम में भगवान की सेवा की प्राप्ति होती है और अगला जीवन और भी अच्छे से शांति व समृद्धिपूर्वक व्यतीत होता है।
* श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन के माध्यम से हमें यह भी बताते हैं कि देवी-देवताओं के धाम जाने के बाद फिर पुनर्जन्म होता है अर्थात देवी-देवताओं का भजन करने से, उनका प्रसाद खाने से व उनके धाम तक पहुंचने पर भी जन्म-मृत्यु का चक्र खत्म नहीं होता है। (श्रीगीता 8/16)।