Rule of taking Prasad : हिन्दू सनातन धर्म व संस्कृति में भगवान को हम जो नैवेद्य अर्पित करते हैं उसे ही हम प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। पूजा-पाठ या आरती के बाद तुलसीकृत जलामृत व पंचामृत के बाद बांटे जाने वाले पदार्थ को प्रसाद कहते हैं। पूजा के समय जब कोई खाद्य सामग्री देवी-देवताओं के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो वह सामग्री प्रसाद के रूप में वितरण होती है। प्रसाद को दाएं हाथ से ही लेना चाहिए बाएं हाथ से नहीं। आओ जानते हैं कि इसके पीछे का क्या है कारण।
प्रसाद चढ़ावें को नैवेद्य, आहुति और हव्य से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन प्रसाद को प्राचीन काल से ही नैवेद्य कहते हैं जो कि शुद्ध और सात्विक अर्पण होता है। इसके संबंध किसी बलि आदि से नहीं होता। हवन की अग्नि को अर्पित किए गए भोजन को हव्य कहते हैं। यज्ञ को अर्पित किए गए भोजन को आहुति कहा जाता है। दोनों का अर्थ एक ही होता है। हवन किसी देवी-देवता के लिए और यज्ञ किसी खास मकसद के लिए। नैवेद्य, आहुति और हव्य में जो भी बच जाता है उसे प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।
बाएं हाथ से क्यों नहीं देते हैं प्रसाद?
ऐसा नियम है कि प्रसाद को दाएं यानी सीधे हाथ से लेना चाहिए।
उल्टे हाथ में प्रसाद लेना शुभ नहीं माना जाता है।
प्रसाद लेते समय उल्टे हाथ को सीधे हाथ के नीचे रखा जाता है।
भगवान को भोग या नैवेद्य अर्पित करते है तब भी सीधे हाथ का उपयोग करते हैं।
हर धार्मिक कार्य चाहे वह यज्ञ हो या दान पुण्य सीधे हाथ से किया जाना चाहिए।
रुपए का लेन देन भी सीधे हाथ से करते हैं। इसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।
यज्ञ या हवन के दौरान यज्ञ नारायण भगवान को आहुति भी दाएं हाथ से ही दी जाती है।
शिवलिंग पर चला चढ़ाने के लिए भी सीधे हाथ का उपयोग किया जाता है।
हिन्दू धर्म में किसी भी प्रकार के कर्म कांड को करते समय बाएं हाथ का प्रयोग करना वर्जित माना गया है।
दरअसल, सीधे हाथ को सकारात्मक ऊर्जा देने वाला माना जाता है।
उल्टे हाथ से हम शौचादि का कार्य करते हैं इसलिए भी इस हाथ से प्रसाद लेना वर्जित है।
ज्यादातर लोग शौच आदि के लिए बाएं हाथ का इस्तेमाल करते हैं।
बाएं हाथ का इस्तेमाल शरीर या अन्य स्थानों की गंदगी साफ करने के लिए किया जाता है।