यदि आप हिंदू हैं तो झुकना अच्छी बात है, लेकिन कहां नहीं झुकना चाहिए यह भी जानना जरूरी है। अधिकतर हिंदू कहीं भी झुकने के लिए तैयार रहते हैं। जहां भी कोई दो अगरबत्ती लगा दें वहीं झुक जाते हैं। इतना मत झुको की खुद का वजूद ही मिटा दो। जो लोग कमजोर होते हैं वह हर कहीं झुक जाते हैं। आपको जिंदगी में कहीं पर भी झुकना नहीं पड़े इसके लिए जरूरी है कि आप हिंदू धर्म से जुड़ें।
अधिकतर हिन्दू ईश्वर, परमेश्वर, ब्रह्म या भगवान को छोड़कर तरह-तरह की प्राकृतिक एवं सांसारिक वस्तुएं, ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवता, नाग, नदि, झाड़, पितर और गुरुओं की पूजा करते रहते हैं। निश्चित ही यह उनके मानसिक पतन का उदाहरण ही है। भटके हुए और धर्म को नहीं जानने वाले लोग ही दर्गा, समाधि और सड़क के किनारे बैठे भैरू, पाल्या आदि महाराज के यहां माथा टेकते फिरते हैं। ईश्वर को छोड़कर अन्य पर श्रद्धा रखने वाले अगले-पिछले हर जन्म में दुख ही पाते हैं और इस दुख के कारण वे कभी दर्गाह, कभी समाधि तो कभी किसी बाबा, तांत्रिक, ज्योतिष आदि के दर पर दर-दर भटकते रहते हैं।
पाल्या महाराज : आजकल बहुत से लोग सड़क किनारे के पाल्या महाराज को पूजने लगे हैं। दरअसल, जब किसी हिंदू की किसी सड़क हादसे में मौत हो जाती है तो उस जगह या स्थान पर उक्त व्यक्ति की याद में एक ओटला बना दिया जाता है। उस पर एक पत्थर रखकर उसे सिंदूर से पोत दिया जाता है। मृतक के परिजन कुछ वर्षों तक वहां उसकी बर्सी या तिथि पर अगरबत्ती आदि लगाने आते रहते हैं बाद में यह सिलसिला बंद हो जाता है। तब, स्थानीय लोग इसे भैरू महाराज का स्थान मानकर वहां पूजा अर्चना शुरू कर देते हैं। कालांतर में सड़क किनारे के ऐसे कई स्थान अब मंदिर का रूप ले चुके हैं। इसी तरह जब कोई मुस्लिम किसी सड़क हादसे में मरता है तो वहां दर्गाह बना दी जाती है।
सिद्धों की समाधि : नागा साधु, नाथ समप्रदाय, बैरागी समाज और गोस्वामी समाज के लोग अपने मृतकों का दाह संस्कार नहीं करते। वे उनकी समाधि देते हैं। पहले उनके अलग समाधि स्थान होते हैं। बाद में जिस तरह कब्रिस्तान के लिए भूमि दी जाती है उस तरह उन्हें भूमि देना बंद कर दिया गया। फिर भी ये लोग अपने अपने समाज की निजी भूमि पर समाधि देकर वहां एक ओटला बनाते हैं जिसके ऊपर एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित कर दिया जाता है। कालांतर में यही समाधि स्थल शिव मंदिरों में बदल गए। कालांतर में उनमें से बहुत से समाधि स्थलों ने दर्गाह का स्वरूप अपना लिया।
उल्लेखनीय है कि देश में ऐसी कई छत्रियां या स्मारक हैं जो किसी राजा-महाराजा के समाधि स्थल है। मध्यकाल में कब्रिस्तान, श्मशान या समाधि स्थल शहर के बाहर होते थे, लेकिन आबादी बढ़ने और शहरीकरण के चलते अब ये सभी शहर के भीतर होकर उनमें से कई तो समाप्त हो गए। बस वही कब्रें, समाधि आदि बच गए जिनकी देखरेख होती रही या जो आकार प्रकार में भव्य थे। सेठ-साहूकार या मालदार लोग अपने मृतकों की कब्रें या समाधि अच्छी बनवा देते थे।
यदि आप भी किसी समाधि, कब्र या पाल्या महाराज के यहां माथा टेकने जा रहे हैं। अगरबत्ती लगा रहे हैं तो निश्चित ही जानिए आप सही मार्ग पर नहीं हैं। हालांकि यह आपका चयन है, लेकिन ऐसा करके आप मृतकों, भूतों और आत्माओं के पूजक ही माने जाएंगे। हो सकता है कि आपको इससे तात्कालिक लाभ मिले लेकिन यह भी देखा गया है कि ऐसा करने से जीवन में मुसीबत और भी बड़ जाती है। ऐसी मान्यता है कि कई लोग जब तक माथा टेकते रहते हैं तब तक ठीक चलता है और जहां छोड़ा की वे समाधि वाले भूत उनके जीवन में तूफान खड़ा कर देते हैं। हालांकि वे बीच बीच में भी ऐसा करते रहते हैं ताकि उनकी अहमियत बनी रहे और लोग उन्हें मानें, उनके दर पर माथा टेके।
समाधि या कब्र पूजना वर्जित : आजकल हिन्दू कई दर्गाओं, समाधियों और कब्रों पर माथा टेककर अपने सांसारिक हितों को साधने में प्रयासरत है, लेकिन क्या यह धर्मसम्मत है। क्या यह उचित है? यदि हिन्दू धर्म समाधि पूजकों का धर्म होता तो आज देश में लाखों समाधियों की पूजा हो रही होती क्योंकि इस देश में ऋषियों की लंबी परंपरा रही है और सभी के आज भी समाधि स्थल है। लेकिन आज ऐसे कई संत हैं जिनके समाधि स्थलों पर मेला लगता है।
कई तो अपने गुरु की पूजा करते हैं और बहुत सी जगहों पर रावण की पूजा भी होती है। इसके अलावा सिद्ध, चारण, पिशाच, पितर, ग्रह-नक्षत्र, पीर-फकीर, सिद्ध बाबा, कब्र-समाधि आदि को तो लोग पूजते ही हैं साथ ही अब तो फिल्म स्टारों के मंदिर भी बनने लगे हैं। बहुत से ऐसे तांत्रिक हैं जो पिशाच कर्म करते हैं। ऐसे लोगों के लिए मौत के बाद जो सजा मिलेगी उसका वेद और गरूढ़ पुराण में उल्लेख मिलता है।
अगले पन्ने पर क्यों नहीं जाना चाहिए समाधि या कब्रों पर...
''हिन्दू धर्म में मृतकों, भूतों की उपासना करने को तामसी (निकृष्ट) बताया है और केवल ईश्वर की शरण में जाने को कहा है।'':-
भूतान्प्रेत गणान्श्चादि यजन्ति तामसा जना।
तमेव शरणं गच्छ सर्व भावेन भारतः-गीता।। 17:4, 18:62
अर्थात : भूत प्रेतों की उपासना तामसी लोग करते हैं। हे भारत तुम हरेक प्रकार से ईश्वर की शरण में जाओ।
.....जो सांसारिक इच्छाओं के अधिन हैं उन्होंने अपने लिए ईश्वर के अतिरिक्त झूठे उपास्य बना लिए है। वह जो मुझे जानते हैं कि मैं ही हूं, जो अजन्मा हूं, मैं ही हूं जिसकी कोई शुरुआत नहीं, और सारे जहां का मालिक हूं।- भगवद गीता
भगवान कृष्ण भी कहते हैं- 'जो परमात्मा को अजन्मा और अनादि तथा लोकों का महान ईश्वर, तत्व से जानते हैं वे ही मनुष्यों में ज्ञानवान है। वे सब पापों से मुक्त हो जाते हैं। परमात्मा अनादि और अजन्मा है, परंतु मनुष्य, इतर जीव-जंतु तथा जड़ जगत क्या है? वे सब के सब न अजन्मा है न अनादि। परमात्मा, बुद्धि, तत्वज्ञान, विवेक, क्षमा, सत्य, दम, सुख, दुख, उत्पत्ति और अभाव, भय और अभय, अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, कीर्ति, अपकीर्ति ऐसे ही प्राणियों की नाना प्रकार की भावनाएं परमात्मा से ही होती है।-भ. गीता-10-3,4,5।
व्याख्या : अर्थात भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य उस परमात्मा को अजन्मा और अनादि अर्थात जिसने कभी जन्म नहीं लिया और न ही जिसका कोई प्रारम्भ है तो अंत भी नहीं, तब वह निराकार है ऐसा जानने वाले तत्वज्ञ मनुष्य ही ज्ञानवान है। ऐसा जानने या मानने से ही सब पापों से मुक्ति मिल जाती है। परंतु मनुष्य, जीव-जंतु और दिखाई देने वाला यह समस्त जड़-जगत ईश्वर नहीं है, लेकिन यह सब ईश्वर के प्रभाव से ही जन्मते और मर जाते हैं। इनमें जो भी बुद्धि, भावनाएं, इच्छाएं और संवेदनाएं होती है वह सब ईश्वर की इच्छा से ही होती है।
भावार्थ : देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा (परमेश्वर का) पूजन करने वाले भक्त मुझको (परमेश्वर को) ही प्राप्त होते हैं इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता॥