हिन्दू धर्म में विधवाएं क्यों पहनती हैं सफेद वस्त्र? जानिए 6 कारण...

मांगलिक है सफेद वस्त्र : सफेद रंग हर तरह से शुभ माना गया है, लेकिन वक्त के साथ लोगों ने इस रंग का मांगलिक कार्यों में इस्तेमाल बंद कर दिया। हालांकि प्राचीनकाल में सभी तरह के मांगलिक कार्यों में इस रंग के वस्त्रों का उपयोग होता था। पुरोहित वर्ग इसी तरह के वस्त्र पहनकर यज्ञ करते थे। सच तो यह है कि सफेद रंग सभी रंगों में अधिक शुभ माना गया है इसीलिए कहते हैं कि लक्ष्मी हमेशा सफेद कपड़ों में निवास करती है। 20-25 वर्षों पहले तक लाल जोड़े में सजी दुल्हन को सफेद ओढ़नी ओढ़ाई जाती थी। इसका यह मतलब कि दुल्हन ससुराल में पहला कदम रखे तो उसके सफेद वस्त्रों में लक्ष्मी का वास हो। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में सफेद ओढ़नी की परंपरा का पालन किया जाता है।
 
पति की मौत के बाद : यदिक किसी का पति मर गया तो उसे विधवा और किसी की पत्नी मर गई है तो उसे विधुर कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार पति की मृत्यु के नौवें दिन उसे दुनियाभर के रंगों को त्यागकर सफेद साड़ी पहननी होती है, वह किसी भी प्रकार के आभूषण एवं श्रृंगार नहीं कर सकती। स्त्री को उसके पति के निधन के कुछ सालों बाद तक केवल सफेद वस्त्र ही पहनने होते हैं और उसके बाद यदि वह रंग बदलना चाहे तो बेहद हल्के रंग के वस्त्र पहन सकती है।
 
तलाक और पुनर्विवाह जैसा कांन्सेप्ट नहीं : हिन्दू धर्म में तलाक या पति की मौत के बाद फिर से विवाह करने के बारे में स्पष्ट निर्देश नहीं दिये गए हैं। हिन्दू धर्मानुसार विवाह को बहुत ही महत्वपूर्ण विषय मानकर बताया गया है कि विवाह कब, किससे और कैसे करें। विवाह सोच-समझकर करें। विवाह करने के पहले दोनों पक्ष की कुंडली अच्छे से परख लें फिर विवाह करें। कई तरह की जांच के बाद ही विवाह करने की सलाह दी जाती है ताकि आगे चलकर इस रिश्ते में किसी भी प्रकार का व्यवधान न हो। लेकिन वर्तमान में विवाह और प्रेम विवाह बहुत ही सरल प्रक्रिया बना दी गई है और तलाक कठिन, जबकि इसका उल्टा होना चाहिये तभी संबंध पुख्‍ता हो पाता है।
 
विधवा विवाह किया जा सकता है : प्राचीनकाल की परंपरा में और पौराणिक इतिहास में विवाह और संबंध विच्छेद के किस्से पढ़ने को मिलते हैं। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में विधवा विवाह का प्रचलन है जिसे नाता कहा जाता है। कोई स्त्री पुनर्विवाह का निर्णय लेती है, तो इसके लिए वह स्त्रतंत्र है। अब लोगों की सोच बदल रही है इसी कारण आज विधवाओं को भी समाज में बराबरी का सम्मान दिया जा रहा है। कोई जरूरी नहीं कि हर नियम कानून से लोगों का फायदा हो। आज समाज का स्वरूप बदल रहा है। विधवाएं रंगीन वस्त्र भी पहन रही है और शादी भी कर रही हैं।
 
वेदों में एक विधवा को सभी अधिकार देने एवं दूसरा विवाह करने का अधिकार भी दिया गया है। वेदों में एक कथन शामिल है-
'उदीर्ष्व नार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि।
हस्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सम्बभूथ।'
अर्थात पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा उसकी याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दे, ऐसा कोई धर्म नहीं कहता। उस स्त्री को पूरा अधिकार है कि वह आगे बढ़कर किसी अन्य पुरुष से विवाह करके अपना जीवन सफल बनाए।
 
लेकिन सवाल यह है कि पति की मौत के बाद हिन्दू महिलाएं सफेद साड़ी या वस्त्र क्यों धारण करती है।
 
विधवाओं द्वारा सफेद वस्त्र पहनने के 6 कारण...

पहला कारण : दरअसल, सफेद रंग को रंगों की अनुपस्थिति वाला रंग माना जाता है अर्थात जिसके जीवन में कोई रंग नहीं रहे। संन्यासी भी सफेद वस्त्र धारण करते हैं। जब महिला का पति मर जाता है तो उसके लिए यह सबसे बड़ी घटना होती है। इसका मतलब कि अब उसके जीवन में कोई रंग नहीं रहा।
दूसरा कारण : सफेद साड़ी पहनने से महिला की एक अलग ही पहचान बन जाती है। सभी लोग उसके प्रति संवेदना रखने लगते हैं। इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव के चलते वह सामाजिक सुरक्षा के दायरे में रहती है। 
 
तीसरा कारण : एक विधवा के सफेद वस्त्र पहनने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि सफेद रंग आत्मविश्वास और बल प्रदान करता है। वह कठिन से कठिन समय को पार करने में सहायक बनता है। इसके साथ ही सफेद वस्त्र विधवा स्त्री को प्रभु में अपना ध्यान लगाने में मदद करते हैं। सफेद कपड़ा पहनने से मन शांत और सा‍त्विक बना रहता है।
 
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चौथा कारण : महिलाओं का ध्यान ना भटके इसलिए उन्हें सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है क्योंकि रंगीन कपड़े इंसान को भौतिक सुखों के बारे में बताते हैं ऐसे में महिला का पति साथ नहीं होने पर महिलाएं कैसे उन चीजों की भरपाई करेगी। इसी बात से बचने के लिए विधवाओं को सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है।
 
पांचवां कारण : शास्त्रों के मुताबिक पति को परमेश्वर कहा जाता है और ऐसे में अगर परमेश्वर का जीवन समाप्त हो जाता है तो महिलाओं को भी संसार की माया-मोह छोड़कर भगवान में मन लगाना चाहिए।
 
छठा कारण : ऐसा माना जाता है कि पुत्र या पुत्री का जन्म हो चुका हो और उसके बाद पति की मौत हो गई हो तो दोबारा शादी नहीं करने से पुत्र पुत्रियों के जीवन पर विपरित या प्रतिकुल असर नहीं पड़ता है। उनके भीतर भी नैतिकता और अपने पिता के प्रति जिम्मेदारी और संवेदना का भाव उत्पन्न होता है। यह एक ईमानदार प्रयास माना जाता है।

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