Sharad Purnima : चंद्र कौन हैं? कैसे हुआ उनका जन्म, जानिए अपने चंदा मामा को

चंद्र, चंद्रमा, मून, चांद या कहें कि बच्चों के चंदा मामा.... आखिर ये हैं कौन,  क्या है इनकी उत्पत्ति का राज, यहां जानिए सारी बातें एक साथ... 
 
ज्योतिष विज्ञान में चंद्र का स्थान दूसरा है। पंचांग भी चंद्र पर आधारित होता है। चंद्र के कारण ही धरती पर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं। इसी के कारण ही समुद्र में ज्वारभाटा उत्पन्न होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे शरीर में 65 प्रतिशत जल की स्थिति है। तो सोचें, क्या हमारे शरीर में ज्वारभाटा उत्पन्न नहीं होता है? हमारा मन कृष्ण पक्ष के साथ घटता है और शुक्ल पक्ष के साथ बढ़ता है। स्त्रियों पर चंद्र का प्रभाव ज्यादा माना गया है।
 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण : असल में चंद्र कोई ग्रह नहीं बल्कि धरती का उपग्रह माना गया है। पृथ्वी के मुकाबले यह एक चौथाई अंश के बराबर है। पृथ्वी से इसकी दूरी 406860 किलोमीटर मानी गई है। चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। 15 दिन तक इसकी कलाएँ क्षीण होती हैं तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। चंद्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर धरती को प्रकाशित करता है।
 
पुराण अनुसार : देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था।
 
चंद्र देवता हिंदू धर्म के अनेक देवतओं मे से एक हैं। उन्हें जल तत्व का देव कहा जाता है। चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है। चंद्रमा के अधिदेवता अप्‌ और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। श्रीमद् भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। इन्हें अन्नमय, मनोमय, अमृतमय पुरुषस्वरूप भगवान कहा जाता है।
 
प्रजापितामह ब्रह्मा ने चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बनाया। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। ये कन्याएँ सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि। चंद्रदेव की पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। चंद्र ग्रह ही सभी देवता, पितर, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी और वृक्ष आदि के प्राणों का आप्यायन करते हैं।
सुंदर सलोने चंद्रमा को देवताओं के समान ही पूजनीय माना गया है। चंद्रमा के जन्म की कहानी पुराणों में अलग-अलग मिलती है। ज्योतिष और वेदों में चंद्र को मन का कारक कहा गया है। वैदिक साहित्य में सोम का स्थान भी प्रमुख देवताओं में मिलता है। अग्नि, इंद्र, सूर्य आदि देवों के समान ही सोम  की स्तुति के मंत्रों की भी रचना ऋषियों द्वारा की गई है। 
 
पुराणों के अनुसार चंद्र की उत्पत्ति 
 
मत्स्य एवं अग्नि पुराण के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार किया तो सबसे पहले अपने मानसिक संकल्प से मानस पुत्रों की रचना की। उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ जिससे दुर्वासा, दत्तात्रेय व सोम तीन पुत्र हुए। सोम चंद्र का ही एक नाम है। 
 
पद्म पुराण में चंद्र के जन्म का अन्य वृतांत दिया गया है। ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी। महर्षि अत्रि ने  अनुत्तर नाम का तप आरंभ किया। तप काल में एक दिन महर्षि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें टपक पड़ी जो बहुत प्रकाशमय थीं। दिशाओं ने स्त्री रूप में  आकर पुत्र प्राप्ति की कामना से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया जो उनके उदर में गर्भ रूप में स्थित हो गया। परंतु उस प्रकाशमान गर्भ को दिशाएं  धारण न रख सकीं और त्याग दिया। उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने पुरुष रूप दिया जो चंद्रमा के नाम से प्रख्यात हुए। देवताओं, ऋषियों व गंधर्वों  आदि ने उनकी स्तुति की। उनके ही तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधियां उत्पन्न हुई। ब्रह्मा जी ने चंद्र को नक्षत्र, वनस्पतियों, ब्राह्मण व तप का स्वामी  नियुक्त किया। 
 
स्कंद पुराण के अनुसार जब देवों तथा दैत्यों ने क्षीर सागर का मंथन किया था तो उस में से चौदह रत्न निकले थे। चंद्रमा उन्हीं चौदह रत्नों में से एक  है जिसे लोक कल्याण हेतु, उसी मंथन से प्राप्त कालकूट विष को पी जाने वाले भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया। पर ग्रह के रूप में  चंद्र की उपस्थिति मंथन से पूर्व भी सिद्ध होती है। 
 
स्कंद पुराण के ही माहेश्वर खंड में गर्गाचार्य ने समुद्र मंथन का मुहूर्त निकालते हुए देवों को कहा कि इस समय सभी ग्रह अनुकूल हैं। चंद्रमा से गुरु का  शुभ योग है। तुम्हारे कार्य की सिद्धि के लिए चंद्र बल उत्तम है। यह गोमंत मुहूर्त तुम्हें विजय देने वाला है। अतः यह संभव है कि चंद्रमा के विभिन्न  अंशों का जन्म विभिन्न कालों में हुआ हो। चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की नक्षत्र रूपी 27 कन्याओं से हुआ जिनसे अनेक प्रतिभाशाली पुत्र हुए। इन्हीं  27 नक्षत्रों के भोग से एक चंद्र मास पूर्ण होता है।

अशुभ : दुध देने वाला जानवर मर जाए। यदि घोड़ा पाल रखा हो तो उसकी मृत्यु भी तय है, किंतु आमतौर पर अब लोगों के यहाँ ये जानवर नहीं होते। माता का बीमार होना या घर के जल के स्रोतों का सूख जाना भी चंद्र के अशुभ होने की निशानी है। महसूस करने की क्षमता क्षीण हो जाती है। राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चंद्र पर पड़ने से चंद्र अशुभ हो जाता है। मानसिक रोगों का कारण भी चंद्र को माना गया है।
शुभ : शुभ चंद्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।
उपाय : प्रतिदिन माता के पैर छूना। शिव की भक्ति। सोमवार का व्रत। पानी या दूध को साफ पात्र में सिरहाने रखकर सोएँ और सुबह कीकर के वृक्ष की जड़ में डाल दें। चावल, सफेद वस्त्र, शंख, वंशपात्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, बेल, दही और मोती दान करना चाहिए।
मकान : चंद्र शुभ है तो मकान से 24 कदम दूर या ठीक सामने कुआँ, हैंडपंप, तालाब या बहता हुआ पानी अवश्य होगा। दूध वाले वृक्ष होंगे। घर में शांति होगी।
।।ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः।। 
 
देवता : शिव
गोत्र : अत्रि
दिशा : वायव
दिवस : सोमवार
वस्त्र : धोती
पशु : घोड़ा
अंग : दिल, बायाँ भाग
व्यापार : कुम्हार, झींवर
वस्तु : चाँदी, मोती, दुध
स्वभाव : शीतल और शांत
वर्ण-जाति  : श्वेत, ब्राह्मण
विशेषता : दयालु, हमदर्द
भ्रमण : एक राशि में सवा दो दिन।
नक्षत्र  : रोहिणी, हस्त, श्रवण
गुण : माता, जायदाद,शांति
वृक्ष : पोस्त का हरा पौधा, जिसमें दूध हो।
शक्ति : सुख शांति का मालिक, माता का प्यारा, पूर्वजों का सेवक।
वाहन:  हिरण, श्वेत रंग के दस घोड़ों से चलने वाला हीरे जड़ित तीन पहियों वाला रथ है।
राशि : नक्षत्रों और कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा के मित्र सूर्य,बुध। राहु और केतु शत्रु हैं। मंगल, गुरु, शुक्र और शनि सम हैं। राहु के साथ होने से चंद्रग्रहण।
अन्य नाम
 
चंद्र, चंद्रमा, मून, चांद, चंदा मामा, सोम, रजनीपति, रजनीश, शशि, कला, निधि, इंदू, शशांक, शितांशु, मृगांक, सुधाकर और मयंक।
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