1. माता पार्वती: माता पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती थीं। सती ने शिवजी के अपमान के चलते उनके पिता राजा दक्ष के यज्ञ में कुद कर अपनी जान दे दी थी। बाद में उन्होंने हिमालयराज और मेनावती के यहां पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिवजी को पाने के लिए घोर तप किया और तब शिवजी और उनका विवाह हुआ। माता पार्वती के दो सेविकाएं है जया और विजया।
4. अशोक सुंदरी: पार्वती ने अपने एकाकीपन (अकेलेपन) को दूर करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने कल्पवृक्ष से एक बेटी की मांग की। तब उस वृक्ष से अशोक सुंदरी की उत्पत्ति हुई। अशोक सुंदरी के अलावा मनसा देवी को भी शिव और पार्वती की पुत्री माना जता है जोकि वासुकि नाग की बहन है।
5. आसावरी देवी: जब माता पार्वती, भगवान शिव से विवाह कर कैलाश पर्वत पर आईं, तब वे कई बार उदास और अकेला महसूस करती थीं। शिवजी ने पार्वती जी से उदासी का कारण पूछा तो माता पार्वती ने उनसे कहा कि उन्हें एक ननद चाहिए। भोलेनाथ ने अपनी माया से एक स्त्री को उत्पन्न किया। वह स्त्री आसावरी देवी थी।
उपरोक्त के अलावा शिव परिवार में और भी 5 सदस्या शामिल हैं-
1. नंदी: नंदी भगवान शिव के सेवक, गण और पार्षद भी हैं। नंदी शिलाद ऋषि के पुत्र थे। जब नंदी को यह पता चला की वे अल्पायु हैं तो वे शिवजी की घोर तपस्या में लीन हो गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
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2. मूषक: भगवान इंद्र के शाप के कारण क्रौंच नामक गंधर्व एक चूहा बन गया था। चूह बनकर वह ऋषियों के आश्रम में उत्पात मचाता था। पराशर ऋषि के अनुरोध पर गणेशजी ने एक पाश फेंका। पाश की पकड़ से मूर्छित मूषक की जब आंख खुली तो भयभीत होकर उसने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। तब श्रीगणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।
3. बाघ: माता पार्वती घोर तपस्या कर रही थी तब एक बाघ उनके पास आकर चुपचाप बैठ किया। जब तक माता तपस्या करती रही वह वहीं बैठा रहा। माता की आंखें खुली तो उन्होंने उसे देखा और प्रसंन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया। तब से मां पार्वती का वाहन बाघ हो गया। दूसरी कथा अनुसार संस्कृत भाषा में लिखे गए 'स्कंद पुराण' के तमिल संस्करण 'कांडा पुराणम' में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था। अपनी पराजय पर सिंहामुखम माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक बाघ में बदल दिया और अपना माता पार्वती के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया।
4. मयुर: दक्षिण भारत की एक पौराणिक कथानुसार मुरुगन से लड़ते हुए सपापदम्न (सुरपदम) एक पहाड़ का रूप ले लेता है। मुरुगन अपने भाले से पहाड़ को दो हिस्सों में तोड़ देते हैं। पहाड़ का एक हिस्सा मोर बन जाता है जो मुरुगन का वाहन बनता है जबकि दूसरा हिस्सा मुर्गा बन जाता है जो कि उनके झंडे पर मुरुगन का प्रतीक बन जाता है।
उपरोक्त के अलावा : सुकेश, जलंधर, वीरभद्र, बाण, चंड, भृंगी, रिटी, महाकाल, भैरव, मणिभद्र, चंदिस, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, भूमा, अय्यप्पा, अंधक, खूजा आदि कई शिव परिवार और गणों का हिस्सा हैं।