सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि भी कहा गया है। महाशिवरात्रि को की गई पूजा-अर्चना, जप दान आदि का फल कई गुना होता है।
यह एक दुर्लभ योग है, जब ये दोनों बड़े ग्रह महाशिवरात्रि पर इस स्थिति में रहेंगे। इससे पहले ऐसी स्थिति वर्ष 1903 में बनी थी। इस योग में भगवान शिव की आराधना करने पर शनि, गुरु, शुक्र के दोषों से मुक्ति मिल सकती है।
वैसे तो महाशिवरात्रि एक सिद्ध दिन और महापर्व होता ही है पर इस बार महाशिवरात्रि पर पूरे दिन ‘सर्वार्थ सिद्धि' योग भी उपस्थित रहेगा और सर्वार्थ सिद्धि योग को सभी कार्यों की सफलता के लिए बहुत शुभ माना गया है। इससे इस बार महाशिवरात्रि के पर्व का महत्त्व कई गुना बढ़ गया है इसलिए महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के निमित्त की गयी पूजा अर्चना, दान, जप तप आदि कई गुना परिणाम देने वाले होंगे साथ ही इस दिन अपने सभी नवीन कार्यों का आरंभ या सभी महत्वपूर्ण कार्य भी किये जा सकेंगे।
शिव का जलाभिषेक दूध, दही, शहद, घी, शर्बत, गंगाजल से किया जाता है। शिव भक्त यदि गले में रुद्राक्ष धारण करके जलाभिषेक व पूजन करें तो शिव की विशेष कृपा रहती है।