Mahashivaratri 2025: फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 26 जनवरी 2025 बुधवार को यह त्योहार मनाया। इस दिन चतुर्दशी तिथि के योग में बुधवार रहेगा। तिथि शिवजी की और वार गणेशजी का है। चतुर्दशी, बुधवार, श्रवण नक्षत्र, छत्र योग और महाशिवरात्रि के महासंयोग में शिवरात्रि का महा त्योहार मनाया जा रहा है। जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, आरती और कथा सभी कुछ एक साथ।ALSO READ: महाशिवरात्रि पर कहां कहां होते हैं भोलेनाथ के ऑनलाइन लाइव दर्शन, जानें पूरी जानकारी
महाशिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त:-
दिन में शुभ मुहूर्त:- अमृत काल सुबह 07:28 से 09:00 के बीच।
शाम में शुभ मुहूर्त:- गोधूलि मुहूर्त शाम 06:17 से 06:42 के बीच।
रात में शुभ मुहूर्त:- निशीथ काल समय- मध्यरात्रि 12:09 से 12:59 के बीच।
दिन में अमृत चौघड़िया: अमृत सुबह 08:15 से 09:42 के बीच।
रात में शुभ और अमृत चौघड़िया: रात्रि 07:53 से 11:00 बजे तक।
महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा विधि:-
- प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो शिवजी का स्मरण करते हुए व्रत एवं पूजा का संपल्प लें।
- घर पर पूजा कर रहे हैं तो एक पाट पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर घट एवं कलश की स्थापना करें।
- इसके बाद एक बड़ी सी थाली में शिवलिंग या शिवमूर्ति को स्थापित करके उस थाल को पाट पर स्थापित करें।
- अब धूप दीप को प्रज्वलित करें। इसके बाद कलश की पूजा करें।
- कलश पूजा के बाद शिवमूर्ति या शिवलिंग को जल से स्नान कराएं।
- फिर पंचामृत से स्नान कराएं। पंचामृत के बाद पुन: जलाभिषेक करें।
- फिर शिवजी के मस्तक पर चंदन, भस्म और लगाएं और फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाकर माला पहनाएं।
- पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से इत्र, गंध, चंदन आदि लगाना चाहिए।
- इसके बाद 16 प्रकार की संपूर्ण सामग्री एक एक करके अर्पित करें।
- पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं और प्रसाद अर्पित करें।
- ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा:-
शिवपुराण की कथा के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ तो इसी दौरान एक अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ और आकाशवाणी हुई कि जो भी इस स्तंभ के आदि और अंत को जान लेगा, वही ही श्रेष्ठ होगा। दोनों ने युगों तक इस स्तंभ के आदि और अंत को जानने की कोशिश की, परंतु वे इसे नहीं जान सके और उन्होंने अपनी हार स्वीकार की। तब शिवजी ने प्रकट होकर कहा कि श्रेष्ठ तो आप दोनों ही हो लेकिन मैं आदि और अंत से परे हूं और शिव हूं। जब यह घटना घटी उस दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि थी। तभी से इस दिन महाशिवरात्रि मनाई जाने लगी।ALSO READ: महाशिवरात्रि व्रत की प्रामाणिक और पौराणिक कथा
महाशिवरात्रि की दूसरी पौराणिक कथा:-
शिव पुराण के अनुसार ही फाल्गुन मास की चतुर्थशी तिथि के दिन शिव जी द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में संसार में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन महाशिवरात्रि मनाई जाती है और इसी दिन 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा का खास महत्व माना गया है। इस दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा की जाती है।ALSO READ: महाशिवरात्रि पर पढ़ी और सुनी जाती हैं ये खास कथाएं (पढ़ें 3 पौराणिक कहानी)
महाशिवरात्रि की तीसरी कथा:-
शिवपुराण की तीसरी कथा के अनुसार, फाल्गुन माह की चतुर्दशी को माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। इस दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़ गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव और शक्ति के मिलन के उत्सव के तौर पर महाशिवरात्रि के दिन भक्त पूजन और व्रत करके इस उत्सव को मनाते हैं।ALSO READ: Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि पर भांग पीने का प्रचलन कब से हुआ प्रारंभ?